-- वैसे भी एक अकेलेपन का कागज़ कलम से अच्छा सहारा कौन हो सकता है ? जब इनसे बातें करती- करती ऊब जाती तो शहर के कोने में बनी झील के किनारे घंटो बैठी रहती और कुछ न कुछ सोचती रहती। झील की ठहरी लहरे जब हवा के बहाव से कुछ हलचल करती तो उनको ध्यान से देख के हौले से कुछ सोच के मुस्करा देती। ऑफिस में उसकी मेज पर बिखरे कागजों में अक्सर कभी कोई न कोई कविता लिखी होती जिसे जब कोई पढ़ लेता तो वाह- वाह कर देता और उसको कही प्रकाशित करने की बात करता तो वह धीरे से सर हिला के मना कर देती - यह तो वह यूं ही लिख देती है ।
आज फ़िर रविवार था । ऑफिस की छुट्टी का दिन । सारा दिन अपने कमरे में बैठी- बैठी वह उकता गई । सोचा- चलो कुछ देर झील के किनारे चल के आती हूँ। हवा बहुत ही मधुर मीठी चल रही थी, आसमान में हलके बादल थे, झील के किनारे कुछ बच्चे गुब्बारे लिए भाग रहे थे ,वो अपने जाने- पहचाने कोने में जाकर बैठ गई। हलके नीले रंग की साड़ी में वह झील की ही सी नज़र आ रही थी उसको नही पता था कि एक युवक उसको कई बार वहाँ बैठे देखता रहता है ..उस का नाम नीरज था ,वह अक्सर उसको वहाँ देखता और सोचता कि आखिर कौन है यह ?क्यों ऐसे अकेली यहाँ बैठी रहती है ,पर उसकी सख्त मुख मुद्रा देख के कुछ पूछने का साहस नही कर पाता ,आज भी वह उसको यूं बैठे देख के सोच रहा था कि किसी तरह इस से बात हो पाती ,कि तभी अचानक बारिश शुरू हो गई नीरा जैसे किसी गहरी सोच से अचानक जागी और एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गई ,पर बारिश तेज थी .
""यदि आपको बुरा न लगे तो मेरे पास कार है और यह बारिश अभी आसानी से रुकने वाली नही आप मेरे साथ चलिए ..नीरज ने कहा
घबराए नही मैं कोई ग़लत इंसान नही हूँ एक पेंटर हूँ और यहाँ अपनी तस्वीर के लिए कोई न कोई प्रेरणा तलाश करने अक्सर आ जाता हूँ ..प्रकति बहुत सुंदर रूप दिखा देती है कई बार, कह कर वह मुस्करा दिया !
अजीब इंसान है यह !! नीरा ने सोचा बोलता ही जा रहा है और उधर बारिश तेज हुए जा रही है। लगता है कि इसी के साथ आगे तक जाना होगा सोच के वह चुपचाप उसके साथ कार में जा कर बैठ गई।
कुछ दूर आगे जाने पर नीरज ने उसके घर का पता पूछा ..तो उसने कहा कि वह चले जहाँ उतरना होगा वह बता देगी यहाँ से ज्यादा दूर नही है उसका घर ..
""आप यहाँ अक्सर आती है मैंने देखा है , आपको नीरज ने कहा
"जी हाँ बस कभी कभी आ जाती हूँ ,अधिकतर चुप रहने वाली नीरा इस से ज्यादा कुछ नही बोल पायी
बस बस यही किनारे पर रोक दे आगे गली में मेरा घर है मैं चली जाऊँगी धन्यवाद आपका
यह कह कर वह तेजी से उतरी और सामने गली में गुम हो गई !
अजीब है कुछ नीरज यह सोचते सोचते आगे निकल गया
यूं ही कुछ दिन बीत गए ..नीरज आज फ़िर झील पर पहुँचा उसका अनुमान सही था वह अजीब सी लड़की वही अपन परिचित कोने में बैठी थी हलके गुलाबी रंग की साड़ी में वह ख़ुद झील में खिला कमल ही दिख रही थी और आज वह किसी गहरे सोच में भी नही थी .क्यूँकी उसने नज़र उठा के उसकी तरफ़ देखा और हौले से मुस्करा दी ,नीरज की हिम्मत बढ़ी वह उसके पास गया ,
नमस्ते जी !!उस दिन तो आप अपना नाम बताये बिना ही चली गई चलिए मैं अपना नाम बता देता हूँ मेरा नाम नीरज है और काम क्या करता हूँ यह तो मैंने आपको उस दिन बता ही दिया था शायद याद होगा आपको '
"हाँ मुझे याद है कैसे भूल सकती हूँ ,मेरा नामा नीरा है मैं एक कम्पनी में जॉब करती हूँ थोड़ा बहुत लिखने का शौक है सो कभी कभी वह भी कर लेती हूँ ,कह के वह मुस्करा दी
अच्छा यह तो बहुत अच्छी बात है किसी दिन आपकी कविता जरुर सुनूंगा ,जब आप चाहे सुना दे वैसे कल मेरी पेंटिंग्स की एक प्रदशनी कला केन्द्र में लग रही है यदि आप देखना चाहे तो आ सकती है ,यह लीजिये मेरा यह कार्ड है आप शाम को वहाँ ६ बजे तक आ जाए मुझे अच्छा लगेगा !!
अच्छा ठीक है देखतीं हूँ कोई विशेष काम न आ पड़ा तो जरुर आऊँगी कह कर उसने कार्ड ले लिया !
अगले दिन जब वह ऑफिस से निकली तो कुछ सोच के कला केन्द्र चल पड़ी नीरज उसको वहाँ देख के बहुत खुश हो गया .नीरा को उसके बनाए चित्र अपनी कविता के रूप को दर्शाते से दिख रहे थे वह जैसे उस में अपना लिखा तलाश कर रही थी !,चित्र वाकई बहुत सुंदर बनाते हैं आप .......आपकी यह प्रद्शनी सफल हो यही शुभकामना देती हूँ आपको .अब चलती हूँ फ़िर मिलेंगे कह कर वह बाहर आ गई !
अगले दिन आसमान में फ़िर से हलके बादलों का घेरा था तेज हवा से पेड़ की डालियाँ झूम रही थी हलकी हलकी ठंड अपने आगोश में लेने थी पूरी फिजां को ,नीरज झील के किनारे चल पड़ा ,उस को लगा आज नीरा वहाँ नही होगी ,पर उसकी आशा के विपरीत वह वहीं बैठी थी अपनी ही जगह पर नीरज के पास आने पर वह मुस्कराई ,नीरज ने पूछा की
क्या वह यहाँ बैठ सकता है ,नीरज ने पूछा
हाँ हाँ क्यों नही आप बैठिये न नीरा ने मुस्करा के कहा ..उसके हाथ में एक लाल रंग की डायरी थी ,नीरज को उसने अपनी कुछ कविता पढ़वाई ,
आप तो बहुत अच्छा लिखती हैं क्या आपने कभी इनको कही प्रकाशित करवाने का सोचा . ?
"नही कभी सोचा तो नही क्या यह इस लायक हैं ?"
अरे आप ख़ुद पर भरोसा रखे आप बहुत अच्छा लिखती है .मैं जरुर बात करूँगा किसी प्रकाशक से नीरज ने उसको आश्वासन दिया !
इस तरह उस दिन की मुलाकात खत्म हो गई .पर अकसर रोज़ ही वहाँ मिलना हो जाता ,एक दिन नीरज ने पूछा कि तुम यूं ही घूमने आती हो क्या यह अकेलापन तुम्हे परेशान नही करता ?
नही !!अब आदत सी पड़ गई है यहाँ आ के बहुत सकून मिलता है मुझे
प्रकति बहुत मासूम है इस में इंसान सा छल कपट नही है ,नीरा ने कहा
सुन के नीरज अजब तरीके से मुस्कराया अच्छा क्या तुमने कभी किसी को अपना साथी बनाने या जीवन को किसी के साथ आगे बिताने की नही सोची , ?
नही मैं किसी रिश्ते में बंधना नही चाहती पर हाँ यह मानती हूँ की यदि मन साफ हो तो एक स्त्री पुरूष अच्छे मित्र साबित होतें हैं पर हमारा समाज अक्सर इन रिश्तों को अच्छे स्वस्थ नजरिये से नही देखता और फ़िर यह सम्बन्ध ज्यादा देर तक चल भी नही पाते यूं ,मैं प्रेम या प्रेम करने वालों से कोई शिकायत नही कर रही हूँ पर मैं सोचती हूँ की जब आप किसी से बहुत प्यार करते हैं तो एक अविश्वास या एक अपना ही स्वामित्व का भाव दिल में पैदा होने लगता है , वह बन्धन यदि प्रेम से एक दूसरे को समझने वाला हो ,एक दूसरे की भावना को इज्जत देता हो तो दूर तक निभ जाता है पर यदि इस में अहम् आ जाए तो जीवन एक समझौता बन जाता है और वही समझौता मुझे पसन्द नही , !
फ़िर भी स्त्री पुरूष के दूसरे के पूरक हैं ,एक दूजे के बिना अधूरे हैं ,तुम इन संबंधो को बन्धन क्यों मानती हो ?चलो यूं शादी विवाह के बन्धन में बंधना न चाहो तो यूं भी रहा जा सकता है आज कल तो यह आम बात है , वैसे भी आज कल किसको फुरसत है कि यूं बंधे ,मैं तो यही मानता हूँ कि जब तक अपना काम न हो जाए तब तक उस रिश्ते को बनाए रखो , और बाद में जब वह बोझ लगने लगे तो उतार दो उस रिश्ते को किसी पुराने कपडे सा , आज ज़िंदगी तेज रफ़्तार से भाग रही है .कौन किस के लिए क्या सोचता है कह कर वह अपनी आंखों में चमक ला के मुस्करा दिया ..और मैं आपकी किताब जरुर पब्लिश करवा दूंगा बस आपको कुछ घंटे का अपना वक्त मुझे देना होगा ,!
क्या मतलब है आपका ???कहते है न औरत के पास एक ख़ास नज़र होती है सामने वाले को पहचानने की नीरा को भी अब उसको मंशा समझ में आने लगी
यह तो अपने अपन विचार हैं ,मैंने अपने बता दिए आप अपने विचारों के साथ अपना सोचने को आजाद हैं कह के नीरा ने बात बदलने कि कोशिश की..
अरे इतनी नासमझ भी नही है आप , मैं क्या कह रहा हूँ आप अच्छे से समझ रही है मेरी बात को . बस कुछ घंटे ही तो मांग रहा हूँ आपसे ,कौन से जीवन भर के बन्धन की बात कर रहा हूँ !!
जी , मैं अच्छे से समझ रही हूँ कि आप क्या बात कर रहे हैं .भविष्य में मुझसे मिलने की कोशिश न करे तो ही आपके लिए बेहतर होगा , अपनी भावनाओं को यूं डायरी में बिखेरना ज्यादा अच्छा है पर यूं किसी के साथ समझौता करना मुझे मंजूर नही कह कर नीरा वहाँ से चली गई .नीरज अपना ठगा सा मुंह ले कर वहीं खड़ा रह गया !!
है उपकार बहुत उनका मुझ पर
जिन्होंने मुझे हर राह पर ठोकर दी है
बढ़ी हूँ उतने ही जोश से
अपनी मजिल की तरफ़
जिस राह ने नई उलझन दी है !!
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16 कहानीप्रेमियों का कहना है :
रंजना जी
अच्छी कहानी लिखी है आपने किन्तु मैं आपके विचारों से सहमत नहीं । नारी हो या पुरूष- दोनो एक दूसरे के बिना अकेले और अधूरे हैं । एक दूसरे की आवश्यकता दोनो को रहती है। ये पश्चिम की नकल है कि अपने देश में भी अकेले रहने की प्रवृति बढ़ रही है।
रहा सवाल पुरूष की कुदृष्टि का तो वो तो केवल नारी ही समझ सकती है और वही उसका जवाब भी दे सकती है । नारी की वर्तमान दशा का सही चित्र खींचने के लिए बधाई
kash main kahin dhoondh laata un shabdoon ko jo taarif kur sake aapki.
रंजू जी मैं तो आपकी लेखनी का दीवाना पहले से ही था, आज मेरी दीवानगी और मुक्कमल हो गई.एक बात मैं जरुर कहना चाहूँगा कि आप जैसे लोगों को जरा ध्यान देना चाहिए की विषय पर किसी को उंगली उठाने का मौका नहीं मिलने पाए.
मैं शोभा जी के विचारों से आंशिक तौर पे सहमत हूँ, क्योंकि कहानी लिखते वक्त कहानीकार के मन में क्या होता है यह सिर्फ़ कहानीकार ही जान सकता है,
खैर, अंत भला तो सब भला.
अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
विचारों के उफान को मस्दिष्क की सीमाओं के दायरे में अंकित करती आगे यूं बढ़ जाना नीरा के लिए सही था ? मस्दिष्क की शिराएँ कभी विद्रोह नहीं किए? प्रकृति पापात्मा है इसे दोहराने दीजिये ...साँस भर एहसास के लिए घुटने का अभ्यास कब तक जारी रहना चाहिए?..माफ़ कीजिये मैं किसी भी सभ्यता या संस्कृति के ख़िलाफ़ नहीं हूँ पर उसके नाम पर
क्यों कोई अपनी चाहतों के चीख को अनसुना कर दे?....कहानी अच्छी है ...उसे खुबसूरत मोड़ देती तो शायद और अच्छा होता ...मैं ग़लत भी हो सकती हूँ....
सुनीता यादव
कहानी अच्छी है... हर कहानी खुबसुरत हो यह जरूरी नही...
मुझे आपकी कहानी मेरी एक क्लाइंट की कहानी से मिलती जुलती है... जिन्दगी को लेकर हर इंसान का अलग अलग नजरिया होता है, यही नही एक ही इंसान का नजरिया वक्त के साथ बदल भी देता है... यह कहानी मे दिख रहा है... इस तरह से यह कहानी जिन्दगी के बहुत करीब है... और बहुत सोच समझकर लिखी गयी है।
hi ranju ji how r u
aapki kahani achi lagi
but is baar is mein toda sa or interst aa sakta tha
aap ismein toda sa climex dall sakti ho
har koi esa to nahi hota actuly
jab aapki khani mein ye seen aata hai ki vo painter unse 2 ya 4 hours mangta hai to mene ye socha tha ki neera shayad us se galat samjh rahi hogi wastav mein vo uske 3-4 hours isliye maang raha hota hia ki vo uski ek achi si painting banyega but vo kuch galatfehmi ki wajhas se usse naaraj hokar chali jaati hai" ye toda filmi styel wala hai aap is ko or acha kar sakti thi kyo ki mujhe maaloom hai YOU ARE THE VERYYYY GOOOOOOD writer or poetess
keep it up
बहुत अच्छी कहानी। यह कहानीकार का अधिकार है कि वह अपनी कहानी को कैसा मोड दे ।
रंजना जी,मुखौटा विषय पर आपका लेख वाकई उन लोगों की हकीकत को बयान करता जो आज अपने आप को समाज के कथित ठेकेदार कहते हैं,क्योंकि अकसर महिलाओं को रिझाने का इन्हीं लोगों का काम है। लेकिन आज के दौर में कुछ अवसरवादी महिलाएं भी अपना नाम रोशन कराने के लिये पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण कर रहीं हैं।
Ranjana ji,
yah ek acchi story hai, main Mrs. Asha Joglekar se puri tarah sahmat hoon
रंजना जी !
बिलंब से टिपण्णी के लिए क्षमा मांगते हुए यह कहना चाहूंगा कि आपकी कहानी मैंने पोस्ट होने के कुछ घंटों में ही पढ़ ली थी. परन्तु टिपण्णी के लिए विलम्ब हुआ. आपकी कहानी 'मुखौटे' में आपने बहुत ही संतुलित तरीके से यथार्थ का चित्रण किया है. यह सही है कि पाठक की अभिलाषा, अपनी अभिरुचि के अनुसार भिन्न भी हो सकती है. परन्तु लेखक का दायित्व उसके सामने सभी विकल्पों का रास्ता खुला छोड़ देना संभवतः सर्वाधिक उपयुक्त है. आपने जिस कथानक और विषय को कहानी के मध्यम से प्रस्तुत किया है, वह महिलाओं और पुरुषों दोनों के बीच विचार करने के बिदु देता है.सामयिक विषय और नारी जगत पर लिखने की आपकी कला को नमन
रंजना जी,
कहानी बहुत अच्छी है..
वर्तमान में स्वार्थ-सिद्धि के लिये मित-भाषी होकर एवं वाक-पटुता से किन्हीं विशेष परिस्थितियों का लाभ उठाने की मंशा रखने वाले मुखौटों के पीछे छुपे चेहरों से सचेत व सावधान रहने का संदेश निहित है आपकी कहानी में
बधाई
कहानी एक सच को बताती है जिसे आप कभी कास्टिंग काउच का नाम देते हैं या फ़िर महिला का शोषण कहते हैं.पर यह तो कुछ भी नया नहीं है -इतिहास देखें तो वहाँ भी नारी के शोषण या स्वार्थपूर्ति के लिए उपयोग या फ़िर उसकी कमजोरी का फायदा उठाने की बात कई जगह देखने को मिलती है और आज के अति आधुनिक समाज में भी किसी न किसी रूप में यह होता है-आज कल मीडिया की वजह से बहुत सी बातें सामने आ जाती हैं जो पहले मालूम नहीं चलती थीं.
कड़वा सच तो यही है की आज भी नारी कमजोर ही है चाहे वह कितना भी ऊँचा ohda paa लें.बहुत से udharan हैं अपने आस पास ही देखें.सच कहूँ मेरा mananaa है की नारी और पुरूष दोनों ही एक duusre के purak हैं.
आप की कहानी से yehi seekh मिलती है-की नारी को ही अपना bachav करना है.उसे ही अच्छे बुरे की parakh karni होगी .taki
अगर उसे aisee किसी स्थिति का samana करना पड़े तो वह कैसे अपने आप को बिना कोई samjhota किए sambhale .
शायद अकेली महिला का जीवन कठिन तो हर युग में ही रहा होगा-
अच्छी प्रस्तुति
bahut khob ranjna ji, apki ye kahani bahut achi lagi or ye panktiya to bahut hi sunder lagi.
है उपकार बहुत उनका मुझ पर
जिन्होंने मुझे हर राह पर ठोकर दी है
बढ़ी हूँ उतने ही जोश से
अपनी मजिल की तरफ़
जिस राह ने नई उलझन दी है !!
lekin niraj wali baat se main kuch sehmat nhi hu ki usne jo kaha wo soch har purush ki ho. ye bhi to ho shkta hai ki jo baat wo kehna chhata tha uska matlab glat nikala gaya ho ya wo jo kehna chahta tha usko kehna nhi aaya.
Ranjana ji,
Aapki kahani bahut khoobsoorat hai and saath main aapka lekhan (hindi) bhi very good hai.
Koi thrill adventure suspense vali kahani bhi likyiye to mujhe bahut maja aayega.
Anuj
रंजना जी कहानी-लेखन में भी आप दिन-प्रतिदिन विकास करती जा रही हैं। यह कहानी आपके लेखन-कला के विकास की कहानी कहती है। आप ऎसे हीं लिखते रहें और बढते रहें, यही मेरी कामना है। नारी मनोभावों को आपसे अच्छा कोई शब्दों में पिरो नहीं सकता।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
Hindi Sahitya se mera lagaaw bachpan se rahaa hai par yah lagaav kahaaniyaan padhne tak hi seenit rahaa. Bahut dinon ke pashchaat aine koi Hindi kathaa padhi hai.
bas yahi kahnaa chaahoongaa: Ati sundar.
Dhanyawaad,
Paagal
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