पत्नी: आपको मालूम है, आज रात नौ बजे टी वी में आंतक एंवम् आंतकवादियों पर विशेष कार्यक्रम दिखाया जाएगा| वही आंतकवादी जिन्होने दिल्ली, अहमदाबाद और जयपुर में कैसा भयानक तांडव मचा दिया है। कैसे ये काम करते हैं, कैसे धर्म के नाम पर मासूमों की जान लेते हैं। उन परिवारों के बारे में भी दिखाया जाएगा जिन के घर पिछले शनिवार को बर्बाद हो गये थे। वो बच्चा जिस के हाथ में बम फट गया उसे सोच कर तो मेरी रूह कांप जाती है। कैसे इतने संवेदनाहीन हो गए हैं ये लोग? आप को मालूम, ये सभी आंतकवादी कितने पढ़े लिखे हैं? आज दिन में समाचार देख मेरे तो आंसू ही नहीं थम रहे थे।
पति महोदय: बस बस! मैं जानता हूं कि तुम बहुत जल्द परेशान हो जाती हो। तुम कर ही क्या सकती हो सिवा परेशान हो कर अपनी तबीयत खराब करने और कार्यक्रम देखकर दो वक्त जली हुई रोटियों और ज्यादा नमक की दाल खिलाने के। वैसे भी आज शनिवार है वीक एंड और सोमवार से तो बच्चों के भी एग्जाम शुरू हो जाएगें। इसी कारण आज आफिस से आते एक मूवी की सीडी लेकर आया था। चलो वो देखेंगे, वरना पूरा महीना पिक्चर नहीं देख पायेंगे छोडो ये रोना धोना आंतक वातंक।
पिक्चर देखो ऐश करो कुछ मूड बनाओ। मेरा तो आज मन है। तुम भी जाने कब दूसरों की बातों पर परेशान होना कब छोडोगी!!
--सीमा स्मृति
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
6 कहानीप्रेमियों का कहना है :
सीमा जी,
कहानी का विषय अच्छा है, मगर इसे और भी छोटा होना चाहिए था.....शब्द खर्च करने से पहले बार-बार सोचना चाहिए...कम शब्दों मेंकाही गई बात ज़्यादा असरदार होती है, आपको नहीं लगता.....
हिंद युग्म की तमाम सीमाओं के आगे एक और सीमा.
सीमा जी,अच्छी कोशिश.चूँकि विषय अच्छा है तो बात गले उतर जाती है पर बहुत प्रभावी नही लगी.थोडी और मेहनत.
आलोक सिंह "साहिल"
मुझे भी यही लगा की थोडी और प्रभावी हो सकती थी..
अच्छा व्यंग्य है सीमा जी.. पर बाकियों से सहमत..एक बहुत अच्छी लघुकथा बनते बनते रह गई..
व्यंग्य अच्छा है
what i say
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)