बनर्जी बाबू ऑफिस की मारामारी से परेशान रहते थे। और आजकल तो अपने बंगाल की लोक संस्कृति को जीवित रखने की इच्छा सनक की हद तक बढ़ चुकी थी |ज्यादा से ज्यादा लोग आयें ,पंडाल को भी पुरस्कार मिल जाय तो क्या कहना! इन दिनों उनकी जिन्दगी दो पाटों में पिस कर रह गई थी |
बीबी तो सहयोग के नाम पर दूर से ही सलाम कर देती थी |मछली -चावल बना कर खाना ,उसके बाद अपने शरीर को किसी भी हद तक बढ़ने के लिए छोड़ते हुए,सारे दिन सोना। आख़िर कोई इतना कैसे सो सकता है? बच्चे अपने कामों में मशगूल थे कि उनसे कुछ कहना सुनना बेकार था। रविन्द्र नाथ की पंक्तियाँ ही उनका सहारा थी(जोदि केऊ डाक सूने ना तोमार ,एकला चोलो रे )कोई तुम्हारी पुकार सुने ना तो अकेले ही चलो। उन्हें मन ही मन गुनगुनाते हुए सुबह शाम दुर्गा पूजा की तैयारी का जायजा लेने पंहुचते थे |गीत -संगीत के कार्यक्रम ,कुछ स्टाल्स स्पोंसर करके कुछ ज्यादा कलेक्शन हो सकता है इस बार।
सारे इंतजाम का जिम्मा उनपर ही था। सब ने उन्हें "बंगाली कल्चरल असोसिअशन " का प्रेसिडेंट जो बना दिया था। "सबसे ज्यादा जिम्मेदार बनना भी ठीक नही होता है या ठीक होता है?" इसी कशमकश के बीच पंडाल की तैयारी देखने पहुंचे। वहाँ पहुचते ही पता लगा कि एक आदमी पंडाल लगाते-लगाते गिर गया है। पैर की हड्डी दो जगह से टूट गई ,इलाज में बीस हजार का खर्चा आएगा। परिवार के सभी लोग गांव में रहते हैं। बनर्जी जी अपनी इस ताजा मुसीबत को देख कर बदहवाश हो गए |उससे मिलने पर पता लगा की वह पाँच सौ रुपये महीने गाँव में भी भेजता था |
पार्टी की कैटरिंग में एक मिठाई और एक सब्जी कम कर देने पर भी सिर्फ़ दो से तीन हजार रुपये ही बच पायेंगे। बनर्जी जी की हालत सिर्फ़ वो ही जानते थे। देखें दुर्गा माँ क्या चमत्कार दिखाती हैं इस बार ?
पंडाल को नॉर्थ जोन का ग्यारह हजार रुपये का अवार्ड मिल ही गया। बनर्जी जी ने एक ठंडी साँस ली सारे रुपये ११०००+३००० +५००० (जो पिछले साल की बचत हुई थी )=१९००० इकट्ठे किए |अगले दिन बेंगाली असोसिएशन की मीटिंग में उन १९००० रुपये का हिसाब दिया।उसमे १००० रुपये अपने पास से मिलाये। एक लिफाफे में रखे और उन सभी को बताया कि ये वो उस मजदूर को देने जा रहे हैं। दूसरा लिफाफा वाइस-प्रेसिडेंट मोहंती जी को दे कर स्कूटर स्टार्ट करके चले गए |
दूसरे लिफाफे को खोलने कि जरूरत नही थी किसी को
--नीलम मिश्रा
(पिछले एक सप्ताह से गन्दी बनियाने पहने सारे दिन हथौडी की ठक-ठक करते हुए,मजदूरों को देखकर दिमाग में यह विचार आया कि बेस्ट पंडाल बनाने वाले को क्या कभी कोई इनाम मिलता है वाकई ????)
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
15 कहानीप्रेमियों का कहना है :
bahut prabhavshali laghukatha.
बहुत अच्छी कहानी.
बड़े ही सरल ढंग से अपने काफी-कुछ कह दिया.
एक अच्छी कहानी
प्रतियोगिता के इस दौर मे, वास्ताविकता से लोग कौसो दूर हो रहे हैं कहानी में एहसास की सुन्दरता निखर कर आई जब बैर्नजी बाबू उस मजदूर की सहायता हेतु पैसो की हिसाब करने लगे तथा लैटर लेकर निकले वरना तो हम सभी जानते है-----------
सीमा
एक बहुत अच्छी कहानी, ऐसे ही लिखती रहो,
तुम्हारी शुभाकान्छी
सुमन
इस लघुकथा के माध्यम से एक गहरा विचार सामने रखा है
प्रस्तुतीकरण सरल और प्रभावी.....
आज के युग में यदि ऐसा
तो सच्में सर्व धर्म समभाव के नारे की जरुरत ही समाप्त
हों जाय काश कहानी सच हों बेटा कहानी अतुल्य ह्रदय स्पर्शी है
तुम्हारा पिता
Neelam ji,
Agyeya aur Chekhov ki kahaniyan padhi thi kuch din pehle. Ab aapki kahani padhkar bahut achcha laga. Kafi marma-sparshi hain.
Likhti rahiye. Aap pratibhashali lekhak hain.
subhkamnaon sahit,
anu
नीलम जी,निसंदेह अच्छी प्रस्तुति.
आलोक सिंह "साहिल"
नीलम
आप बहुत अच्छे हो ,shubh deepawali
सोनल
अगर-मगर की गुंजाइश कमोबेश हर रचना में बनी रहती है। उन सब को दरकिनार करते हुए 'रेजिगनेशन लेटर' को अच्छी लघुकथा कहा जा सकता है और इसकी लेखिका वाकई बधाई की हकदार हैं। मैं बधाई के रूप में उनके पिताश्री के शब्दों को ही दोहराना चाहूँगा।
अच्छी कहानी लगी
बनर्जी बाबू का किरदार बहुत ही दमदार लगा वर्ना आज के समय कौन किसकी मदद करता है
kamaal kar diya !
अप्रिय घटनाओं को देखकर थोड़े समय के लिए भाव विभोर तोः सभी होते हैं, किंतु तुम सामाजिक समस्याओं की गहरी सोच रखती हो.
चकाचौंध में आम आदमी की दशा की ओर ध्यान देने की प्रेरणा देती है. सराहनीय प्रयास.
आप सभी को धन्यवाद ,बहुत दिनों के बाद एक छोटा सा प्रयास किया था ,आप सभी को अच्छा लगा ,बस और क्या चाहिए ,बलराम जी को विशेष रूप से धन्यवाद करना चाहूंगी ,क्योंकि आप ने हमारे हौसले को वाकई बढाया है
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)