सफर में कई बार बहुत ही रोचक व्यक्तित्व मिल जाते हैं ,आप न भी चाहें तो भी ध्यान बार बार उनकी तरफ़ जाता है ,ऐसे ही इस बार अहमदाबाद से दिल्ली आते हुए एक बुजुर्ग दम्पति , वो ठीक मेरे सामने की बर्थ पर थे , महिला होंगी ६० साल कि और उनके पति शायद ६५ के आस पास । इस उम्र में भी वह दोनों देखने में बहुत ही सुंदर लग रहे थे ।. दोनों सफर के शुरू से एक दूसरे को प्यार से निहारते और जाने कहाँ -कहाँ की बातें करते खूब मुस्करा रहे ,हंस रहे थे दोनों एक दूसरे का ख़ूब ध्यान रख रहे थे । देख के मुझे बहुत अच्छा लगा कि इस उम्र में भी एक ऐसी प्यार की कशिश है दोनों में .....थोड़ी देर बाद खाना खा के वह बुजुर्ग पुरूष तो सो गए पर वह सुंदर महिला अभी जाग रही थी ।..नारी सुलभ स्वभाव के कारण हम दोनों में सहज बात चीत शुरू हो गई .।... तब उन्होंने एक वाक्या सुनाया अब वह उनकी जिन्दगी का सच था या महज कहानी मैं नही जानती पर मैंने वह वाक्या अपनी कहानी में ढालने कि कोशिश की है
औरत का दिल ईश्वर ने ऐसा बनाया है कि हर वक़्त प्यार के खुमार में डूबा रहता है कुछ नया खोजता सा कुछ नया रचता सा। रजनीश ज़ी के लफ़्ज़ो में .. सारी तहज़ीब स्त्री के आधार पर बनी,घर ना होता तो, नगर ना होते ... नगर ना होते तो तहज़ीब ना बनती ...मर्द और औरत दोनो के सहज मन अलग -अलग होते हैं . .इस लिए प्रेम मर्द के लिए बंधन हो जाता है और औरत के लिए मुक्ति का मार्ग, पर वह बंधे रहना चाहती है सिर्फ़ अपने प्रियतम के प्यार से ..उसको खोने का डर उस पर हर वक़्त हावी रहता है ...। वो बहुत सुंदर नही थी और नाम था उसका मीता ....पर अपने आपको उसको सज़ा के रखना ख़ूब आता था बुद्धिमान थी ,.वक़्त के अनुसार चलना जानती थी ।.पैसा पास था खर्च करना उसका शौक था जो चीज पसंद आ जाती ले लेती बिना सोचे की यह कितने की है !घर सजाना और दूसरों का ध्यान सदा कैसे अपनी तरफ़ रखना है यह उसको अच्छी तरह से आता था ! शादी शुदा थी ..एक प्यारा सा बेटा था .... पति साहिल जो हर पल उसके चारों ओर घूमता रहता .....वह जो चीज़ चाहती ख़रीद लेती ....और साहिल हर पल उसको प्यार करके कहता ' तुम्हारी लाई हर चीज़ सुंदर .. ...तुम्हारी हर ख़ुशी मेरी ख़ुशी ."".बस वो सुन के इठला उठती अपने पर, और मुस्करा के उसकी बाहों में समा जाती !
एक दिन .शाम को मौसम बहुत सुहाना था सोचा चलो आज बाज़ार घूम के आते हैं साहिल के आने में अभी देर थी उसने
कार उठायी और बाज़ार की तरफ चल पड़ी ! यूँ ही घूमते-घूमते उसकी नज़र एक बहुत ख़ूबसूरत, कान के बूंदों पर पड़ गई ..सात रंगो से सजे वो बूंदे जैसे उस को अपनी तरफ बुला रहे थे वह दूकान के अन्दर गई और दाम पूछे पर उस वक्त जो कीमत दूकानदार ने बतायी उतने पैसे उसके पास नही थे थोड़े से पैसे दे कर उसने वह बूंदे अपने नाम करवा लिए और फ़िर आ के लेने की बात कह कर दूकान से बाहर आ गई ..
जब बाहर आई तो बारिश शुरू हो चुकी थी वह अपनी कार की तरफ़ गई तो एक मासूम सी सुंदर जवान लड़की उसके पास आ के खड़ी हो गयी ..और बोली की वह बहुत भूखी है.कुछ पैसे दे दे कि वो खाना खा सके !
मीता ने उसको सिर से पाँव तक देखा ....फटे कपड़ो में भी उसमें एक कशिश थी , पर्स खोल के पैसे देने ही लगी थी कि एक विचार उसके दिल में आया ..कि यह इस हालत में क्यों है ??यहाँ पूछा तो यह बताएगी नही क्यों न इसको अपने घर ले जाऊं इसकी कहानी भी पूछ लूंगी और खाना भी खिला दूंगी अगली किटी पार्टी में कुछ तो नया सुनाने को और अपनी अमीर सहेलियों पर कुछ तो रुआब पड़ेगा ,.यह सोच के उसके होंठो पर एक मुस्कुराहट आ गयी ...
उसने उस लड़की से कहा की मेरे साथ मेरे घर चलो ..मैं तुम्हे भर पेट खाना खिलाउँगी..
लड़की सहम गयी ... मना करने लगी ..कि कही आप मुझे किसी आश्रम में तो नही भेज देंगी ..
.'अरे नही "मीता बोली
बारिश बहुत तेज है ओर यहाँ तुम्हे अब खाने को भी क्या मिलेगा ..तुम मेरे साथ चलो यही पास ही मेरा घर है खा पी के फिर
अपनी राह चली जाना .....भूखे को अपनी बातों में फंसाना कौन सा मुश्किल काम था ...वो लड़की उसके साथ आ गयी ।
कार में उसको बिठा के मीता घर कि तरफ़ चल पड़ी लड़की डरी सहमी सी कार में बैठी थी यह देख के मीता ने उसको कहा कि घबराने कि जरुरत नही है ..मैं भी औरत हूँ तुम्हे मुझ से कोई नुकसान नहीं होगा मानव दिल कि थाह कौन नाप सका है जो वही मासूम लड़की नाप लेती ...उधर मीता कार चलाते हुए सोच रही थी यह गरीब लड़की भी जान ले कि अमीर लोगो के पास भी दिल होता है वो भी मदद करना जानते हैं ...क्या करेगी दो रोटी खायेगी अपनी कहानी सुना के चली जायेगी पर इस से जो मेरे पास कहानी बनेगी उसकी "'वाह वाही ''तो अनमोल है .....यह सोचते सोचते वह घर के पास आ गई ...कार बरामदे में खड़ी करके उसने लड़की को बहुत प्यार से अन्दर आने को बोला .. वो मासूम लड़की अन्दर आ के उसके घर की सजावट देख के और भी सहम गई .. और वो सहम के एक कोने में खड़ी हो गयी
अरे बाबा !!"'डरो मत ..आराम से रहो "" यह कह कर उसने अपनी नौकरानी को आवाज़ दी कि उस लड़की के लिए खाना ले के आए और उसके लिए चाय ले आए !
अरे !!!!""तुम्हारे तो सब कपड़े भीगें हैं ''..ठहरो जब तक खाना आता है तुम यह मेरा पुराना सलवार कमीज पहन लो ..लड़की बोली नही नही बस आप खाना दे दो मैं यूं ही ठीक हूँ ....अरे नही नही तुम्हे सर्दी हो जायेगी कह कर उसने उसको जबरदस्ती अपने पुराने कपड़े थमा दिए वह अपनी दयालुता दिखाने का कोई मौका नही छोड़ना चाहती थी और जब वह उसका पुराना सूट पहन के आई तो मीता उसको देख के हैरान हो गई उसका रूप तो और निखर आया था जरुर यह किसी भले घर की लड़की है शायद किन्ही बुरे हालातों मैं फंस के इस बेचारी की यह हालत हो गई है ...मीता के दिल में उस लड़की के बारे में जानने कि उत्सुकता बढती जा रही थी ...वह जल्द से जल्द उसके बारे में सब जान लेना चाहती थी
अभी वो उस से कुछ पूछना शुरू करती कि....साहिल ..:" हे जानेमन" कहता कमरे में आ गया .. एक अजनबी को देख कर हैरानी से वही खड़ा रह गया ...बोला यह कौन?.मीता एक दम से बोली यह मेरी मेरी जान पहचान की है .आज अचानक रास्ते में मिल गई !"".. ओह्ह....ठीक है अच्छा ज़रा तुम मेरे साथ दूसरे कमरे में आ सकोगी ..मुझे तुमसे कुछ कहना है .... साहिल ने मीता से कहा...
मीता उस लड़की से बोली तुम बैठो ..मैं आती हूँ पाँच मिनिट में ...कह कर वो साहिल के पीछे-पीछे आ गयी ..साहिल ने कहा ""अब बताओ यह कौन है ?"" मैंने तो इनको पहले कभी नही देखा .और बहुत मासूम सी लग रही है कुछ डरी सहमी सी भी है ,पूरी बात बताओ की यह कहाँ से आई हैं !!
मीता ने सब बात बताई ...साहिल ने हँस के कहा .."'वाह !!मेरी जान तुम पागल हो इतना तो मैं जानता था ..पर यह भी कर लोगी सिर्फ़ वाह-वाही के लिए .. यह नही जनता था""! .फ़िर शरारत से हंस के बोला वैसे तुम इसको यहीं रखने वाली हो या खाना खिला के इसकी कहानी सुन के यहाँ से रफा दफा कर दोगी वैसे किसी भले घर की लगती है और बहुत सुंदर भी है . ..साहिल ने कहा मैं तो कमरे में आ के ठगा सा खड़ा रह गया ... उसको देखता जैसे उसको ईश्वर ने फ़ुरसत में बनाया है ....सोच लो यदि तुम उस को यहाँ रखने की सोच रही हो, रात तक तो कुछ भूल ना कर बैठो कह कर वो मुस्कुराने लगा !
""अजीब इंसान हो तुम ""इतना कह कर ..मीता वापस कमरे में आ गयी .!"सुंदर ,,ठगा सा रह गया "..यह लफ्ज़ उसके कानो में गूंजने लगे . अब उसका दिमाग जैसे घड़ी की दो सुइयों की तरह साहिल की बातों पर अटक के रह गया था अब उसको उस लड़की के बारे में जानने में कोई दिलचस्पी नही रह गई थी !
सोचते सोचते उसका दिमाग़ भन्ना गया ... वो तेज़ी से उठी ,, कुछ पैसे उस लड़की के हाथ में थाम के जाने को बोल दिया और कपड़े बदल के ..दुबारा अच्छे से तैयार हो के साहिल के पास गयी !साहिल ने पूछा क्या हुआ इतनी जल्दी सुन ली उसकी कहानी ..जाओ तुम सुनो मैं यही हूँ अभी कह कर वह फ़िर शरारत से मुस्करा दिया .. .मीता बोली कि वो लड़की नही रुकना चाहती थी .. मैने उसको कुछ पैसे दे के भेज दिया .. अब मैं ज़बरदस्ती तो उसको नही रोक सकती थी ना . यह कहते हुए वो मुस्करा के साहिल के सीने से लग गयी ... सुन कर साहिल चुप हो गया और धीरे से हँसने लगा उसने साहिल से पूछा की आज बाज़ार में बहुत सुंदर से बूंदे देखे हैं ..कुछ पैसे दे आई हूँ और कुछ दे के लाने हैं साहिल ने मुस्करा के उसको अपने सीने से लगा लिया और बोला कि ले लेना ....तुम्हे मैंने कब किस चीज के लिए मना किया है ...खिड़की पर पड़े गुलदान में रखे गुलाब मुस्करा रहे थे बाहर का समां बारिश होने से भीगा भीगा था ...और मीता साहिल के सीने से लगी अपने सवाल के जवाब में सिर्फ़ एक बात सुनना चाहती थी ... कि ... क्या वह सच में सुंदर है .....???????उतनी ही जिसको देख के साहिल ठगा सा देखता रह गया था !
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
22 कहानीप्रेमियों का कहना है :
achchha likha hai aapne. thoda vartni par bhi dyan dene ki aavashyakta hai . ok
ranjanaji,aap badhai ki patr hein...aapne bahut hi achhi kahani likhi hai...meine is kahani ko kai drishtikono se dekha hai...ek to ye ki dampaty jeewan mein chahey kitna bhi paisa ho patni uski apeksha apne pati ka pyar hamesha chahegi..doosra ki patni chahey ghar kitna sunder saja le,her tarah se adjust kerna janti ho ,parantu purush warg aksar ander ki sunderta ki tulna mein bahri sunderta ki or aakershit hota hai...inhi baaton ka ullekh aapne baarish ki shaam mein bakhubi kiya hai..really i like it...thanx...aap aagey bhi likhti rahein..
रंजू जी यह कहानी जिन्होंने आपको सुनायी है उन्होंने इसे किसी पत्रिका मे छपी एक कहानी से इसका विषय उठाया है, शायद मुक्ता में, याद नही ठीक से पर मैंने कहीँ पढी जरुर है, पर आपकी प्रस्तुति फ़िर भी बहुत अच्छी लगी, जो आपने अपनी तरफ़ से जोडा है वो अधिक अच्छा लगा
achchha likha hai ranju ji. purush v stree ke manobhavon ko bhi darshaya hai.badhai,
ghughutibasuti
ह्म्म!!
बढ़िया है!
बहुत बहुत सुंदर लिखा आपने रंजनाजी....... कहानी मे बहुत गेहेरायी है..... आमिर लोगों के जिन्दगी मे कितना खोखलापन है, ये उजागर होता है.. और जिन्दगी मे पैसे से ही खुशियाँ नही खरीद सकते ये भी...... और तो और आपके कहानी मे ठीक से वयक्त किया है एक भारतीय घरेलु नारी के मॅन के बातो को...... आपकी कवितायों मे जहाँ एक मन के राजों की खोज है वहीँ आपकी कहानी मे एक दार्शनिक खोज है....
रंजना जी,
एक नारी ही इस प्रकार के कथानक को इस सुन्दरता से प्रस्तुत कर सकती थी। कथानक स्वयं में आम सा लगने वाला है, संभवत: सजीव जी को इस लिये भ्रम हुआ होगा। किंतु इसके पीछे बहुत कुछ आपने नहीं लिखा है जो चित्रित हुआ है, यही इस कहानी की सफलता भी है।
हाँ, मेरा अनुरोध है कि कथा-शिल्प को आप कसने का यत्न करें इससे आपके इतने प्रभावी कथानकों का सौन्दर्य और बढेगा।
*** राजीव रंजन प्रसाद
नारी की मनोवृति को अच्छी तरह उभारा है आपने इस कहानी में!
अति सुन्दर और गहरी कथा नारी की मनःस्थिती की. बहुत बांध कर रखा इस तरल रचना ने-साथ बहाती रही. बधाई.
रंजना जी,
आपके कहने का ढंग और कहानी का मनोविज्ञान दोनों पसंद आया.
सुंदर कहानि है रंजू जी। एक साधारण-सी घटना को आपकी लेखनी असाधारण बना देती है। इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।
नारी मन दृष्टिगोचर हुआ है। ऎसे हीं लिखते रहें। आपकी अगली कहानी की आस में-
विश्व दीपक 'तन्हा'
bahut acchi kahani likhhi hai aapne,
ek bar fir se apke kalam ko salam ranjana ji.....
रंजना जी
आपकी लेखनी में सकारत्मक परिवर्तन देखने को मिला है कथानक की अंतिम पंक्तियां ...
"...और मीता साहिल के सीने से लगी अपने सवाल के जवाब में सिर्फ़ एक बात सुनना चाहती थी ... कि ... क्या वह सच में सुंदर है .....??????? उतनी ही जिसको देख के साहिल ठगा सा देखता रह गया था !"
बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। किन्तु मैं भी राजीव जी की टिप्पणी से सहमत हूं कि बहुत कुछ नहीं लिखा गया है।
शुभकामनायें।
Ranju ji, This story ,i read in a book but your presentation is very good.
विषय बहुत रोचक था,मनभावन भी कुछ हद तक।
खासकर अपेक्षायें और भी बढ़ जाती हैं,जब पता रहता है कि लिखने वाले की कलम प्रेम-वियोग जैसे श्रृंगारिक पहलुओं पर पूरी रफ्तार और जोश से चलती है!
पर इस कहानी मे वो पैनापन नजर नही आया। शिल्प और कसाव की बात छोड़ भी दें, तो भी कहानी अपनी कमी की बात हर मोड़ पर कहती दिखाई पड़ जाती है!
हर किस्सागो का कहानी कहने का ढ़ंग अलग-अलग होता है.... उस पर कोई बहस की आवश्यकता नही है। आपकी दोनो कहानियाँ एक ही ढ़र्रे से शुरू हुई और जब तक कहानी मे रोचकता आती,पता चला खत्म हो गई।
सारे कहानीकार पात्र आस-पास के समाज से ही चुनते हैं, पर ये उनकी कलम की शक्ति होती है कि वे उन्हे अपनी कहानी के भाव-सम्प्रेषण का माध्यम बना लेते हैं.... या यूँ कहें,उन्हे use कर लेते हैं।
आपके कलम मे वो शक्ति है,पर शायद शापित हनुमान की तरह आप उसे भूल गए हो..... मैं
अगर जाम्बवन्त बन पाया,तो सौभाग्यशाली समझूँगा खुद को!
आपकी अगली रचना के इंत्जार मे,
सादर,
श्रवण
रंजना जी, नमस्कार, बधाई स्वीकार करें.
कहानी वस्तव में नारी के मन का आरेख खींचती है..
पारिस्थितिक मनो-वस्तुस्थिती को दर्शाती कहानी है, प्यार और प्यार के लिये उत्पन्न ईर्ष्या दोनो परिलक्षित होतीं है, नारी के दया भाव एवं किसी समुदाय विशेष में स्वमं को श्रेष्ठ सबित करने की दशा कहानी में समाहित है..
शुभकामनायें
रंजना जी,
कहानी अपरिपक्व है, अंत तक आते-आते भटक जाती है, अधूरी सी लगती है और जैसा कि कई पाठकों ने कहा है, कहानी का कथानक नया नहीं है।
एक और बात...आप जब कहानी लिखें तो यह आवश्यक नहीं कि यह भी बताएँ कि कहाँ से आपको उसकी प्रेरणा मिली। हर कहानीकार कहीं न कहीं से अनुभव प्राप्त करके ही लिखता है, लेकिन हर बार उस का साथ में ज़िक्र करना कहानी के लिए अच्छा नहीं होता। इससे पाठक को लगता है कि कहानीकार ने सब जवाबदेही असल ज़िन्दगी के उन व्यक्तियों पर ही डाल दी है। जबकि अब सब कुछ आपका होना चाहिए- प्रशंसा, आलोचना और कथ्य।
इस ढंग की कहानियाँ महिला पत्रिकाओं में बहुत छपती हैं, इसलिए भी आपकी कहानी दोहराव सा लगी।
यदि साहित्य की दृष्टि से देखें तो कहानी बहुत साधारण है।
यदि कहानीकार के पास कथ्य कुछ विशेष नया नहीं है तो उसे प्रस्तुतिकरण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
कहानी में यदि आप नारी मानसिकता दर्शाना चाहती थीं तो उसे बहुत बेहतर तरीके से दर्शाया जा सकता था। कहानी में कई स्थानों पर बहुत हल्कापन भी आ गया है।
वर्तनी की एवं भाषा की अनेक अशुद्धियाँ हैं। आशा है कि भविष्य में आप ध्यान रखेंगी।
इतनी विस्तृत आलोचना इसलिए थी कि आपसे मुझे बहुत आशाएँ हैं। आशा है कि आप अन्यथा नहीं लेंगी।
रंजना जी
एक भावपूर्ण कथा के लिए बधाई । बहुत सुन्दर और मनोवैग्यानिक लगी यह कहानी । नारी मनोविग्यान
आप खूब समझती हैं ।
sundar
ranjana ji,
badhaee
रंजू जी!
सजीव जी की ही तरह इस कहानी का विषय मैंने भी कहीं पढ़ा ज़रूर है. फिर भी आपका अंदाज़े-बयाँ रोचक लगा.
इसे कहानी कहा भी जाना चाहिए या नहीं, इस पर भी चर्चा आवश्यक है। आप कहानी की भूमिका लिखकर हमेशा उसे निबंध, आलेख या किसी महिला पत्रिका के विशेष स्तम्भ जैसा बना देती है। आपने बीच में ओशो का रेफरेंस दिया है, उससे वहीं से लगने लगता है कि यह कहानी तो नहीं है कम से कम। और कहानी का अंत ऐसे जगह पर होता जैसे टीवी धारावाहिकों की कोई एक कड़ी खत्म हुई हो।
आप खूब पढ़ें, कहानियाँ समय माँगती हैं।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)