Saturday, October 6, 2007

चलते चलते : गाय और सुअर शावक

भगवान भुवन भास्कर की पहली किरण अभी फूटी ही थी. प्रातः वायुसेवन हेतु पार्क में लोगों ने टहलना प्रारम्भ कर दिया था. रातभर के विश्राम पश्चात जानवरो के झुण्ड सब्जी मण्डी की ओर बढ चले थे. एक गाय अपने बछड़े को जल्दी से दुलार कर दूध पिलाते हुये अपने झुण्ड में शामिल होने को तत्पर मालुम पड़ती थी.

उसी समय एक तीव्र मर्मभेदी पशु चीत्कार से लोगों के हृदय हिल उठे. प्रातःकालीन सन्नाटे के भंग होने चौंके लोगों का ध्यान बरबस ही उस ओर चला गया जहां पर कुछ लोग एक सुअर शावक को मारने का प्रयास कर रहे थे. प्राणासन्न संकट और मर्मान्तक प्रहार की पीड़ा से सुअर शावक की चीखें असह्य होती जा रहीं थी. लोगों ने अनसुना करने का प्रयास किया. कुछ ने कानों मे उंगली डाल कर अपने अभिजात्य होने का प्रदर्शन किया तो कुछ ने उसी समय ध्वनि प्रदूषण पर चर्चा को उपयुक्त समझा. कुछ लोग तो बस बड़बड़ाते हुये पार्क से बाहर निकल लिये. इस प्रकार सुसभ्य मानव समाज ने अपनी शाब्दिक संवेदना व्यक्त कर छुट्टी पा ली.

किन्तु उसी समय, यह क्या..! कुछ लोग दौड़े, कुछ भागे, कुछ गिर पड़े तो कुछ ने पार्क की झाड़ियों में छिपने का प्रयास किया. इस भागा दौड़ी में कईयों के चश्में टूटे और कुछ लोग ठगे से रह गये. जब लोगों ने कुछ पल पूर्व तक अपने बछड़े को दूध पिलाती गाय को एक भीषण हुंकार के साथ सींगों की आक्रामक मुद्रा में दौड़ते देखा. वह रौद्र रूप धारणी सुअर शावक की रक्षा हेतु शावक हंताओं की ओर बड़ी तेजी से दौड़ी जा रही थी. और उन लोगों को तो उस पल सिर पर पैर रख कर भागने के अतिरिक्त कुछ न सूझा.

अब जो दृश्य था उसे देख कर लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न था. गाय शान्त मुद्रा में उस सुअर शावक को अपने पैरों के बीच लिये हुये दुलार रही थी.सुअर शावक भी अपनी जीवन रक्षिणी गाय मां के साथ शान्त हो गया था. पार्क में पशुता को क्रूरता का पर्याय मानने वाला मानव समाज सिर झुकाये लज्जित खड़ा था. पशुता के सम्मुख मानवता पराजित हो यह अद्भुत दृश्य निहार रही थी.

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13 कहानीप्रेमियों का कहना है :

श्रवण सिंह का कहना है कि -

कांत जी,
क्षमा करेंगे, ये लघुकथा कुछ खास प्रभावी नही बन पाई। अगर हम आस-पास से कथानक को उठाते हैं,
तो ये हमारी जिम्मेवारी होती है कि उसे आस-पास की भाषा मे ही प्रस्तुत करें।
मगर भाषा आपने क्लिष्ट रख कर इस कथानक के साथ न्याय नही किया।
... और ये भाषा का ही दोष है कि पूरी लघुकथा मे कभी भी उस परिवेश से पाठक(मै !)जुड़ नही पाता।
साभार,
श्रवण

शोभा का कहना है कि -

श्रीकान्त जी
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है । इतने कम शब्दों में एक कथा नहीं एक इतिहास लिख दिया आपने । आकार में
लघु किन्तु प्रभाव में विशाल । यह कथा समाज को बहुत कुछ कह रही है । सोचती हूँ पशु भी हमसे श्रेष्ठ
है । पारंपरिक रूप से अलग किन्तु एक दम नए अन्दाज़ में लिखी कथा के लिए बहुत-बहुत बधाई ।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

आपकी यह लघु कथा मुझे बहुत पसंद आई क्युकी इस में लिखा सच के हालत पर गहरा व्यंग करता है
भाषा भी बहुत सरल है आम पाठक इस से आसानी से जुड़ सकता है अब आपकी अगली लघु कथा
का इंतज़ार रहेगा बधाई !!
शुभकामना के साथ
सस्नेह

रंजना

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

मानवता इस दृष्टांत से संभव है कुछ सीख सके। यह लघुकथा कई अर्थ स्वयं में समाये हुए है इस किये बेहद सार्थक है। गाय और सूअर को ले कर ममता, मानवता और बहुत ही सूक्षम में उस सामाजिक ताने बाने पर उंगली भी उठती प्रतीत हो रही है जिनके किये कदाचित गाय और सूअर पिशाच हो जाने का कारण बन जाते हैं।


प्रकृति बहुत कुछ सिखा जाती है, श्रीकांत जी इस सशक्त प्रस्तुति का आभार।


*** राजीव रंजन प्रसाद

praveen pandit का कहना है कि -

कांत जी!
चेताने के लिये पर्याप्त से अधिक है लघु कथा।
डर लगता है कि मानवीय संवेदना मात्र शब्द न रह जाएं।
मानव का उत्तरदायित्व पशु ने उठा लिया कहानी मे,यथार्थ भी बहुत अलग नहीं ।कुछ न कुछ हर रोज़ सुनाई दे ही जाता है।
कथा के संकेत व्यापक हैं, समाज की अच्छी बुनावट के लिये।
हम जब समझ लें , तब ही सवेरा।

सस्नेह

प्रवीण पंडित

praveen pandit का कहना है कि -

कांत जी!
चेताने के लिये पर्याप्त से अधिक है लघु कथा।
डर लगता है कि मानवीय संवेदना मात्र शब्द न रह जाएं।
मानव का उत्तरदायित्व पशु ने उठा लिया कहानी मे,यथार्थ भी बहुत अलग नहीं ।कुछ न कुछ हर रोज़ सुनाई दे ही जाता है।
कथा के संकेत व्यापक हैं, समाज की अच्छी बुनावट के लिये।
हम जब समझ लें , तब ही सवेरा।

सस्नेह

प्रवीण पंडित

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

कांत जी,

अति-सुन्दर प्रस्तुति,

सत सैया के दोहरे ज्यो नवक के तीर,
देखत में छोटे लगें घाव करें गम्भीर..

ऐसी ही है ये लघुकथा बहुत बडा सन्देश समेटे..

कोतूहलपूर्ण कृति

बधाई

गीता पंडित का कहना है कि -

श्रीकान्त जी,


बहुत सुन्दर लघुकथा
सशक्त प्रस्तुति

साभार,

anuradha srivastav का कहना है कि -

श्रीकान्त जी संवेदनशील कथा ।

Mohinder56 का कहना है कि -

श्रीकान्त जी,

भावनात्मक व लेखन की बात की जाये तो एक अतिउत्तम रचना आपकी कलम से निकली है.
परन्तु शायद संसार जंगल रूल के अनुसार चलता है यह एक दुर्भाग्यपूर्ण बात है.

विश्व दीपक का कहना है कि -

श्रीकांत जी,
मुझे इस लघुकथा ने बहुत प्रभावित किया। आपने गाय और सुअर के जो बिंब लिए हैं , वह हृदय तक पहुँचते हैं। हर दॄष्टि से आपकी कथा सफल है। बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

Priyanshi का कहना है कि -

Kant ji ,
Gagar me sagar bhar diya .
Priyanshi

Anonymous का कहना है कि -

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