आज आत्मा से हमारा हमेशा के लिए पीछा छूट गया। बचपन से ही हमारा हमारी आत्मा के साथ संघर्ष चला आ रहा है। जाने कैसी आत्मा इशु की थी भगवान् ने हमारी काया को, हम जो भी काम करें इसे पसंद ही नहीं आता, जब देखो अपनी टांग फंसाती रहती थी। पूरे बचपन की वाट लगा दी इस आत्मा की बच्ची ने। जब कभी जेबखर्च के लिए पिता जी की पैंट से पैसे चुराने की सोचते, इस आत्मा की चोंच चलने लगती। जैसे-तैसे कठिन परिश्रम करके पिता जी की जेब हलकी करते, रात होते ही आत्मा के प्रवचन शुरू हो जाते। नन्ही उम्र थी हमारी सो ज्यादा बहस नहीं कर पाते। आत्मा की बातों में आ जाते और पैसे वापस जेब में रख आते। जब भी परीक्षा में नक़ल करने बैठते, कमीनी आत्मा झक सफ़ेद कपडों में सामने आकर खड़ी हो जाती, बगल वाले की कॉपी पर पर हाथ रख लेती! इन आत्मा मैडम ने कई दफा फेल करवाया।
१४-१५ साल की उम्र तक तो ऐसा हुआ कि हम आत्मा के मुकाबले थोड़ा कमज़ोर पड़ते रहे, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे हमारे अन्दर ताकत का संचार हुआ। हमने अपने जैसे आत्मा पीड़ितों का एक ग्रुप बना लिया था, जिसकी नियमित बैठकें होतीं और आत्मा से निजात पाने के तरीकों पर मंथन किया जाता, कभी कभी गेस्ट फेकलटी को बुलाकर आत्मा की आवाज़ दबाने के तरीकों पर लेक्चर भी करवाया जाता। इसका नतीजा ये निकला कि अब ७०% मामलों में हमारी जीत होती और ३०% मामलों में आत्मा की।
खैर,हम धीरे-धीरे बड़े होते गए। जुगाड़ लगाई तो क्लर्क बन गए और ईश्वर का कृपा से क्लर्की भी अच्छी चल निकली। पर ये धूर्त आत्मा को यह भी गवारा नहीं था। घूस ही तो खाते थे, इसके बाप का क्या लेते थे! जैसे ही रात होती तो हमें झिंझोड़ कर जगा देती और प्रवचन शुरू कर देती। हालाँकि अब तक हम मट्ठर पड़ने लग गए थे पर रात तो खराब हो ही जाती। एक दिन इस समस्या का भी समाधान हुआ। रोज़ की तरह आत्मा के उपदेश शुरू हुए तभी हमने देखा, ये सफ़ेद पेंट शर्ट वाली आत्मा के सामने बिलकुल वैसी ही भक काले पेंट शर्ट वाली आत्मा हमारे अन्दर से अवतरित हुई और आते ही कुलटा, कमीनी, मक्कार जैसी कई उच्च कोटि की गालियों से सफ़ेद आत्मा को नवाज़ दिया। अब हमें कुछ कहने का ज़रूरत नहीं थी, दोनों में आपस में मुंहवाद होता रहा। इसके बाद से तो वह वकीलनुमा आत्मा ही हमारी तरफ से बहस करती, हम आराम से सो जाते। सिलसिला चलता रहा, पर हाँ, अब हर बार सफ़ेद आत्मा ही हारती।
हाँ...तो हम आज के झगडे का बात कर रहे थे। वैसे भी रोज़-रोज़ का किटकिट से तंग आ गए थे हम। आज तो उसने हलकान ही करके रख दिया, पीछे ही पड़ गयी हमारे। इतना जोर से चिन्घाड़ी कि जीना दूभर हो गया। ऐसा भी क्या कर दिया था हमने, छोटी सी बात थी। हुआ यूं की एक ठेले वाला हमसे अपने जवान बेटे का मृत्यु प्रमाण पत्र लेने आया, हमने तो भैया आदत के मुताबिक ५०० रुपये मांगे। झूठा कहीं का, कहने लगा की पैसे नहीं हैं। उम्र हो गयी ठेला चलाते-चलाते, इतना पैसा भी नहीं कमाया होगा क्या? और फिर जब हम किसी का काम बिना पैसे के नहीं करते तो इसका कैसे कर देते, आखिर सिद्धांत भी तो कोई चीज़ है। खैर ठेले वाला तो चला गया रोते कलपते पर ये आत्मा की बच्ची बिफर गयी। बहुत जलील किया हमें। सो हमने भी आज अन्तिम फैसला कर डाला, अपनी काली आत्मा को बुलाकर सुपारी दे डाली। और उसने सफ़ेद आत्मा का गला हमेशा के लिए घोंट दिया।
हमें कोई ग़म नहीं उसकी मौत का। कोई गुनाह तो नहीं किया हमने, आखिर कानून में भी तो आत्मा के मर्डर के लिए कोई धारा नहीं बनी है। रोज़ ही तो लोग खुल्लम खुल्ला आत्मा का क़त्ल कर रहे हैं और हम भी इसी समाज का हिस्सा हैं।
बहरहाल, अगली ग्यारस को हमारी आत्मा की तेरहवीं है। पंडित ने बताया है की १०१ आत्माओं की आहूति देने से मरी आत्मा कभी वापस नहीं आती। सो सभी आत्मा पीडितों से अनुरोध है की अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर अपनी अपनी आत्माओं की आहूति दें और मृत्युभोज को सफल बनाएं!
***इस कहानी की लेखिका पल्लवी त्रिवेदी है जिन्हें कविता,नज्म,ग़ज़ल ,कहानी एवं व्यंग्य लिखने का शौक है। वर्तमान में लेखिका भोपाल (म॰ प्र॰) में उप पुलिस अधीक्षक के पद पर पदस्थ हैं।
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10 कहानीप्रेमियों का कहना है :
Pallai ji ,
itane kam shabdo me aapne itna kada vyangay likh diya , aapki yah choti si kahaani kitna kuch byaan kar gai , sach hai ham kitani hi baar apni aatma maarte hai lekin use sveekaar karne ki himmat koi nahi karta . aapka yah pryaas vaastav me sraahneey hai , umeed hai aage bhi aapki aisi ythaarthvaadi kahaaniya padhane ko milengi.....seema sachdev
पल्लवी जी,
आपकी कहानी पढ़ते हुए मुझे अपने एक मित्र की सुनाई हुई कहावत याद आ गई- "जाट मरा तब जानिए जब तेरही हो जाय". अब जाट का तो पता नहीं लेकिन आत्मा के बारे में मुझे यकीन है कि इसकी तेरही नहीं होने पाएगी. ईश्वर ने इंसान को बाकी जानवरों से अलग बनाने के लिए इसी 'आत्मा' नामक यन्त्र का निर्माण किया और इसे इंसान के दिल के हिस्से में फिट कर दिया जहाँ धड़कन है, संवेग है, तर्कातीत भावनाएं हैं. शरीर में मस्तिष्क का स्थान भले ही इससे ऊपर है, लेकिन केंद्रीय महत्व इस आत्मा को ही प्राप्त है.
हम ईश्वर से प्रार्थना करेंगे कि सबकी आत्मा जाग्रत रहे, मृतप्राय हो चुकी आत्माएं जी उठें और ईश्वर की अनमोल कृति अक्षुण रहे. आपकी कहानी इस दिशा में सार्थक प्रभाव छोड़ने में कारगर है ...बधाई.
पल्लवी जी,
सूक्ष्म कहानी के माध्यम से समाज की एक भयानक विसंगति पर गहरा कटाक्ष है..
काली आत्मा का कहर दिनो दिन बढ़ता ही जा रहा है
अब अंतर आत्मा को ही इसकी सुपारी देनी होगी ताकि त्राहि त्राहि से बचा जा सके..
बहुत बहुत साधूवाद्
पल्लवी जी, आपने कहानी के जरिये मानव की मरती आत्मा का मुद्दा बहुत खूब प्रकट किया है , कभी ना कभी हर इंसान अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना कर देना चाहता है और गलती करके भी खुश होना चाहता है , आपने उसी गलती का एहसास दिलाया है. परन्तु यहाँ जिन अपशब्दों से आत्मा को नवाजा गया है उनसे बचा जा सकता था , इनके बिना भी आपकी कहानी उतनी ही प्रभावशाली बन सकती थी , हो सके तो साहित्य में अपशब्दों का प्रयोग ना किया करें .
^^पूजा अनिल
Pallavi Ji
Sankshiptata men kitani sundarata hoti hai yah siddh kar diya apne! Har ek shabd adig achal sarthak lagata hai."Atma ki bacchi" "Kamini" aadi-2 shabd to jaise manas ko jhakjhorane ke liye hi piroye gaye hain. Bade hone ke bad bhi kitane prayas ke saath "Terahavin" ka ailan kar pata hai "Manav"(..
Kabir ki kalam agar "Katarni" thi to aapki shayad "Swiss-knife"
Is MASHAL ki lapat baar-2 dekhane ki ABHILASHA hai.
Konur
पल्लवी जी
बहुत ही बढ़िया व्यंग्य लिखा है। आज हर एक आत्मा को मार चुका है। एक सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
Pallavi ji,
Aapne bahut achcha vayag kahani ke madhayam se kiya hai kyoki aaj ke samay me kitne % log aatma ki aabaz sunte hai.
IS kahani ko likhne ke liye bahut bahut badhee.
acchi bat kahi hai aapne apni kahani k madhyam se.
shubhkamnayein
alok singh "sahil"
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.....आपne इस व्यंग्य को सराहा और सबसे बड़ी बात कि सभी ने इसके पीछे छिपी भावनाओं को महसूस किया...मेरा लिखना सफल हुआ.
Aap ki kahani ko padhakar meri safed atma santusht ho gai.Ab meri safed(acchi) atma ne pran kar liya he ki Hum sanghatan banake sari kali atmao ki ahuti denge taki ye duniya sada khush rahe.
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