बचपन के दिन कैसे फुदक के उड़ जाते हैं ,स्कूल की शिक्षा खत्म हुई और आँखो में बड़े बड़े सपने खिलने लगते हैं जैसे ही उमंगें जवान होती है कुछ करने का जोश और आगे ऊँचे बढ़ने का सपना आंखो में सजने लगता है !ठीक ऐसा ही शिवानी की आँखो में था एक सपना कुछ बनने का , कुछ पाने का जिन्दगी के सब खूबसूरत रंगो को जीने का! वह मेघावी थी और सब गुण भी थे उस में , पर वह एक बहुत छोटे से शहर की लड़की थी !अपने सपनो को पूरा करने के लिए उसको शहर जाना पड़ता और घर की हालत ऐसी थी नही की वह आगे पढने जा पाती ..पिता का साया बचपन में ही उठ गया था ,घर में सिर्फ़ माँ थी ...वैसे माँ भी उसके सपनो को पूरा होते देखना चाहती थी पर एक तो पैसे की कमी दूसरा लड़की जात कैसे बाहर जाने दे! ,शिवानी माँ को भरोसा दिलाती कि उस पर विश्वास रखे वह उनको जरुर कुछ बन के दिखायेगी .! बस अब उसको इंतज़ार था अपने रिजल्ट का जिसके अच्छा आने पर उसको स्कालरशिप मिल सकती थी .. और वह अपने सब सपनो को अपनी माँ के सपनो को पूरा कर सकती थी ! और आखिर रिजल्ट आ गया .वह जो उम्मीद कर रही थी वही हुआ ,वह न केवल फर्स्ट क्लास से पास हुई बल्कि उसको स्कालरशिप भी मिल गया था ..अब उसके सपनो को पंख मिल गए और उसने सोच लिया कि वह आगे पढने शहर जायेगी !
अपने सपनो के साथ बड़े शहर मुंबई आ गयी, यहाँ की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी और महंगाई के साथ उस यहाँ रहना बहुत मुश्किल सा लगाने लगा ! इसी शहर में उसके एक दूर की आंटी रहती थी जो शहर की मानी हुई डाक्टर थी ...बहुत मुश्किल से उसको कॉलेज के होस्टल में ही रहने की जगह मिल गयी तो उसने कुछ राहत की साँस ली ...सोचा की चलो पढ़ाई के साथ रहने का बदोबस्त हो गया है अब कोई पार्ट टाइम काम करके अपना ख़र्चा ख़ुद ही निकल लूंगी और अपनी माँ को ज्यादा तकलीफ़ नही दूँगी ....उसकी साथ कमरे में रहने वाली लड़की बड़े शहर से थी और बहुत अमीर परिवार से थी ..ख़ूब शान शौकत से रहती ..पैसे उड़ाना उसका शौक भी था और जनून भी ..रोज़ नये कपड़े मेकअप और ऊपर से सिगरेट और नशे की भी आदत ...शिवानी देख के डरी डरी सी रहती ...पर क्या करती ,रहना तो था ही ना .. !
बला की सुंदर और खूबसूरत शिवानी को जो देखता वो देखता रहा जाता ,हँसती तो गालो के गड्ढे जैसे अपनी और बुलाते थे ,...कालेज के कई लड़के उसको बस देखते ही रह जाते पर एक समान्य सा दिखने वाला लड़का रोहित तो जैसे उस पर अपनी जान देता था !..शिवानी शुरू शुरू में अपनी आंटी के घर चली जाती ..और उनसे कहती की कोई काम साथ साथ मिल जाए तो उसकी पैसों की परेशानी कम हो जाएगी!
परिस्थितियाँ या तो इंसान को बहुत ताक़तवर बना देती हैं या बहुत कमज़ोर! कुछ ऐसा ही शिवानी के साथ हुआ पहले उसके साथ उसके कमरे में रहने वाली लड़की सीमा उसके साथ बहुत प्यार से पेश आई फिर उसने उसका मज़ाक बनाना शुरू कर दिया ,कभी उसके कपड़ों का कभी उसके रहने के ढंग का कि वो यहाँ आ कर भी के कस्बे की लड़की ही बना रहना चाहती है ,,धीरे धीरे शिवानी भी उसके रंग में रंगने लगी , पर उस के पैसे कहाँ से आए... कोई नौकरी अभी मिल नही रही थी ,पहले सीमा के साथ सिगरेट फिर नशा और फिर गए देर रात तक पार्टी ..और उसके बाद सिर्फ़ अंधेरा था जहाँ वो लगातार गिरती चली गयी .. धीरे धीरे उसको वो जीने का ढंग रास आने लगा !
अब वो भी नये महंगे कपड़ों में घूमती ..महंगी कारो में घूमना उसका शौक बन गया .होस्टल उसको बंदिश लगने लगा तो उसने एक नया घर किराए पर ले लिया !रोहित यह सब देख के उसको समझाने की कोशिश करता ..कभी कभी उसकी अन्तरात्मा भी उसको कचोटती पर वो ख़ुद को यह कह कर चुप करा देती कि जीने के लिए सब जायज़ है.. क्या हुआ जो दो घंटे किसी के साथ गुज़ार लिए हँस बोल लिया , ज़िंदगी तो अब जीने लायक लगने लगी है ,उसके सारे सपने हवा में उड़ गये जो वो अपनी आँखो में बसा के आई थी ..रोहित उसको वापस बुला बुला के थक गया पर उसने पीछे मुड़ के उसकी तरफ़ देखा भी नही ....बस एक ही नशा की पैसा कमाना है किसी भी तरीक़े से और सुख से जीना है !
उधर उसकी आंटी भी हैरान परेशान थी की जो लड़की हर सप्ताह के अंत में उस से मिलने को उतावाली रहती थी अब वो महीनो-महीनो अपनी शक्ल नही दिखाती हैं उन्होने जब उसके बारे में सब पता लगाया तो उनके पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन सरक गयी ..बहुत समझाने की कोशिश की ...यह भी कहा कि वो उसके घर में ख़बर कर देंगी पर शिवानी जैसे कुछ सुनने की तैयार ही नही थी !
हार कर उसकी आंटी ने उसकी माँ को फ़ोन पर सब बात बता दी कि मेरे समझाने से वह कुछ नही समझ रही है शायद आपका डर और कुछ शर्म उसको वापस राह पर ले आए ! शिवानी की माँ सुन कर जैसे सुन्न सी हो गई एक अकेली विधवा औरत जिसका बुढापा शिवानी के सहारे गुजरना था आज यह सब सुनते ही शिवानी के साथ सजाये सब सपनों के साथ सब मिटटी में मिल गया ...
कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि अब कौन समझाए उस को जो ख़ुद ही ना समझना चाहे सो थक हार के उसकी माँ आंसू बहा के रह गई और उसकी आंटी ने उसको उसके हाल पर छोड़ दिया !
वक़्त का पहिया चलता रहा ...एक दिन आंटी अपने क्लीनिक से घर जा रही थी कि सड़क के एक और उन्हें शिवानी दिखी उसके साथ उसका दोस्त रोहित था ..शिवानी की हालत बहुत बुरी हो रही थी .. सुंदर शिवानी के गाल पिचक चुके थे बाल उलझे हुए कंघी मांग रहे थे और गोरा खिला हुआ रंग काला पड़ चुका था .कमज़ोर इतनी थी कि बोला भी नही जा रहा था .हर चीज की अति बुरी होती है और शिवानी कि हालत उसकी बर्बादी की कहानी सुना रहे थे !
आंटी उसकी यह हालत देख के घबरा गयी और पूछने लगी कि हुआ क्या है ??.. शिवानी अब क्या बोलती ..तब रोहित ने आंटी को बताया कि वो जिस रास्ते पर चल पड़ी थी वहाँ जाने के लिए कितनी बार मना किया पर शायद उस वक़्त यह मेरी बात नही समझ पाई मुझे तो इसका पता अपने एक दोस्त से चला मैं इसको डाक्टर के पास चेकअप के लिए ले के गया था ..इसको एड्स हो गया है और अब वह आखरी स्टेज पर है! यह सुन कर आंटी जैसे स्तब्ध रह गयीं! रोहित ने उसकी रिपोर्ट्स की फाइल आंटी को दिखा दी ..जिसके पन्ने बर्बादी की दास्तान सुना रहे थे ..उन्होंने उसको अपने नर्सिंग होम में एडमिट होने को कहा .वह उसकी सब रिपोर्ट्स देख चुकी थी, कही कोई उम्मीद की किरण नज़र नही आ रही थी !.शिवानी अपनी आंटी से नज़रें नही मिला पा रही थी ,उसने रोहित को कहा कि वह वहाँ से जाए वह अपने आप घर चली जायेगी उसको आंटी से कुछ बात करनी है !रोहित उसको वहाँ छोड़ के चला गया ! उसका दर्द उसके चेहरे से छलक रहा था ,और वो जैसे हर पल अपने इस किए से मुक्ति पाना चाहती थी .पर उसके लिए वह हिम्मत नही संजो पा रही थी .उसने अपनी आंटी से कहा कि मुझे प्लीज नींद की गोलियां दे दो ..मैं जीना नही चाहती ख़ुद मरने का साहस मुझ में है नही और मैं तिल तिल के नही मारना चाहती!
आंटी ने यह सुनते ही उसको डांट लगाई कि बेवकूफी की बातें न करे ..वो उसकी आखरी साँस तक उसको बचाने कि कोशिश करेंगी!जो होना था वो हो गया अब हिम्मत से काम ले ! उन्होंने उसको कुछ खिला के दवा दे दी और सोने के लिए कहा ..अपने कमरे में आ कर आंटी सोचने लगी . कि हमारी यह आने वाली पीढी किस दिशा की और चल -पड़ी है ..इनका अंत इतना भयानक क्यों है ? क्यों आज पैसों कि भूख शोहरत की भूख इतनी बढ़ गई है कि हम अपना सब कुछ गंवाने को तैयार हो गए हैं ...ऐसे कई सवाल शायद जिसका जवाब वक़्त के पास भी नही है ......और कहाँ अब उसकी माँ को तलाश करे जो दुनिया के तानों से घबरा कर न जाने कहाँ गुम हो गई थी !!
उधर शिवानी कि आंखो में नींद कहाँ ? उसका रोम रोम उसको दर्द के साथ साथ गुनाह का एहसास करवा रहा था ,थोडी रात और बीतने पर वह चुपके से नर्सिंग होम से निकल कर वापस अपने घर आ गई रात धीरे धीरे ढल गई !सुबह आते ही आंटी ने जब देखा कि वो कमरे में नही हैं तो रोहित को फ़ोन किया ..सिर्फ़ रोहित ही उसके नए घर का पता जानता था ,रोहित सुनते ही शिवानी के घर भागा ,और जब वहाँ पहुँचा तो शिवानी अब अपने हर दर्द से छुटकारा पा चुकी थी और घर में फैला सन्नाटा किसी गहरे दर्द में डूब चुका था !!
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23 कहानीप्रेमियों का कहना है :
रंजना जी,
कहानी आज के युवाओं को झकझोरने में सक्षम है जिन्हे चकाचौंध में ही जीवन नज़र आता है। कहानी में परिवेश का अंतर, भटकाव और बरबादी के जो मंजर आपके प्रस्तुत किये हैं वे आज का यथार्थ हैं और चूंकि साहित्य समाज का दर्पण होता है आपने व्ह चेहरा प्रस्तुत किया है जो विभत्स्य है।..रोहित और ऑटी जैसे चरित्र कहानी में आशावादिता जगाते हैं।
***राजीव रंजन प्रसाद
ek kadwe such ko aapne jis khoobsurti ke sath utra hai vo kabil- e tareef hai.
aaj shaharo ki keemat kuch ese hi hogayi hai, khastor par Corporate sector mein esa hi kuch haal hai. itni kam umar itni badi tarqee ke aaj kuch bhi karne ko teyaar hai.
ye khud dekha hai mene.
kash aap ki is kahani se aaj ke na sirf ladkiya balki ladke bhi kuch sabak le.
kaafi acha ranju ji ese hi aap likhte rahe or newcumers ko apni advice deti rahe
** LOKESH KUMAR
रंजना जी,
क्या कहूँ अब.. सच में आज की वस्तुस्थिति को उजागर करती और युवाओं में बढ्ती गैर-जिम्मेदाराना और स्वपतन की आदतों को दृष्टिगोचर कराती बहुत ही उत्तम बहुत ही उत्कृष्ट कहानी.
-नमन
रंजना जी,
शिक्षाप्रद कहानी है जिसे आपकी कलम ने बखुबी निभाया है. जिन्दगी में सफ़लता के लिये कोई शोर्टकट नहीं है और जो शोर्टकट अपनाते हैं वो हमेशा भटक जाते हैं.
Ekdam tragic ending....andar tak hil gaye hum to... :O
रंजना जी,
कहानी का अंत वीभत्स है, लेकिन यह सच्चाई है। इससे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। आज का युवा जिस रास्ते पर जा रहा है , उसकी गति दुर्गति हीं है। आपकी कहानी एक पथ-प्रदर्शक की भांति भविष्य का राह दिखलाए , यही कामना करता हूँ।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
Mam, It's first time I'm going throuh your story. It has touch my heart.It's a bitter truth of life we have to accept. you have put it in very nice way. The ending is silent but speaks everything.... People must take lesson from this story.Keep writing.... Good luck
Madhusudan Das
Chandigarh
रंजना जी,आज की युवा-पीढी की हरकतों का जीता जागता नजारा,आपके शब्दांश व्यक्त कर रहे हैं। पूँजीवादी व्यवस्थाओं ने आज भारतीय समाज के अन्तःकरण को बुरी तरह झकझोर दिय है। युवक-युवतियों को पैसे का ग्लैमर 'किसी भी हद तक' जाने को प्रेरित कर रहा है। एड्स बीमारी की पहली सीढ़ी कहां से शुरू होती है। आपकी कहानी वखूवी बयां कर रही है। 'लम्बी कहानी'…………मगर कहानी की खास बात की अंत तक पाठ्क को पूरा पढने के लिये विवशकारी की आपकी विधा काबिले तारीफ है।
क्योंकि "तरक़्क़ी की कीमत" हर कोई पढना चाहेगा।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. पढ़कर अब सोच रहा हूँ-कितना सच!!! कैसे कैसे सच!! ऐसे ही लिखते रहिये. बहुत बधाई.
रंजना जी आज के युवाओ कि एक सच्ची वास्तविकता आपने उजागर की है , सच है की आज का युवा दिग्भ्रमित है खास कर yuvtiya , और मेरी नज़र मै इसका मूलभूत कारण है आज का मीडिया , जो आज के दौर की भयानकता का न दर्शा कर उसके उपरी चेहरे ही दर्शता है , फिर उसकी गर्त मै चाहे गीतांजलि जैसे कोई नामचीन मॉडल पहसे या आपके कहानी की नायिका शिवानी...
ह्म्म कहानी संदेश बढ़िया दे रही है।
जारी रखें इसी तरह अपने लेखन मे विभिन्नता!!
इस कहानी को पढ़ने के बाद हम नई पी्ढ़ी को कोसेंगे पर हम यह भूल जाते है कि नई पीढ़ी उसी परिवेश मे ही परिपक्व होती है, जीती है जो कि उसे पुरानी पीढ़ी देकर जाती है , इसलिए सिर्फ़ नई पीढ़ी को दोष देना गलत होगा, कही न कही नई पीढ़ी के कर्मो के लिए पुरानी पीढ़ी भी कुछ हद तक जिम्मेदार होती है।
रंजना जी बडी ही दर्दनाक कहानी है । पर क्या आप कहानी की नायिका को रोहित की मदद से किसी re-habilitation centre में नही भिजवा सकती थीं इससे गलत रास्ते पर भटके हुओं को एक आशा की किरण मिलती
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल... ...
जब आँख ही से ना टपका तू फिर लहू क्या है...............
bahut khoob ranjana... nice story..touchy...keep it up...
dard hai seekh hai kahani men achha likha hai
ANil
sochne ko majboor karati kahani, ek bhayanak sach
sahi likha hai ranjna ji aap ne. road par roj hi esse kisse dekhne ko mil jate hai ki jaha ladki or ladke bike, car main is trha bethe hote hai ki dekhne wale ko bhi shram aa jati hai.
kul milakar soche to ye sab bahut itna glat ho raha hai.
आशा जी ,मैं शिवानी को तो वहाँ नही पहुँचा सकती थी क्यूंकि वह उस हालत के लायक नही बची थी ...यह एक सच्ची घटना है जिसका अंत यूं नही हुआ था ..वह बहुत ही भयानक था पर मुझे यह यूं करना पड़ा ..शिवानी तो re-habilitation सेंटर में नही जा पायी पर इस के साथ रहने वाले कई लोग अंधेरे में जा चुके हैं ..और वह अब तक अपना इलाज करवा रहे हैं ..तभी मैंने आख़िर में सन्नाटा लिखा है .आज जरूरत है इस पर सबको जागरूक करने की क्यूंकि यह बीमारी तेजी से अपनी चपेट में ले रही है ..यदि हम समय रहते न चेते तो सच बहुत भयानक है ..अब यह जिम्मेवार कौन है, इस पर बहस करने की बजाए जागरूकता लायी जा सके तो ही बेहतर है!!
बहुत बहुत शुक्रिया आप सब का जो आपने इस कहानी को पढ़ा और उसको समझा ..यूं ही आपका सब का साथ और लिखने की प्रेरणा देगा इसी आशा के साथ ..!!
रंजना जी
अच्छी कहानी है । आधुनिकता के नशे में हमारी नई पीढ़ी की भटकन को आपने बहुत ही सुन्दर रूप में
दिखाया है । कभी आवश्यकता और कभी मज़बूरी के नाम पर हुआ यह भटकाव सचमुच दिल को दुखी
करने वाला है । इस यथार्थ को सोचती हूँ काश कोई समाधान भी दिया होता । बधाई स्वीकारें ।
रंजना जी !
आपकी कहानी ‘तरक्की की तलाश’ सारा सब कुछ किसी भी तरह पा लेने की चाह में भटकते हुये आज के युवाओं के जीवन के अवश्यंभावी दुष्परिणाम की ओर सहज ही समुचित ध्यान आकर्षित करने में सक्षम हुयी है
साथ ही समाज के वरिष्ठ सदस्यों को भी यह चेतना देने में सफल है कि यदि समय रहते हुये कुछ नहीं किया गया तो पता नहीं कितने रोहित के सपनों को चकनाचूर होते हुये हम यूं ही देखने को विवश रहेंगे. कितनी शिवानी अपना लक्ष्य भटक कर जीवन की इन्हीं अंधेरी गलियों में समय से पूर्व ही अस्त हो जायेंगी.
बहुत ही मार्मिक अंत है कहानी का और विषय वस्तु की सामयिकता के बारे में निःसन्देह आप उन्मुक्त प्रशंसा की अधिकारी हैं. और सबसे सुंदर बात ये कि कहानी के क्षेत्र में भी अब आपकी लेखनी परिपक्वता की ओर मुंह मोड़ चुकी है
हार्दिक बधाई
रंजना जी!
बहुत अच्छी लगी आपकी कहानी! सचमुच यह अन्धी दौड़ हमारी वर्तमान पीढ़ी को खोखला करती जा रही है और दे रही है ऐसा ही दर्दनाक अंत या अंधकारमय भविष्य.
कहानी के लिये आभार!
Ranjana ji, aaj ke yuva kis tarah se apni raah bhatak jate hai wo apne is kahani me ek dam saral shabdon me dikhaya hai, apni jimedariya aur kartvya sab bhul jate hain aur kis tarah aise bhayanak ant tak pahuch jate hain wo is kahani me saaf samajh aata hain, yunhi likhti rahiyega,
Mamta,
SO true.
Nice one
ओह एक दुखांत कथा !
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