पिछले महीने हमने पल्लवी त्रिवेदी का व्यंग्य 'आत्मा की तेरहवीं' प्रकाशित किया था। आज हम इन्हीं की व्यंग्य-रचना 'सी॰एम॰ का कुत्ता- खब्दू लाल' प्रस्तुत कर रहे हैं।
ज्यादा पुरानी बात नहीं है। सी. एम. साहब के बाबा साहब ..अरे उनके पिताजी नहीं उनके सुपुत्र। आजकल बड़े लोगों के बच्चों को बाबा साहब ही कहा जाता है न इसलिए हम भी वही बुलायेंगे। हाँ तो...बाबा साब को एक स्कूल में लंच टाइम में बच्चों का टिफिन ताकते एक देसी कुत्ते पे प्यार आ गया। शायद उसे बहुत जाना पहचाना सा लगा वो कुत्ता। बाद में वो अपने किसी दोस्त को बता रहे थे कि पिताजी के आगे-पीछे कई ऐसे लोग घूमते हैं...बड़े अच्छे लगते हैं। अब उन्हें तो पाल नहीं सकते सो कुत्ता पालने को घर ले आये। बाई साब बहुत भड़कीं, सी.एम. साब बोले कि अच्छी नस्ल का ला देंगे इसको भगाओ। मगर बाबा साब अड़ गए..ज्यादा डांट-डपट हुई तो भूख हड़ताल का एलान कर दिया। पिताजी के गुण जैसे के तैसे उनमे ट्रांसफर हुए थे। खैर..माँ की ममता पसीजी, और उन्होंने अनुमति प्रदान कर दी। बाबा साब ने भी माँ को कभी पता नहीं चलने दिया कि उनके वजन में जो इजाफा हुआ था वो भूख हड़ताल के दौरान ही हुआ था।
खैर कुत्ता घर आ गया...नाम सोचे गए..टौमी, मोती,झबरू, इत्यादी सभी लेटेस्ट नाम बाबा साब को बताये गए...पर बाबा साब जानवरों के सच्चे मित्र थे...उन्होंने कहा कि क्यों जानवरों को अलग नाम दिए जाएं......जो नाम इंसानों के होते हैं वही कुत्ते को भी दिया जायेगा। उन्हें पिताजी के सेक्रेटरी 'खब्दू लाल ' का नाम बहुत पसंद आया...सो तय हुआ कि नए मेहमान को भी इसी नाम से पुकारा जायेगा। सेक्रेटरी ने माथा पीट लिया..बहुत कोशिश कि उनका खुद का नाम परिवर्तित हो जाए लें इस उम्र में नाम बदलने का कोई नियम नहीं था सो उन्होने 'के.एल.' लिखना शुरू कर दिया!पहले तो बड़ी मुश्किल हुई ,जब कोई असली खब्दू को बुलाता तो खुद दौडे चले जाते। अब थोडा कंट्रोल कर लिया है खुद को।
खब्दू भी अपने नए घर में बहुत प्रसन्न था....बेरोक-टोक सी.एम. साहब के ऑफिस में जाकर बैठता। एक-दो बार सी.एम. साहब के साथ गाड़ी में बैठकर किसी प्रोग्राम में भी हो आया..वहाँ उसने दूसरे कुत्ते को आदमियों को सूंघते देखा..अगले दिन से उसने भी ऑफिस में आने वाले हर आदमी को सूंघना शुरू कर दिया। जिनके ऊपर वह भौंकता, उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता। हर आदमी को खब्दू की सूंघ परीक्षा को पास करना अनिवार्य था। सी.एम. साहब भी बड़े खुश थे कि बिना ट्रेंड किये ही कुत्ता इतना होशियार है। सी.एम. साहब को कभी पता नहीं चल पाया लेकिन आगंतुकों को पता चल गया था कि खब्दू उन लोगों पर भौंकता है जिनकी जेब में खब्दू के लिए कोई खाद्य सामग्री नहीं होती है। इसलिए अब खब्दू कम ही भौंकता था। सी.एम. साहब आज तक यही सोचते हैं कि खब्दू विस्फोटक सामग्री सूंघता है।
अब खब्दू की दोस्ती सी.एम. साहब के चमचों से भी हो गयी थी। चमचा पार्टी समझ गयी थी कि अगर सी.एम. साहब को खुश करना है तो खब्दू को खुश रखना अनिवार्य है। खब्दू भी गाहे-बा-गाहे धौंस जमाता रहता था कि अगर कहा नहीं माना तो कमरे में घुसोगे तो भौंक दूंगा। खब्दू के लिए हर प्रकार की हड्डी का इंतजाम करना, मालिश वाले को बुलाना, बाहर घुमाने ले जाने से लेकर देसी विदेशी कुत्तियाओं का इंतजाम करना इन्हीं चमचों का काम था। जिसे वे खुशी-खुशी अंजाम देते।
खब्दू प्रतिभा का अत्यंत धनी था। सी. एम. हाउस में रहकर अल्प समय में ही उसने अपनी कुर्सी बचाए रखने के तमाम गुर सीख लिए थे। हाँलाकि उसे बाबा साब की कम्पनी बिलकुल अच्छी नहीं लगती लेकिन उसने बाबा साब को कभी महसूस नहीं होने दिया कि उसका समय बर्बाद हो रहा है उनके साथ। एक-आध बार वो सी. एम साब के साथ आदिवासियों और गरीबों के घर हो आया था...वहीं से उसने सीखा था कि बेमन से भी कैसे लोगों के साथ घुला मिला जाता है। बाबा साहब खब्दू को बहुत प्यार करते थे और खब्दू भी प्यार का दिखावा बहुत कुशलता से करता था। बाबा साहब कभी लाड़ में आकर पूछते कि वो उन्हें कभी छोड़कर तो नहीं जायेगा? खब्दू चाट चाटकर इशारों में जिन्दगी भर साथ निभाने का वादा करता। एक-आध आम सभा में सी. एम. साहब के साथ जाकर उसने वादे करने की भी ट्रेनिंग ले ली थी। इतना वह जानता था कि जो उसे लेकर आया है उससे बिगाड़ हो गया तो पल भर में वह सड़क पर आ जायेगा।
कुछ ही वक्त में उसने यह भी जान लिया कि अच्छा वक्त हमेशा नहीं रहता, इसलिए आगे के लिए धन संचय करने में ही भलाई है। उसने देखा था कि सी. एम. साहब. भी पांच साल के बाद का इंतजाम करने में जी जान से जुटे हुए हैं। अब उसने सी. एम. साहब से मिलाने के बदले बाकायदा शुल्क वसूलना शुरू कर दिया। राशि भी इतनी थी कि हर आम आदमी अफोर्ड कर सकता था। बगीचे में एक पेड़ के नीचे खब्दू ने अपनी संचित राशि दबानी शुरू कर दी थी।
अभी तक सब कुछ बहुत बढ़िया चल रहा था लेकिन एक दिन तय हुआ कि बाबा साहब को आगे की पढाई के लिए किसी दूसरे शहर के होस्टल में भेजा जायेगा, खब्दू खुश था कि चलो अब उसे बाबा साब के साथ बोर नहीं होना पड़ेगा लेकिन बाबा साब जिद पर अड़ गए कि खब्दू भी उनके साथ ही जायेगा। खब्दू को बहुत गुस्सा आया बाबा साब पर, उसका मन हुआ कि उछल कर काट ले उनको लेकिन सी.एम. हाउस में आकर खब्दू ने उसकी सहज कुत्ताई छोड़कर इंसानी प्रवृत्ति अपना ली थी। अब हर काम को करने से पहले नफा-नुकसान सोचने लगा था। इसलिए मन मसोस कर रह गया। सी.एम. साहब ने भी अनुमति दे दी। खब्दू को पता था कि होस्टल में जाने पर उसे यहाँ जैसे आराम नहीं मिलेंगे और न ही ऐसा दबदबा होगा। खैर प्रत्यक्ष में खब्दू ने हाँ कर दी। जाने का दिन आया, खब्दू ने अपना सारा धन समेटकर अपने बक्से में रख लिया। खब्दू बाबा साब के साथ ट्रेन में सवार हुआ.....पर रास्ते जैसे ही दूसरे स्टेट की राजधानी आई,खब्दू चुपचाप बाबा साब को सोते छोड़कर नीचे उतर गया, बाबा साब के रास्ते में खाने के बिस्कुट भी लगे हाथ अपने बक्से में रख लिए। जब बाबा साब अपने गंतव्य पर पहुंचे तो खब्दू को न देखकर बहुत रोये कलपे..मगर चमचा पार्टी ने यह कहकर समझा दिया कि शायद दरवाजे के पास खडे होकर यात्रा करते में खब्दू नीचे गिर कर मर गया होगा। बाबा साब ने भी खब्दू की तस्वीर पर माला चढाकर अपने कमरे में टांग ली।
और खब्दू ....उसने पता लगा लिया है कि नए स्टेट के सी.एम. का बेटा किस स्कूल में पढता है। और आजकल वह बिना नागा लंच टाइम में स्कूल जाकर बैठता है। आइये प्रार्थना करें कि खब्दू को जल्दी ही नए बाबा साब सी.एम. हाउस में लिवा ले जाएं...।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 कहानीप्रेमियों का कहना है :
उत्तम
अच्छा लिखा है. आपके पास वो पैनी निगाह है जिससे तीखे व्यंग्य निकलते हैं.
बनाये रखें
सूरज
पल्लवी जी त्रिवेदी हैं भाई, हमारी श्रीमती जी के गोत्र से। हमसे एक वेद का ज्ञान अधिक मिला है उन्हें विरासत में। व्यंग्य तो अच्छा ही करेंगी। हमें तो घर में सुनने की आदत हो गई है।
बढ़िया व्यंग्य है । परन्तु बेचारे कुत्ते में मनुष्यों के सारे गुण भरकर उसके साथ घोर अन्याय भी हुआ है ।
घुघूती बासूती
धन्यवाद आप सभी का हौसला बढाने के लिए....
पल्लवी जी,
करारा व्यग्य है कहानी के माध्यम से
चाटुकारिता से लोग कैसे कैसे धनोपार्जन करते हैं
चाहे समाज गर्त में जाये..
बहुत ही सशक्त कहानी है
पल्लवी जी ,
बहुत अच्छा व्यंग्य किया है , आपकी कहानी आज की राजनीति पर सवाल भी खड़ा करती है , खब्दु लाल नाम कहानी में बहुत जंच रहा है , आप बहुत ही सार्थक व्यंग्य लिखती हैं, लिखती रहें ,
शुभकामनाएं
^^पूजा अनिल
pallavi ji vayangaya likhane me aap sidhahast hai
पल्लवी जी,
व्यंग्य-लेखन में आपमें बहुत सी संभावनाएँ हैं।
आज के राजनेताओ पर किया गया व्यंग्य बहुत अच्छा लगा.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)