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कमरे में एक स्टूल। कमरे में सिर्फ जाई। हाथ में वाकमैन। जेब में,राहुल ने जो भेजी है वो, केसेट। जाई का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ। गुस्से से जाई रेकार्डिंग शुरू करती है।
केसेट रेकार्डिंग: साईड ए।
जनाब राहुल देशपाण्डे!
नमस्ते।
आपने भेजी हुइ केसेट मिली। आपने बिना सोचे समझे रचे हुए शब्दों के महल भी मिले। राहुल , मुझे तुम पर बहुत विश्वास हो चला था। राहुल! तुम्हारे दोस्ताना अंदाज और स्नेहमयी बातों से मै तुम्हारा आदर करने लगी थी। तुम्हारी केसेट सुनी और उसके हर एक शब्द के साथ तुम मेरे दिल से, मेरे मन से, उतरते चले गए।
तुम पर मैने जो विश्वास किया, उसकी तुमने धज्जियाँ उडा दी राहुल। एक ही पल में तुमने हमारी दोस्ती को मिट्टी में मिला दिया।
मै ही गलत थी।
सब की तरह ये नहीं है,राहुल कुछ अलग है। ना जाने मेरे मन ने ऐसा क्यों सोचा और मैने तुमपर विश्वास किया। तुम्हारे साथ अपनी सारी बातें बाँटी।
हम दोनों के तुम प्यारे मित्र बन बैठे थे। हाँ, जुई को भी ये बात पसंद नहीं आने वाली, ये जान लो तुम। उसे जब तुम्हारी इस केसेट के स्टंट का पता चलेगा ना, उसका हाल तो मुझसे भी बुरा होगा।
कम से कम मै तुम्हें जवाब तो रेकार्ड कर के भेज रहीं हूँ। वो तो तुम्हारा नाम तक घर में किसी को लेने नहीं देने वाली। इसे तुम्हारा नसीब जानो के तुमने भेजी ये केसेट पहले मेरे हाथ लगी। इस केसेट को देख वो क्या करेगी इसकी कल्पना करके ही बदन में झुरझुरी दौडने लगती है। अरे, वो कितना गुस्सा करेगी इसका अंदाजा है क्या? मेरी ही बहन है ना वो भी। मै एक गुस्सैल तो वो पाँच। तुम्हे तो पता है। तुम तो एक बार भुगत भी चुके हो। फिर भी तुमने ये धॄष्टता की राहुल ?
हं..
कौन, कहाँ का राहुल!
छै महीने पहले देशपाण्डे चाचाजी का लडका हमारे घर आता क्या है। एक महीना भर रहता क्या है। हमारा प्यारा मित्र बनता क्या है, और छै महीने होते नहीं है तो "प्रपोज" करता है?
वो भी कायरों की तरह केसेट भेज कर?
अरे यहाँ थे तभी कहा होता तो बात वही रफा दफा हो गई होती। लेकिन मन में कुछ और ही रखकर तुम हमारे साथ पूरा महीना - एक महीना धोखाधडी करते रहे राहुल !
रिकार्डिंग करते- करते अब जाई की आवाज़ काफी तेज हो चली है।
तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई राहुल ?
इतना बडा कदम उठाने की तुम्हारी हिम्मत ही कैसे हुई?
तुमने साबित कर दिया कि तुम भी वैसे ही हो।
सब की तरह।
तुम अलग हो ये मेरा भ्रम था ये साबित कर दिया राहुल ।
थेंक यू।
थेंक यू जनाब राहुल देशपाण्डे।
हमें नींद से जगाने के लिये, भ्रम का परदा हटाने के लिये।
छै महीने बाद ही सही। जल्दी ही था, कहना चाहिये अब तो।
"जाई, जुई,राहुल " क्या दोस्ती है, कहती थी जुई। अभिमान करने जैसी दोस्ती है, कहती थी जुई। तुमने हमारे पाँव तले की ज़मीन खिसका दी। तुमने सब लडको की तरह हरकतें कर के दिखा दी।
बहुत गुस्सा आ रहा है राहुल ।
तुम पर बहुत गुस्सा आ रहा है।
तुम यहाँ होते तो हम दोनो ने मिलकर तुम्हे इतना पीटा होता, इतना पीटा होता। क्यों इतनी अच्छी दोस्ती का सत्यानाश किया राहुल ? क्यों राहुल?
दुख होता है।
बहुत दुख होता है रे।
इतनी अच्छी दोस्ती को तुम एक क्षण में इस तरह खराब कर दोगे ऐसा सोचा भी नहीं था।
ना राहुल।
तुम्हारी ये हरकत छोड देने लायक नहीं है। माफ करने लायक ही नहीं है। तुम हम दोनो सहेलियों को खो चुके हो राहुल ।
एक महीना ही सही, मगर तुम हमारे प्यारे दोस्त थे, इसलिये एक मौका दे रही हूँ। केसेट कि दूसरी बाजू में मै जो बता रही हूँ वही करो। कम से कम इतना एहसान कीजिए हम पर। हाँ एक गिलास ठंडे पानी का ले आओ, और पी जाओ, और फिर केसेट पलटना।
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(जाई स्टूल पर बैठती है। केसेट पलटती है। चेहरे पर नटखट हँसी। अब हसी कि अब हसी ऐसी अदा मिश्रित मुद्रा। होठों को ना खोलते हुए हँसने लगती है)
अब पता चलेगा साहब को कि खेल खेलना क्या होता है। साहब आपको ही सिर्फ नही आता है खेल खेलना , हम भी कुछ कम नहीं है। अब चेहरा देखने जैसा हो जाएगा इनका। अब तक तो चार पाँच गिलास पानी पी चुके होंगे जनाब।
(जाइ फिर संजिदा हो कर, रेकार्डिंग शुरू करती है)
केसेट रेकार्डिंग: साईड बी।
राहुल !राहुल !
सारी रे।
तुम्हे कैसा झटका लगा होगा इस बात का खयाल है मुझे। राहुल , पिछली साईड में जो रेकार्ड किया है वो सब मजाक था रे।
सब झूठ है।
बहुत मन से लगा ली क्या मेरी बात?
तो क्या करती? तुम्हारी ही शैली का प्रयोग किया है मैने। खेल लेने की शैली।
तुमने नहीं उस दिन गश खाकर झूठ मूठ गिर गये थे। तब हम दोनों की कैसे सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी? जुई को तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था। एकदम रोने जो लगी वो। मेरी भी जान निकल गई थी। क्या हुआ राहुल ? क्या हुआ राहुल ? कह कर मै तुम्हे जोर जोर से हिला रही थी। तुम मगर भैसे की तरह आराम से पड़े थे। दौड कर मै डाक्टर को फोन करती के तुमने पीछे से आकर हाथों से मेरी आँखें ढक दी।
मै तो रो पडी थी तब।
तुमने कहा था, रो क्यो रही हो पगली वो तो मजाक था। मै दौड्कर दुसरे कमरे में चली गई थी फिर। दरवाजा भी लगा लिया था। तुम्हे कुछ नही हुआ है इसका अत्यानंद या तुम्हारा दिया हुआ झटका ? मै किस बात के लिये रो रही थी मुझे ही समझ में नहीं आ रहा था।
तुम आदमी लोग कैसे निष्ठुर होते हो? किसी के दिल का खयाल कभी होता ही नही तुम लोगों में। उस समय मुझे तो लग रहा था मेरी साँस ही अटक गई है। उस लिहाज से ये मजाक बडा तो नहीं है ना राहुल ?
फिर भी राहुल !
सारी रे।
शायद थोड़ा ज्यादा ही कठोर कह गई मैं। मगर तुम भी ग्रेट ही हो। केसेट रिकार्ड कर के भेजी। वो भी डाक से। पापाजी माँ के हाथ लग जाती तो? तुम लड़के लोग निपट मूर्ख होते हो कुछ मामलो में। जहाँ चाहिये, वहाँ तुम्हारी होशियारी नजर नहीं आती है।
नसीब मेरा, जब डाकिया पार्सल चिल्लाया , तब मै दौडी और घर में कोई नहीं था। पार्सल पर राहुल देशपाण्डे पढकर अंधे को आँखे मिलने जैसी खुशी हुई मुझे। मेरा आनंद देख बेचारा डाकिया घबडा गया था। कब पार्सल खोलने को मिलता है इस चक्कर में डाकिये के कागज पर दस्तखत करने जितना समय भी मुझे बहुत ज्यादा लग रहा था।
सिर्फ तुम्हारा पार्सल लेकर मैं कितना नाची हूँ पता है? कब उस पार्सल को खोलती हूँ ऐसा हो रहा था और केसेट देखकर कब सुनती हूँ ऐसा हो गया।
और क्यों जी? इतनी बडी केसेट में कितनी लाइने रेकार्ड कराई आपने? तो चार. कह दिया कि, दूर जाकर पता चला तुम्हारे सिवाय रह नहीं सकता। मै तुमसे प्यार करने लगा हूँ। मुझसे शादी करोगी?, जवाब की राह देख रहा हूँ। राहुल .. बस।
यहाँ भी कंजूसी राहुल? मै तुम्हे चिक्कू कहती थी वो सच में झूठ नही था।
ए राहुल, तुम्हे मेरा जवाब सुनना है ना? तुम कितनी आसानी से कह गए। लेकिन कितना तरसाने के बाद राहुल?
जब तुम वापस जाने के लिये निकले थे, हम तीनों ही गुम- सुम हो गए थे। सब की आँखे नम थीं। तभी लगा था सब कह दूँ। तुम्हारी भी आँखों में मैने वहीं देखा था जो मेरे मन में था। लेकिन तुम भी कुछ नही बोलें। जुई तो दरवाजे तक भी नही आई।
राहुल तुम्हे याद है?
जुई तुम्हे दोस्त मानने को तैयार नहीं थी तब तुम मुझे किस तरह मस्का लगाते थे। एक ही छत के नीचे रहने वाले हम उम्र लोगों को तो दोस्त होना चाहिये ऐसा तुम्हारा कहना था। तुम्हारे मीठे बोल आखिर काम कर ही गए थे, और तुमने अपनी मन मानी कर ही ली थी। जाते समय कहा था तुमने, जुई को कहो अब ना गिरे, अब राहुल नही रहेगा दौडने के लिये। सच उस समय तुमने क्या- क्या नहीं किया था। वही घटना थी राहुल, जबसे तुम मुझे अच्छे लगने लगे थे।
जुई को खिडकी के पास पडा देख पहले तो मुझे ऐसे लगा कि वो भी तुम्हारी तरह मस्करी ही कर रही है। मगर वो कुछ इस तरह टेढी- मेढी पडी हुई थी के मुझे तुरंत ही मानना पडा के कुछ गड़बड़ है। उसे सच में कुछ हो गया है।
माँ का भी उसे देख बुरा हाल हो चला था। मै तुम्हारा नाम लेकर चिल्लाने लगी। राहुल- राहुल, जुई को क्या हो गया है ,देखो ना राहुल ! तुम दौडकर आये। उसके बाद तुम यूँ एक्शन लेते गए वो देखने लायक था। तुम्हारे चेहरे पर भी मै अपनी ही तरह डर और चिंता देख रही थी। तुमने झट पिताजी को, डाक्टर को फोन लगाए।
जब डाक्टर ने जुई को एडमिट करने के बारे में बताया तब मैने तुमसे पूछा राहुल! मेरी जुई को कुछ होगा तो नही ना? मुझे तब बहुत डर लग रहा था मगर तुमने दिलासा दिलाई। कहने लगे, जाई तुम्हारी जुई को कुछ नहीं होगा। सच राहुल अब हँसी आती है, एक वकालत किया हुआ राहुल डाक्टरों की तरह मुझे दिलासा देता है और मै बावली उस पर पूरा एतबार करती हूँ। मुझे बहुत अच्छा लगा था उस समय। तब मुझे पता चला इस लडके की बातों से भी मुझे दिलासा मिलती है। तुम ने बहुत कुछ किया उस समय हमारे लिये राहुल ।
राहुल ! तुम्हारी केसेट बहुत अच्छी लगी रे। हाँ राहुल! मै भी तुमसे बहोत प्यार करती हूँ। तुम्हे मुझसे यही सुनना था ना?
सच राहुल , तुम कहते थे ना कि शादी के बाद लडकी- लडके का घर बसाती है -ऐसा नहीं कहना चाहिये। घर तो दोनो दूसरे एक का बसाते हैं। किसी एक के किये से नहीं होता। तुम कहते थे घर दोनो का होता है दोनो मिलकर चलाते हैं।
संसार दो दिलों का सजाया हुआ सपना कहते थे तुम। तभी मुझे एहसास हुआ था के तुम कुछ अलग हो। मुझे लगता था इसकी हमसफर जो भी होगी कितनी भाग्यशाली होगी? ऐसा सोचते- सोचते कब मै उस जगह खुद को ही देखने लगी पता ही नहीं चला।
तुम्हारे जाते समय देशपाण्डे चाचा को मैने कितना मनाने की कोशिश की कि चाचा रूक जाइए कुछ और दिन रूक जाइए मगर नहीं उनका एक ही राग अलापना शुरू था- कोर्ट की तारीखें थी तब तक रूके थें। महीने से तुम लोगों को तंग करते चले आ रहे हैं। अब जाना ही होगा। उधर के सब काम रुके हुए हैं।
कम से कम राहुल को तो कुछ दिन रहने दीजिए- कहने पर जनाब आप भी उधर के हो गये। आपको भी उधर के सारे काम दिखाई दे रहे थे। इस जाई की आँखों में बसी प्रीत नजर नहीं आ रही थी।
सच कहूँ राहुल ! तुम अगर एक भी दिन और रहते ना, तो मै तभी सब कुछ बता देती।
मै कितनी खुश हूँ मालूम है? मेरा राहुल , (शरमाकर हँसती है) तेरी जाई कितनी खुश है ये देखने के लिये तुम यहाँ चाहिये थे। जुई को भी बडी खुशी होगी। राहुल जीजाजी कहते समय उसे कैसा लगेगा।? हं- हं। (फिर शरमाकर हँसती है)
थेक्यू राहुल। थेक्यू वेरी मच। छै महीने से तडपने वाले दिल को तुमने सुकून दिया है। मेरी क्या हालत हो गई थी तुम्हे अंदाजा ना होगा। जाई राहुल देशपाण्डे कितना सुंदर लगता है ये नाम। तुमने भेजी ये केसेट मेरे लिये नया जीवन ले आई है राहुल! तुम्हारे लिखे हुए ये अक्षर, डियर जे यू आय...
जू........(अचानक हकबका जाती है)
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जु ई ई ई ई ई ई ई (पीडा से चीखती है) डियर जुई, राहुल तुमने ये केसेट जुई के लिये बनाई है? राहुल तुमने ये केसेट जुई को भेजी है? (रोते रोते स्टूल पकड कर नीचे बैठ जाती है)
जूई, जूई (रोना रूकता ही नही है। टेप रेकार्डर बंद करती है। बाजू में रख देती है। अचानक गुस्से से फिर से टेप रेकार्डर उठाती है और फेकने के लिये हाथ उठाती है। फिर रोना आ जाता है। हाथ नीचे आ जाता है। टेप रेकार्डर हाथ से छूट जाता है)
मैने क्यों पहले ठीक से नहीं पढा? क्यों? क्यों? मेरे ही साथ ये सब क्यों होता है? राहुल! मैने कितने सपने सजाए थे राहुल!
(अचानक फिरसे सावधान हो जाती है। आँखों में चमक।)
मै जुई को ये केसेट दिखाउँगी ही नहीं।
(फिर रोना आ जाता है)
कैसे मुमकिन है?
जुई, मेरी जुई, जुई को राहुल जैसा होनहार लडका फिर कब मिलेगा?
(खुद को ही समझाती है) जुई को राहुल ने प्रपोज किया है- ये तो खुशी की खबर है जाई। जाई ये तो खुशी की खबर है। जाई तुम्हे ये केसेट जुई को देते समय बहुत खुशी होनेवाली है।
जाई, हं कैसे कहोगी? जुई मेडम हमारे पास क्या है? एक लडके ने किसी के लिये तोहफा भेजा है रे।
अ.......ह......ss ऐसे नही ऐसे नहीं कुछ देना पडेगा बच्चू।
कुछ देना पडेगा.....हं...
राहुल ! मेरी कहानी किसी को कभी पता नहीं चलेगी।
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नही मिलता.
कहीं जमीं तो कहीं आँसमा नही मिलता.
तुषार जोशी, नागपुर
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3 कहानीप्रेमियों का कहना है :
"जवाब"
शीर्षक से ही दिल में अनगिनत सवाल उठते हैं आखिर ये जवाब किस प्रश्न का है। कहानी बहुत ही अच्छी लगी, कहीं कुछ अपनी ही कहानी लगी। आखिर ये भावनाएं न जाने कब किससे जुड़ जाती हैं। मुझे कहानी के पात्र राहुल पर थोड़ा गुस्सा सा आता है। आखिर कोई पहले ही क्यों नहीं ये स्पष्ट कर देता कि उसका स्नेह किसके लिए। आखिर क्यों ये भ्रम बनाए रहते हैं जिससे सामने वाला भ्रमित हो जाता है। जाई जुई दोनों को ही वो समान प्यार करता था, भले उस प्यार में कहीं न कहीं अंतर हो राहुल की ओर से लेकिन उसे जाई को स्प्षट करना चाहिए था। बहुत दुख होता है त्रिकोणीय प्यार देख कर। आखिर ऐसा क्यों होता है???
कहानी बहुत ही भावनात्मक है।
प्रीति मिश्रा
नई दिल्ली
तुषार जी कहानी अच्छी है ।आपसे वैसे कुछ ज्यादा उम्मीदें हैं। वर्तनीगत व मात्राऒं की अशुद्धियाँ खटक रही हैं।
तुषार जी, अच्छी कहानी बन पड़ी है.
इसके लिए मेरी प्यार भरी मुबारकबाद.
प्रीती जी, आपके प्रश्न वाजिब हैं,आपकी टिप्पदी बताती है की आप किस कदर भावुक हैं.उम्मीद करता हूँ तुषार जी इस गुत्थी को सुलझायेंगे.
तुषार जी आपसे अनुरोध करना चाहूँगा की आप अनुराध जी के टिप्पदी पर जरुर ध्यान देंगे.
शुभकामनाओं समेत
आलोक सिंह "साहिल"
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