Thursday, March 19, 2009

वह जो नहीं- 'डर' की 8वीं कहानी

पिछले सप्ताह नवलेखन पुरस्कार 2008 से सम्मानित कथा-पुस्तक 'डर' का दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के हाथों विमोचन हुआ। अब तक हिन्द-युग्म ने इस संग्रह से 7 कहानियाँ ( सोमनाथ का टाइम टेबल, डर, चश्मे, 'मन्नन राय ग़ज़ब आदमी हैं', स्वेटर, रंगमंच और सफ़र ) प्रकाशित कर चुका है। आज हम इस कहानी-संग्रह की सबसे छोटी कहानी पढ़वा रहे हैं। अगले सप्ताह वह कहानी जिस कहानी की चर्चा 14 मार्च के विमोचन समारोह में सबसे अधिक रही॰॰॰॰


वह जो नहीं


अंदर घुसते ही एक अलग सी ही दुनिया नजर आती थी। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सजी गोल-गोल मेजें और उनके चारों तरफ कुर्सियां। एक मेज से दूसरी मेजवाले का चेहरा साफ दिखाई न पडे़, ऐसी रोशनी की व्यवस्था थी। हर मेज से उठने वाला धुआं आंखों से दिमाग तक पहुँचता था। हर छल्ले, हर कश, हर घूँट और हर गिलास में अपनी-अपनी कहानियां और मजबूरियां थीं, कुछ बनीं, कुछ ओढ़ी और कुछ ऐसी जो हमेशा से हैं। सामने थोड़ी उंचाई पर एक लड़की बेहद कम कपड़ों में नांच रही थी- आप जैसा कोई.........। उसके अंग उसकी मजबूरियों के तरह काफी हद तक नंगे नजर आ रहे थे। सभी अपनी कुरसियों से अपनी अतीत की तरह चिपके हुए थे। किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं। जिस पर सुरुर अधिक हो जाता वह थोड़ी देर उठकर लड़की के साथ नाच लेता, उसके बदन की गर्मी से अपने बदन की तपिश शांत कर लेता और फिर अपने अतीत से चिपक जाता।
’’वेटर, कम हियर।’’
’’यस सर ?’’
’’वन लार्ज व्हिस्की।’’
’’ओके सर।’’
वहां से काउंटर साफ दिखाई पड़ रहा था। शेल्फ पर करीने से रखी बोतलें भी दिखाई पड़ रहीं थीं। काउंटर पर एक लड़की झुकी बारमैन से बातें कर रही थी। शायद काफी नशे में थी। पैग पर पैग चढ़ाती लड़की किसी बड़े बाप की बिगड़ी औलाद लग रही थी, या फिर शायद कोई बाज़ारू...........।
राखी की समझ इतनी छोटी है, ऐसा शादी के पहले तो नहीं लगता था। शक भी एक लाइलाज बीमारी की तरह होता है, लेकिन इतना बड़ा शक.....? वह भी उसके चरित्र के बारे में......।
’’वेटर।’’
’’यस सर।’’
’’वन मोर लार्ज।’’
अब तो घर जाने का दिल ही नहीं करता। राखी से तो बात करना भी मुश्किल है। पता नहीं उसके दिमाग पर ज़माने भर की गंदगी कहां से छा गयी है।
’’तुम कल रात किसके साथ थे ?’’
’’किसके साथ का मतलब ? सिन्हा के साथ गया था तो ज़ाहिर है उसी के साथ हूँगा।’’
’’नहीं, कल रात तुम नेहा के साथ थे, एक ही रूम में।’’
’’बको मत, मैं नेहा के साथ नहीं था।’’
’’तुम उसी के साथ थे। मैंने कल रात उसके फ्लैट पर रिंग किया तो उसने फोन नहीं उठाया।’’
’’यार मैं एक रूम में था और सिन्हा मेरे बगल वाले रूम में। बीच में नेहा कहां से आ गयी ?’’
’’बीच में नहीं, वह तो शुरू से तुम्हारे साथ है। बीच में तो मैं आ गयी।................तुम्हें उसी से शादी करनी चाहिए थी।’’
’’फॉर गॉड सेक, चुप रहो राखी........रोना बंद करो। ...ऐसा कुछ नहीं..........।’’
लड़की का स्टेज पर डांस तेज़ हो रहा था- ’चोली के पीछे.............’ कपड़े भी कम होते जा रहे थे। बार काउंटर पर लड़की पीती जा रही थी।
चरित्र पर लगा दाग तब कैसे स्वीकार्य हो सकता है जब कोई चरित्र को ही अपनी सबसे बड़ी ताक़त माने और उसे ही चरित्रहीन कहा जाये। राखी ने सीधा इल्ज़ाम लगा दिया कि उसके नेहा के साथ नाजायज़ संबंध हैं, जबकि वह तो नेहा के मौन आमंत्रणों का जवाब दोस्ती से देकर नज़रअंदाज़ करता आया है।
’’जीजाजी, यह मैं क्या सुन रहा हूं ?’’
’’क्या? मैं कुछ समझा नहीं।’’
’’आप दीदी के साथ ऐसा नहीं कर सकते।’’
’’कैसा नहीं कर सकता? क्या कर रहा हूं मैं?’’ वह चीख पड़ा था। राखी को ये बेसिर-पैर की बातें अपने मायके वालों तक पहुँचाने की क्या ज़रूरत थी। राजू का दीमाग भी बिल्कुल अपनी बहन जैसा ही है। एक बार भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि असली बात क्या है। क्या सबके लिए वही जवाबदेह है ?
’’यस सर?’’
’’वन मोर लार्ज।’’
’’फाइन सर।’’
सामने की मेज़ से उठ कर एक आदमी नाचती हुयी लड़की से लिपटने की कोशिश करने लगा है। लड़की परेशान। शायद मजबूरी ने सिर्फ़ नाचने और जिस्म दिखाने की ही इजाज़त दी है, इसके आगे इसका भी एक चरित्र है। यह बात बाउंसर्स को भी पता है। उन्होंने उस आदमी को बाहर ले जाकर पटक दिया है। थोड़ी देर तक भुनभुनाहटें, फुसफुसाहटें। कुछ देर बाद फिर नाच व गाना शुरू-’जाओ चाहे दिल्ली, मुंबई.............’।
काउंटर के सामने वाली मेज़ पर एक ख़तरनाक सा दिखने वाला आदमी एक सूटेड बूटेड आदमी से बातें कर रहा है।
’नहीं सेठ, इससे कम में काम नहीं होगा। छोटा-मोटा काम होता, हाथ-पांव तोड़ने का होता तो............लेकिन इसके लिए तो.........।’
’ अच्छा चलो साठ कर लो। अब ठीक है न ?’
’चलो सेठ, आपके लिए कर लेता हूं नही तो आजकल रेट तो ज़्यादा.........। अच्छा सेठ चलता हूं। कल परसों में ख़बर पढ़ लेना।’
आज किसी की मौत होगी। ये शहर तो जैसे मौत के आगोश में ही सोता और जागता है। किसी की ज़िंदगी सारे अरमानों और बहुत से प्लांस को अधूरा छोड़ कर ख़त्म हो जायेगी। मौत पर इंसान का कोई बस नहीं, बहाना चाहे जो भी हो। मरने की बात सोचने पर कॉलेज की कुछ बातें याद आ जाती हैं।
’’और अगर मर गया तो........?’’ बात में बात निकलती।
’’नहीं यार, अभी नहीं मरूंगा। अभी तक तो कुछ किया ही नहीं।’’
’’कुछ मतलब ?’’ अगला हँसता।
’’अबे, न शादी की, न मज़े लिये। कुछ भी तो नहीं देखा। शादी करुँगा, बच्चे पैदा करुंगा, पैसे कमाऊँगा, तब कहीं जाकर.............।’’ वह भी हँसता।
लेकिन शादी तो एक समझौता बनकर रह गयी। राखी ने उसे कोई सुख, कोई संतुष्टि नहीं दी, न शारीरिक, न मानसिक। वह बच्चे नहीं पैदा कर सकती, इस ख़बर से वह तो परेशान हुआ ही था लेकिन राखी तो जैसे अर्धविक्षिप्त सी हो गयी। वह बिल्कुल ही असुरक्षित महसूस करने लगी। उसका ख़ुद पर से, उस पर से, दुनिया से, भगवान से, सबसे भरोसा उठ गया। परिणाम यह हुआ कि हालात बद से बदतर होते चले गये। वह एक ऐसे आदमी के चरित्र पर शक करने लगी जिसने शादी के पहले कोई नशा तक नहीं किया था, किसी लड़की पर निगाह तक नहीं डाली थी और इसे बहुत बड़ी बात समझता था। जिसने अपने दिल के आइनाखाने को सिर्फ़ एक अक्स के लिए शफ़्फ़ाक रख छोड़ा था। वह जो प्यार को इबादत मानता था। उसकी कद्र करता था और प्यार के अहसास के आगे जिस्म को कुछ नहीं समझता था।
लड़की का नाच चरम पर था। बदन पर नाम मात्र के कपड़े ही बचे थे- ’’खल्लास........।’’ काउंटर पर पी रही लड़की बारमैन से उलझ रही थी। वह बहुत पी चुकी थी। वह अपनी कुर्सी से उठ गया।
’’क्या बात है? यह चिल्ला क्यों रही हैं?’’
’’देखिये न सर, इनका बिल पंद्रह सौ हो गया है। यह बिना पे किये और रम मांग रही हैं। क्लब के रूल के अनुसार हम पंद्रह सौ के बाद क्रेडिट नहीं चला सकते और ये मैडम........।’’
’’ठीक है, ये लो दो हज़ार, इनके बिल में एडजस्ट करके इन्हें पीने दो।’’
वह आकर कुर्सी पर बैठ गया। आज राखी ने सारी हदें पार कर दीं। उसको राजू के सामने ऐयाश ही नहीं कहा, बल्कि उसके पूरे ख़ानदान को गाली दी। ये औरत किस मिट्टी की बनी है, समझ में नहीं आता। हाँ वाकई, राखी ने आज साबित कर दिया कि चरित्र, सदाचार, आत्मसंयम सब बेकार की बातें हैं। आप कितनी पवित्रता से ज़िंदगी बिता रहे हैं, उससे किसी को कोई मतलब नहीं है। राखी क्या, उसे स्वयं इन सब बातों में यक़ीन नहीं रहा।
’’थैंक्यू मिस्टर.........?’’
’’अमर।’’
’’थैंक्स... अमर, मेरा........ बिल चुकाने के........... लिए। मे आई.....सिट...हियर ?’’ लड़की और उसकी ज़बान दोनों लड़खड़ा रहे थे।
’’इट्स ओके मिस.........?’’
’’काजल.......।’’
’’हैलो काजल, नाइस टु मीट यू। यू शुड गो टु योर होम नाउ। तुम लड़खड़ा रही हो।’’
’’तुम....जैसा हैंडसम.......इंसान सामने हो.......और काजल......घर चली जाये.......नेवर।’’ लड़की ने माहौल की गरमाहट उसके होंठों में भर दी। उसका शरीर जलने लगा। सबकुछ धुंधला सा होने लगा था। नाच, पीना, शरीरों की रगड़, सबकुछ चरम पर था।
’’कम ऑन.........अमर.........कम विद मी।’’ ऊपर के फ़्लोर पर कमरे शायद इसीलिये थे। दोनों घुसे। दरवाज़ा बंद किया गया। उसकी बांहों में लड़की का जिस्म झूल रहा था और वह लड़खड़ाती हुयी बार-बार उसे किस कर रही थी। उसने उसे बिस्तर पर लिटाया और उसकी बगल में लेट गया। लड़की ने अपनी गुदाज बांहें उसके गले में डाल दीं। उसने काफी देर से पीछा कर रही अपनी रूह को परे धकेला और लड़की को किस करने लगा।
शराब उसके सिर पर भी असर दिखा रही थी। किस करते वक़्त उसे लड़की के चेहरे में राखी का चेहरा नज़र आने लगा। जब सबकी नज़रों में वह चरित्रहीन और ऐयाश है तो मासूमियत का चोला पहन कर बेवकफूफ़ों की तरह घूमने से क्या फ़ायदा? उसके हाथ लड़की के नाज़ुक अंगों पर फ़िरने लगे। नशे की अधिकता से लड़की की आंखें बंद हो रही थीं।
’’आई लव........यू..... विशाल......आई लव....यू। डोंट......लीव मी....एलोन....।’’ उसके हाथ रुक गये। कमरे में एक झिरी से उसकी रूह फिर प्रवेश पा गयी। प्यार वाकई एक ख़ूबसूरत एहसास है। वह सीधा बैठ गया।
’’क्या........हुआ........विशाल ?’’
’’.............।’’
’’क्या ......हुआ.....विशाल....?’’
’’आयम नॉट विशाल। आयम अमर।’’ वह बिस्तर से उतर कर खड़ा हो गया।
’’ओह........यू.....आर नॉट.....विशाल ?’’
’’नो, आयम........। यू लव हिम ?’’
’’या.......बट ही.......डज़ंट। ही...........डज़ंट।’’ लड़की की आंखें बंद हो गयीं। नशे की अधिकता उसके दिमाग और आंखों पर हावी हो गयी।
थोड़ी देर तक वह लड़की को देखता रहा। वह बाज़ारू लड़की उसे बहुत पवित्र और ख़ूबसूरत लग रही थी। उसका सोया हुआ शांत चेहरा उसे बहुत भला लगा। उसने लड़की माथे पर एक चुंबन लिया और चुपके से बाहर निकल गया।

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4 कहानीप्रेमियों का कहना है :

Divya Narmada का कहना है कि -

हृदस्पर्शी कहानी... भरोसा न किया जाने का अर्थ यह नहीं की खुद को भरोसे लायक ही न रहने दो. कहानीकर को शुभकामनाएँ .

चारु का कहना है कि -

bahut hi
achhi kahani shuruaat me sadharan lagi, lekin kahani ka ant hi is kahani ko sabse alag aur vishisht banata hai.. kahanikar ko bhi...aap ko bahut bahut bdhai itn umda ahsaaso k poshan k liye, jo behosh jism me insaan ka dil aur rooh talashte hai..

चारु का कहना है कि -

bahut hi
achhi kahani shuruaat me sadharan lagi, lekin kahani ka ant hi is kahani ko sabse alag aur vishisht banata hai.. kahanikar ko bhi...aap ko bahut bahut bdhai itn umda ahsaaso k poshan k liye, jo behosh jism me insaan ka dil aur rooh talashte hai..

Anonymous का कहना है कि -

Pyar wakai ek khubsurat ehsas hai, is bahut hi chhoti magar bahut hi badi kahani k bare me kya kahu. Charu se sehmat hu ki dhanya hai wo prem jo behoshi aur nashe k bich bhi pyar ko yad rakhta hai aur dhanya hai wo lekhak jo idhar udhar ki bate aur ghatnaye jodte hue achanak ek amar aur dil ko chhoo apna bna lene wali kahani de jata hai

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