Tuesday, April 13, 2010

नाच- हरे प्रकाश उपाध्याय

लेखक परिचय- हरे प्रकाश उपाध्याय
5 जनवरी 1981 को भोजपुर बिहार के गाँव 'बैसाडीह' में जन्मे हरे प्रकाश ने जैसे-तैसे बी॰ए॰ की पढ़ाई पूरी की है। वर्तमान में एक मीडिया संस्थान में छोटी सी नौकरी कर रहे हैं और साहिबाबाद (ग़ाजियाबाद, उ॰प्र॰) में निवास रहे हैं। 'अंकुर मिश्र स्मृति पुरस्कार' से सम्मानित हैं। कवि का एक कविता-संग्रह 'खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ' (2009) भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित है। हरेप्रकाश उपाध्याय युवा कवियों में सबसे अधिक पसंद किये जाने वाले कवि हैं। हरे प्रकाश उपाध्याय कहानियाँ भी लिखते हैं।
संपर्क- hpupadhyay@gmail.com
आज पचमा मास्साब के बेटे की बारात जा रही थी और उन्होंने जिले की सबसे नामी पार्टी का लौंडा नाच किया था। बारात के पहले जितनी दौड़-भाग करनी थी कर ली थी। आज उन्होंने अपने बहनोई को सारी जिम्मेदारी सौंप अपनी बैठक शामियाने में जमा ली। नाच शुरू होने के पहले अंग्रेजी दारू का पौआ भी चढ़ा लिया। अब सामने चार लौंडे थे। नाच शुरू करने के पहले वे एक साथ देवी वंदना प्रस्तुत कर रहे थे, ‘‘रखो भवानी लाज, आज पड़ा है भारी काज। रखो दुर्गा देवी लाज। मां शारदे काली सब बाधा दूर करो। आज का गाना तुम मसहूर करो। मां भवानी...।’’
पचमा मास्साब भावुक हो गए, ‘‘क्या रूप दिया है दईब ने। और जीभ पर सरसती विराज रही है। पहिला जनम में कौनो पाप किए होंगे कि लवंडा हुए...।’’
लडक़ा का मामा बोला, ‘‘चुप ना रहिए पाहुन। आप भी न। दारू भीतर जाते मेहरारू हो जाते हैं। कमर देखिए कमर...माल टूटेगा?’’
‘‘चुप न रहो बहिनचोदा। दीदीया का कमर न देखतो हो। वो सब तुम्हारे दीदीया न लगेंगे।’’
उधर सामने की चौकी पर चोली में दो टमाटर लिए और घाघरा पहने लौंडा, ‘‘गौने की रात बीती जाइहो...सइयां हिले ना डोले।’’ और शामियाने के लोग बेकाबू होने लगे, ‘‘जीव..जीव रे झरेला। चल चल धन लिखी तोरा मतारी के..चल..’’
‘‘जीव..जीव..’’ ‘‘चल लिख दी टोपरा चल चल...।’’
दूसरा लौंडा भी आ गया गोगल्स लगाए। जिंस टॉप में। गाना बदल गया...‘‘चल चल तोरा माई से कहतानी...चल चल... आग लागो राजा तोहरा जवानी में...हमरा के धइल खरीहानी में...’’ सीटियां बजा उठा हर नचदेखवा..।
दो ताल नाच हुआ फिर तीसरा लौंडा आया। वह उससे भी सेक्सी। गाना का बोल निकाला...‘‘गोली चली जी गोली चली...आ राजा गोली चली...’’ और सचमुच गोली चली और जा लगी इस तिसरे लौंडे को। शोर करना छोड़ लोग भागने लगे। एक के ऊपर एक। एक बूढ़ा गिर गया और उसके ऊपर से छह मुस्टंड गुजर गए। वह अधमरा हो गया...।
थोड़ी दूर पर खड़ी थी पुलिस की जीप। नाच में बवाल न हो इसलिए उन्हें न्यौता देकर बुलाया गया था। पर वे तो गांजा पी रहे थे जीप के बगल में गमछा बिछाकर। हल्ला सुनकर वे जीप में बैठ गए और अपना-अपना बंदूक सम्हाल लिया जो यकीनन जरूरत पड़ती तो न छूटती न उन्हें छोडऩा आता। इसलिए वे हनुमान चालिसा पढऩे लगे...भूत प्रेत निकट नहीं आवे हनुमान जब नाव सुनावे...। दारोगा ने धीरे से सिपाहियों से पूछा, ‘‘आज जान तो नहीं जाएगी भाइयो।’’ एक सिपाही ने भुनभुनाकर कहा, ‘‘बहिनचो तुम पूड़ी-जलेबी के लिए एक दिन हमारी जनानियों की मांग धुलवाओगे।’’
लोग भाग गए तो पचमा मास्साब थर-थर कांपते पहुंचे पुलिस के जीप के पास और हाथ जोडक़र हकलाने लगे, ‘‘आ..आ..आप लोग कुछ करिए...’’
दारोगा जान गया कि गए लोग। इसलिए अकडक़र बोला, ‘‘ऐ मास्टर हमसे पूछ के किए थे नाच? अब जाओगे भीतर। वहीं करना तुम समधी मिलन। अगर लवंडा मर गया होगा तो हम क्या हमारा बाप भी नहीं बचाएगा तुमको...।’’ वह गुस्से से तमतमा गया और पचमा मास्साब के गाल पर अपना तमाचा दे बैठा।
और मौका होता तो अपना गाल पोंछते हुए पचमा मास्साब कहते, ‘अपना औकात मत भूलिए दरोगा जी। कौनो मास्टरे से पढक़र बने होंगे दरोगा आप।’ पर अभी तो उनकी सचमुच घिग्घी बंधी थी। बोलते कैसे?
दारोगा पचमा मास्साब का कालर पकडक़र शामियाने की ओर चला। जैसे किसी रंगबाज ने किसी पाकेटमार को पकड़ लिया हो। पीछे-पीछे सिपाही भी पूरी अकड़ में जैसे कोई वीरता का अवार्ड लेने जा रहे हों। शामियाने में पचमा मास्साब के परिवार और बेहद करीबी रिश्ते के ही कुछ लोग बचे थे और लौंडे को घेरे हुए खड़े थे। गोली नहीं लगी थी उसे। गोली छूते हुए निकल गई थी। वह बेहोश हो गया था। एक आदमी हवा कर रहा था गमछे से और एक आदमी पानी के छींटे मार रहा था उसके चेहरे पर। बाकी के लोग बाकी के लौंडों से सटने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे। जिस चौकी पर नाच हो रहा था। उस पर नाच का जोकर चढक़र माइक के सामने भाषण देने लगा था। वह गुस्से में लगता था। वह कह रहा था, ‘‘सांस्किरतिक महफील का जिनको सहूर नहीं उन समाजविरोधी ताकतों को नहीं आना-जाना चाहिए कहीं। अभी नाच चलता तो सबको मजा आता। अंडा देती मुरगी को हलाल करनेवालों को सोचना चाहिए कि मुरगी मर गई तो फिर अंडा खाने का सवाद कइसे मिलेगा...।’’ वह अपनी रौ में था कि पीछे से एक मरियल सिपाही ने दिया पूरी ताकत लगाकर उसके चूतड़ पर एक लात। वह संतुलन खोकर जमीन से जा लगा। लौंडे को जिंदा पाकर दारोगा जी में देखने वाली तेजी से उत्साह का संचार हुआ। वे सबको हडक़ाने लगे। नाच पार्टी के मालिक ने पैर पकड़ लिया। लोग बीच-बचाव करने लगे। बारात में कुछ नेता टाइप प्रभावी आदमी भी थे। दारोगा उन्हें पहचानता था। वे एक किनारे ले गए दारोगा को। वह पांच हजार की जिद कर रहा था। कुछ देर में ना-नुकुर के बाद दो हजार पर मान गया। पचमा मास्साब से दो हजार लेने के बाद वह कहने लगा, ‘‘मास्साब आप इज्जतदार आदमी हैं। जाइए, आगे से ध्यान रखिएगा। लंठ-लबार को नहीं न लाना चाहिए बारात में। अब गोली आप ही के आदमी ने न चलाई होगी। कोई मर जाता तो आप नहीं जानते हैं बहिनचो कितना टेंसन हो जाता। आज कल के जो नएका नेता सब है, जानते नहीं हैं.।’’ दारोगा एक लौंडे को लेकर अपनी टीम के साथ जीप की ओर चला गया। नाच पार्टी दुख, करुणा और असहायता के अनेक भावों से घिरी अपना साजो-सामान समेटने लगी।

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5 कहानीप्रेमियों का कहना है :

yogendra kumar purohit का कहना है कि -
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yogendra kumar purohit का कहना है कि -

A goog Drawing by your text and i have visit your vision as a artist by this text drawing.. best of luck.
regards
yoendra kumar purohit
M.F.A.
BIKANER,INIDa

प्रज्ञा पांडेय का कहना है कि -

kahani theme achchhi hai .. lekhak gaali ke bina bhi vatavaran ki srishti kar sakta toh kahani men soundraya barakaraar rahta

prabhat ranjan का कहना है कि -

achha vishay uthaya hai. aapki pahli hi kahani parhi. achha laga. badhai aur shubhkamnayen.

Nabi Rasul Ansari का कहना है कि -

Aapki kahani se lag raha hai, hum Bihar mein hain, Bihar mein aisi ghatnaye humesha hoti hi rahe hai. Apki is rachna ka sajiv warnan kia hai.

Nabi Rasul Ansari

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