रोज शाम बगीचे में घूमने जाना मेरी आदत में शामिल था | फाटक के पास ही शर्माजी मिल गए |
वहां रुक कर कुछ देर उनसे बतियाने लगा | सावन का पहला सोमवार था | आज कुछ विशेष रौनक थी | कुछ एक गुब्बारे-कुल्फी वाले भी आ जुटे थे |
शर्माजी से जैरामजी कर आगे बढ़ने लगा तो पास में खड़े कुल्फी वाले ने कुरते की बाह पकड़ कर कहा : "बाबूजी पैसे" ?
मैं हतप्रभ: "कैसे पैसे" ?
उसने पास खड़े कुल्फी खाते एक बच्चे की तरफ़ इशारा कर के कहा : "आपका नाम ले कुल्फी ले गया है, पैसे तो आपको देने ही पड़ेंगे" |
मुझे गुस्सा आ गया बच्चे के पास गया और दो थप्पड़ जड़ दिए और कहा "मुफ्त की कुल्फी खाते शर्म नही आती" ?
वह बोला : "मुफ्त की कहाँ ? इसके बदले थप्पड़ खाने के लिए तो आपके पास खड़ा था वरना भाग ना जाता"?
--विनय के जोशी
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5 कहानीप्रेमियों का कहना है :
वह बोला : "मुफ्त की कहाँ ? इसके बदले थप्पड़ खाने के लिए तो आपके पास खड़ा था वरना भाग ना जाता"?
" sach kha, aise imandaree kee meesal khan dekhne ko milege, very touching and inspiring story"
Regards
कितनी सच्ची कहानी है ,और क्या कहूँ,बेहतरीन प्रस्तुति विनय जी
बहुत ही अच्छी कहानी.दिल को छु गई.
वो बच्चा वास्तव मे ईमानदात था
बहुत ही अच्छी कहानी, दिल को छू गयी
सुमित भारद्वाज
विनय जी,
आपने मुझे हिन्दयुग्म पर अपनी रचनाएँ पढ़ने की लिए कहा आपकी कविता प्रेत और जवान मौत तो अच्छी लगी | पर आपकी लिखी लघुकथा इमानदार पढ़ने के बाद पन्द्रह मिनट के लिए मैं जड़ हो गया | बहुत बढ़िया | हिन्दयुग्म बहुत अच्छा है अब मैं रोज पढूंगा- हर्षवर्धन
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