मेरी यह पहली कहानी आर्मी माहॉल से जुड़ी है। पापा आर्मी में थे, बहुत वक़्त वहाँ के माहौल में जम्मू में बीता। उस वक़्त वहाँ सुने इस डोगरी गाने की लाइन आज भी मेरे दिमाग़ में घूमती है, उसी को शीर्षक बना के मैने अपनी पहली कहानी लिखी है। .. शुक्रिया
6 दिसम्बर की शाम रेडियो पर ख़बर सुनाई जा रही थी कि कट्टर पंथियों ने बाबरी मस्जिद तोड़ दी सारे देश में दंगा फैल गया है, हज़ारों लोग मारे गये हैं, राष्ट्रीय शोक की घोषणा कर दी गयी है। सब तरफ़ दुख ओर दर्द की लहर है, सारा माहौल सहमा हुआ सुनसान हो जाता है और एक चुप सी छा जाती है।
राजेश भी उन्ही सिपाहियों में देश की रक्षा के लिए वहाँ बार्डर पर तैनात देश का सिपाही था। वो जिस बार्डर पर था वहाँ बर्फ़ और ठंड से साँस लेना तक मुश्किल था। उसने जब से यह बाबरी अयोध्या की खबर सुन थी उसका दिल कांप रहा था उसका घर संसार भी उसी जगह था जहाँ से यह सब ख़बरे आ रही थी।
दूर बार्डर पर लड़ते सैनिक सिपाहियों के शिविर में भी जहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब कंधे से कंधा मिला कर देश की रक्षा के लिए मोर्चा संभाले खड़े हैं, यहाँ कोई बाबरी, आयौध्या का झगड़ा नही सिर्फ़ अपने देश के लिए मर मिटने को तैयार हैं। बस..सोच में डूबे हैं वो सब भी की हम क्यूँ और किसके लिए लड़ रहे हैं? आख़िर यहाँ हमने अपने जान को दाँव पर लगा रखा है, वहाँ हमारे परिवार वाले एक लड़ाई लड़ रहे हैं। यहाँ सर्दी गर्मी, बरसात, धूप की प्रवाह किए बिना यह युद्ध सबको दिख तो रहा है.. पर देश के अंदर यह कौन सा अघोषित युद्ध लड़ा जा रहा है जिसका कोई नियम नही है।
राजेश भी उन्ही सिपाहियों में देश की रक्षा के लिए वहाँ बार्डर पर तैनात देश का सिपाही था। वो जिस बार्डर पर था वहाँ बर्फ़ और ठंड से साँस लेना तक मुश्किल था। उसने जब से यह बाबरी अयोध्या की खबर सुन थी उसका दिल कांप रहा था उसका घर संसार भी उसी जगह था जहाँ से यह सब ख़बरे आ रही थी। वो बहुत देर से अपनी पत्नी और बच्चे से बात करना चाहता था पर फोन लग नही रहा था और कई दिन से कोई ख़त भी नही आया था। दूर बर्फ़ीली पहाड़ी पर बनी यह पोस्ट बहुत सुनसान थी, सिर्फ़ कभी -कभी अचानक होने वाली गोलो की आवाज़ बता देती थी कि यहाँ भी कोई जीवन है ,चाहे वो सिर्फ़ नाम का है। शुरू शुरू में यहाँ की प्राकतिक सुन्दरता दिल को लुभाती है पर फिर वो सुनसान जगह इंसान को पागल करने लगती है .. राजेश अपने बेस कैंप के बाहर अपनी ड्यूटी पर था पर आज उसका ध्यान बार बार अपने घर की तरफ़ जा रहा था ... कानो में डोगरी गाने के बोल गूँज रहे थे.... "भला सिपाहिया डोगरिया दुइ दिन छुट्टी आ जा की तेरे बिना बडा मंदा लगदा ...".इसका अर्थ उस को उसकी पत्नी का संदेश देता लग रहा था कि दो दिन की छुट्टी ले कर मुझसे मिलने आ जाओ तुम बिन बहुत उदास सा लगता है सब, पर दिल में उसकी तस्वीर और कोई संदेश आने के इंतज़ार के सिवा वो कर भी क्या सकता था। भावी मिलन की आस लिए वो अपने परिचय पत्र के साथ रखी अपनी पत्नी, बच्चे की फोटो को देख लेता और सोच में डूब जाता।
तभी उसके साथी ने आ कर कहा की उसके लिए फोन है, लाइन बहुत जल्दी कट हो रही है, इसलिए जल्दी से आ के सुन ले। वो भागा उसका दिल किसी अनहोनी आशंका से डरा हुआ था और फोन पर जो उसने सुना वो उसके होश उड़ा देने के लिए काफी था ।वो यहाँ देश की अपनी मातरभूमि के लिए सब कुछ भुला के ड्यूटी कर रहा था ओर उधर देश के अंदर उसका सब कुछ एक जनून की भेंट चढ़ चुका था उसकी बीबी की इज़्ज़त, जान और उसके बेटे की साँसे यह अंधे धर्म का जनून ले गया था.. आँखो में आँसू के साथ धूंधली होती बीबी की तस्वीर.. मन को मोहती बच्चे की मुस्कान और कानो में गूँजता गीत.. भला सिपाहिया डोगरीया दो दिन छुट्टी आ जा की तेरे बिना मंदा लगदा उसको जैसे दूर कही गहरी वादी से आता लग रहा था। दिल में एक सन्नाटा सा छा गया था.. गोलो की आती आवाज़ अभी भी यह बता रही थी की जीवन अभी है ओर यूँ ही चलता रहेगा....
रंजना [रंजू ]
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20 कहानीप्रेमियों का कहना है :
रंजना जी,
यह आपकी पहली कहानी है, यह जान कर प्रसन्नता हुई। इस विधा में आपके दखल की पूरी संभावना है, क्योंकि इस लघु कथा में एक बडी कहानी का पूरा कथानक मौजूद है। कहानी की रोचकता और मार्मिकता जैसी शर्तें भी आपकी कहानी पूरी करती है।
कहानी को आप बढाये। इसके कई घटनाक्रम विस्तार माँग रहे हैं। प्रथम कहानी के तौर पर इसे मैं बहुत अच्छा प्रस्तुतिकरण कहूँगा।
*** राजीव रंजन प्रसाद
sirf ek baat kahunga
very good
its ur 1st attempt
it seems nice
& mujhe to bahut aachi lagi
ranjanaji,kahani kalash mein aapki pehli rachna per aapko anekanek shubhkamnain.ye pehla prayas bahut hi prashansneey hai.puri rachna mun ko choo lene wali hai.kahani bahut hi saral bhasha mein haiaur shikshaprad bhi hai.aap isi tarh likhti rahein .dhanywaad
shivani...
पहली लघुकथा ने यह बता दिया है कि आप में कहानी लेखन की भी संभावनाएं हैं। शायद इस से आपके उन शुभचिंतकों का मुंह बंद हो जो यह कहते आए हैं कि आप सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रेम की कविताएं बस लिख सकती हैं। जैसा कि अक्सर कहीं ना कहीं टिप्पणी मे देखने को मिल जाता है।
बधाई व शुभकामनाएं।
hi ranjna ji,
kahani to bahut acchi hai par end jaldi kar diya agar apne kuch baate or jodi hoti to sach main kahni padhne main kuch or maja aata. waise kahani bahaut achhi thi. badhai ho first kahani par.
रंजना जी
कहानी शुरू तो ठीक की है पर अन्त -- एकदम अचानक ? कुछ खास समझ नहीं आया ।
Dear Ranjana.
Muje aap ki kahani bahut aachii lagi & it was too good. but i think so it should b slightly lengthly. the end was short and some emotions shld b added. kahani bahut aachi hai par end thoda aur cahiye tha.
lekin kahani bahut aachi thi aur muje pasand aaaaeee. you should keep writing such storie's & it will b a pleasure for all ur frnd's and readers.
Muje aap jaise dost mile bahut aachaa laga. plese revert/reply
Regard's,
Sandesh Mane
bahut acchi kahani likhi. padkar ka kafi accha mehsus kiya k apki sayad ye pehli kahani nahi ho sakti ek pal laga . par doosra pal di kahan k marmikta ne muje chhhhhhooookar rakh diya .is kadi ko hamesha banakar rakhiyega.
बढ़िया कहानी. अब आप इस पर भी, बहुत बढ़िया...लिखते रहें. बधाई.
रंजना जी
आपकी पहली कहानी का विषय बहुत ही अच्छा लगा. आपके द्वारा इस विधा को भी आगे भरपूर लाभ मिलेगा ऐसी अपेक्षा रहेगी. इस लघु कथा के भरपूर विस्तार की संभावनायें थीं. परन्तु प्रथम प्रयास के नाते आप को साधुवाद एवं भविष्य के लिये शुभकामनायें. सादर श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'
Ranjana ji ye bhale hi aap ki peheli kahani hai "aur chhoti" parantu is kahani men samander ki geharai ko aap ne bhar diya hai"SAGER MEN GAGAR" iska bistar karen meri shubh kamanayen aap ke saath hai Govind singh
aadab, ranjana ji,
aap se ek nivedan hai ki itna marmik na likhe ..................
main bhi sarhad ki hifazat karne wale daste men hun .............
kahani kya hai .......
ankh nam kar gaieeeeeeeee.
regards...........
रंजना जी,
मैं क्या कहूँ..मैं खुद कहानी विधा के बारे में ज्यादा नहीं जानता, परंतु आप खुद ही समझ गई होंगी कि लघुकथा से कथा तक पहुँचाना होगा आपको अपनी इस कहानी को।
पहली कहानी थी। अच्छी थी। जिस तरह से आपकी कवितायें मन मोह लेती हैं, आपकी कहानी भी वैसा ही करेगी, ऐसी मुझे उम्मीद है।
तपन शर्मा
फ़ौजी तुझे सलाम और जो फ़ौजी की भावना को समझ कर लिख रहा है उसको सलाम दर सलाम
रंजू जी , प्रेम कविताओं की शिकायत मैं हीं करता था। अब नहीं करूँगा। आपने एक फौजी की जिंदगी और उसके मनोभाव को जिस तरह से उकेरा है,काबिले-तारीफ है। बस कहानी थोड़ी और लंबी हो सकती थी।लेकिन पहली कहानी होने के कारण सब क्षम्य है। ( मेरा भी कहानी में नया अनुभव हीं है, इसलिए मुझे कहने का कोई हक नहीं बनता :) )
आपकी अगली कहानी की प्रतीक्षा में-
विश्व दीपक 'तन्हा'
कहानी के किरदारों को, कथानक को नये रूप देने की आवश्यकता है और अपने संदेश को भी पात्रों के माध्यम से ही संप्रेषित करने की ज़रूरत है। फ़िर भी शुरूआत की दृष्टिकोण से सराहनीय है। अगली और ज़ोरदार होगी। यह उम्मीद है।
बहुत सुन्दर कहानी लिखी है... बधाई।
कहानी अच्छी है, मुझे लम्बाई ज़रा कम लगी। इसे और बढ़ाया जा सकता था, वैसे कहानी के लिये आपने जो भाव चुना है उसके आगे सिर स्वत: ही झुक जाता है।
आपकी अगली कहानी की प्रतिक्षा रहेगी।
स्नेहयुक्त शुभकामनाएँ!!!
पहली कहानी के रूप में बहुत अच्छा प्रयास है रंजना जी।
जैसा कि सबने कहा है कि इसे और विस्तार दिया जाना चाहिए था, उससे मैं भी सहमत हूँ।
आपकी अगली कहानियों को प्रतीक्षा रहेगी।
हाँ, साथ ही कहानी का शीर्षक मुझे बहुत आकर्षक लगा।
बधाई।
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