पौ फटते ही उसने लिखना शुरू कर दिया था। एक झोंपड़े की दीवार पर लिखते ही साइकिल उठा, अगली दीवार ढूँढ़ने लगता। एक दीवार पर लिखने के उसे दो रुपये मिलते थे। ठेकेदार ने कहा था, शाम होने से पहले पचास दीवारें लिखी होनी चाहिये। उसे लक्ष्य प्राप्त होने का विश्वास था, लेकिन चार बजते-बजते वह थक कर चूर हो गया। पूरा बदन दर्द कर रहा था। कलाई का दर्द तो सहा ही नहीं जा रहा था। उसे लगा अब वह और नहीं लिख पायेगा। गेरु से भरी बाल्टी और ब्रश एक तरफ रख दीवार के सहारे, माथा पकड़ कर बैठ गया। अभी बैठा ही था, कि ठेकेदार की मोटर साईकिल आ कर रुकी।
- ’अरे उठ ! अभी तो बहुत सा लिखना है, कल सुबह जब स्वास्थ मंत्री इधर से गुजरें तो सड़क से दीखती हर दीवार पर लिखा होना चाहिये। ’
- ’मालिक बदन का पोर-पोर दुख रहा है। सुबह से कुछ नहीं खाया। अंगुलियां से ब्रश नहीं पकड़ा जा रहा।’ फटे बनियान में वह ठंड से कांपता हुआ बोला।
ठेकेदार को दया आ गई उसने मोटर साइकिल की डिक्की में हाथ डाला, एक बोतल निकाली और बोला ’ले दो घूँट लगा ले सब ठीक हो जायेगा।’ उसकी आँखों में चमक आ गई। अब वह लक्ष्य प्राप्त कर लेगा । दो की बजाय बड़े-बड़े पाँच घूंट हलक में उतार लिये और नये उत्साह से नशामुक्ति के नारे लिखने लगा।
..............दारू दानव से करो किनारा। आगे बढ़ता देश हमारा।
-विनय के जोशी
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8 कहानीप्रेमियों का कहना है :
दारू दानव से करो किनारा। आगे बढ़ता देश हमारा।
"बेहद दुखद....नारा लिखने का कोई महत्व ही नहीं रह गया.....या सिर्फ लिखना मात्र ही उद्देश है...."
Regards
क्या कटाक्ष है विनय जी ,
करनी और कथनी में गहरा अन्तराल ही पतन की और ले जाता है हमे ,और हमारे समाज को
अच्छी कहानी
विनय जी,
कोई शक नहीं के आपने सही चीज पकड़ कर बहुत ही सही लिखा है,,,,,
इतना ही लिख पाउँगा ,,,,,
अगर पहला कमेंट होता तो शायद कुछ ज्यादा लिखता,,,,,फिर भी ये तो कह ही सकता हूँ के नशा मुक्ति के लिए तो नशे पर नारे के बजाय (दूकान ही बंद करवा देनी चाहिए),,,,
इंसान दस बीस दिन ,,,,या महीने दो महीने ,,,तड़प कर एक ना एक दिन तो शांत होकर बैठ ही जायेगा,,,,,
सत्य-कथा मन छू गयी, यही हो रहा आज.
नारा ही उद्देश्य है, बाकी काज-अकाज.
बहुत सुंदर लघु कथा ...
विनय जी,
बहुत ही कम शब्दों में आपने करारा व्यंग्य किया है .
बधाई स्वीकारें.
पूजा अनिल
सही व्यंग्य है विनय जी.. बहुत सही...
Laghu katha achi lagi
mujhe bhi email address batayeye main bhi laghu katha bhejana chahta hu
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