Saturday, February 23, 2008

मम्मी के सपने ..

उफ्फ्फ्फ़ !!!"पापा जी इसको इस वक्त यह राजकुमारी की कहानी मत सुनाओ !! इसके दिमाग में फ़िर यही घूमता रहेगा ,इतनी मुश्किल से अभी इसको परीक्षा के लिए याद करवाया है ..आप यह पेपर लो इस में इसके जी .के कुछ सवाल हैं खेलते खेलते इसको वही रिवीजन करवाओ !! ""पेपर अपने ससुर को दे कर वह सनी को थपथपा के वहाँ से जाने लगी तो सन्नी बोला "मम्मा प्लीज़ सुनाने दो न कहानी ...बस थोडी सी सुन के फ़िर रिवीजन कर लूँगा ..""

हाँ ..हाँ बहू इतना बच्चे के पीछे नही पड़ते ..अभी तो पढ़ कर उठा है .थोडी देर इसके दिमाग को फ्रेश होने दो .फ़िर इसको जी .के भी पढ़ा दूंगा!

"नही नही "पापा जी आप इसको यही करवाए बस ..यह अभी नही समझेगा तो इसका भविष्य बेकार है बिल्कुल .वह सामने वाले राधा जी की बेटी को देखिये उसके हाथ से तो किताब छूटती नही और एक यह है कि कह कह के इसको पढाना पढता है!

मैंने नेट चालू किया है वहाँ से से भी देखूं कोई नई जानकारी मिलती है तो प्रिंट आउट ले लेती हूँ उसके ...यह कह कर वह सन्नी को घूरती हुई वहाँ से चली गई ..!!

और सन्नी बेचारा फ़िर से जी. के प्रश्न सुनाने में लग गया ...अलका के ससुर माथा पकड के बैठ गए और सोचने लगे कि यह बहू भी हद कर देती है ...पूरा घर लगा है सन्नी को पढाने में अभी छठी कक्षा का ही तो छात्र है पर जब देखो "किताब -किताब और पढ़ाई " ...अरे भाई बच्चो का चहुँमुखी विकास होना चाहिए ...पर कौन समझाए इनको ..!!

उधर सन्नी दादा जी को सोच में डूबा देख वहाँ से भाग के खेल में लग गया ..उसका बस चलता तो वह सारा दिन उड़ती चिडिया के संग उड़ता रहता .पर मम्मी से तो कोई भी पंगा नही लेता ..पापा ही है जो कभी कभी मम्मी को कहते हैं कि इतना पीछे मत पढ़ा करो यूं ..यूं भी भला कहीं पढ़ाई होती है ...पर न जी ..मम्मी कब सुनने वाली हैं ..उनके सपने तो आसमान को छूते हैं !!!

सन्नीईईईई !!!!!!!तू फ़िर खेल में लग गया ..हे भगवान! मैं क्या करूँ इस लड़के का ..?? इधर आ ....देख मैंने तेरे सारे नोट बना दिए हैं जी. के कम्पीटिशन की बहुत सी जानकारी आज मुझे नेट से मिल गई है, मैंने सब एक जगह कर दी है ..बस अब तू ध्यान से इसको पढ़ ..."

और उधर सन्नी बेचारा हैरान परेशान उन नोट्स को देख रहा था कि इनको कैसे दिमाग में घुसाए ? यह मम्मी तो मुझे न जाने क्या बनाना चाहती है ...उसको नोट्स एक बहुत भयंकर राक्षस से दिख रहे थे ....जो उसको चारों तरफ़ से घेरे हुए न जाने किसी दूसरी ही दुनिया के नज़र आ रहे थे .पर उसको इनो याद करना ही होगा नहीं तो
आफत आ जायेगी ..और वह उनको रटने की कोशिश में फ़िर से जुट गया !

इधर अलका सोच रही थी कि अभी तक तो उसका बेटा बिल्कुल उसके कहे अनुसार चल रहा है वह ख़ुद पढाती है ,उसका सारा काम नियम से करवाती है . समय से पोष्टिक खाना ,उठाना सब समय से हो रहा है ..अभी यह समय है उसको इसी सांचे में ढालने का ...आज कल तो १००% मार्क्स आने चाहिए हर चीज में .तभी आगे बढ़ा जा सकता है ..और मेरा सन्नी किसी से कम नही रहेगा ...!!इसको मैंने पहले स्कूल लेवल पर फ़िर नेशनल लेवल पर और फ़िर इंटरनेशनल लेवल पर लाना है और वह ख्यालो में ही सन्नी को उन ऊँचाइयों को छूते देख रही थी जहाँ वह देखना चाहती थी !!


परीक्षा के मारे घर भर में जैसे आफत थी ..हर कोई सन्नी को ज्ञान बंटता रहता और वह बेचारा सन्नी सोचता कि यदि वह फर्स्ट नही आया तो न जाने क्या होगा उसका ..और उसकी मम्मी के सपनो का ..यही सोचते सोचते उसकी हालत ख़राब होती जा रही रही थी ..न भूख लग रही थी और सोना तो वह जैसे भूल ही चुका था ,दिमाग की नसे ऐसे की जैसे अभी बाहर आ जायेगी..

परीक्षा में दो दिन थे बस अब ..शाम को पापा आए तो उन्हें रोज़ की तरह सन्नी उछलता कूदता नज़र नही आया ..उसके दादा जी भी कुछ चिंतित से दिखे ..कुछ भांप कर उन्होंने अलका को आवाज़ लगाई कि आज यह शान्ति कैसे हैं और सन्नी कहाँ है ?

"अपने कमरे में है " परसों से उसके पेपर शुरू हैं न ,तो कुछ नर्वस सा है ..अलका बोली

अरे ..नही बहू मुझे तो दोपहर से उसका बदन गर्म लग रहा है ..दादा जी चिंतित हो कर बोले

नही ..नही पापा जी आपको वहम है ..वह बस कुछ नर्वस है ..आप उसको अब बुखार है कह के सिर पर मत चढाओ !!

अरे मुझे देखने दो ..पापा यह कहते हुए सन्नी के कमरे में आ गए ..सन्नी को हाथ लगाया तो वाकई में उसको तेज बुखार था
तुम भी न बच्चे के पीछे हाथ धो के पड़ जाती हो ..कर लेगा पढ़ाई भी ..और जल्दी से डॉ को फ़ोन लगाया ..उधर सन्नी बुखार में बडबड़ा रहा था कि क्या वह फर्स्ट अब आ पायेगा ..विज्ञान कोई ऐसा चमत्कार नही कर सकता क्या ????????

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14 कहानीप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

रंजना जी !

सर्वप्रथम तो आपको इस अत्यन्त ही सामयिक कहानी के लिए बहुत धन्यवाद. निःसंदेह यह आपकी सोच का जादू है की आप परीक्षा के दिनों में इसप्रकार की कहानी से अभिभावकों को एक बहुत ही सार्थक संदेश देना चाहती हैं. बच्चों का स्ट्रेस फ्री रहना आवश्यक भी है और उनके बचपन का मूलभूत अधिकार भी. मैं स्वयम ही कई बार इस तरह के विषयों पर चिंतित होने लगता हूँ... इस बार आपकी कथा शैली बहुत रोचक अच्छी लगी शुभकामनाएं

श्रवण सिंह का कहना है कि -

कथ्य बड़ा ही सामयिक है, इसके लिए धन्यवाद।
शिल्प और कथा-वस्तु के विस्तार पर थोड़ी प्रतिक्रिया देना चाहूँगा।
"उफ्फ्फ्फ़ !!!"पापा जी इसको इस वक्त यह राजकुमारी की कहानी मत सुनाओ !! .......
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...उसको नोट्स एक बहुत भयंकर राक्षस से दिख रहे थे ....।"...
के बाद से कहानी बिखर गई। शुरूआत इतनी शानदार की है आपके इस कहानी की...
आपसे गुजारिश है कि इस रचना को उसके potential तक पहुँचाऐं।

साभार,
श्रवण

मुकेश कुमार सिन्हा का कहना है कि -

shaandaar!! marmsparshi!! hum wastav main apne bachcho se kutchh jayda hi expect karne lage hain.....

Anonymous का कहना है कि -

Ranju di...

Abhi kuch din pehle "Taare Zameen par" dekhi... aur ab aapki yeh story...

Sach mein, khud par aur is bhaagti hui zindagi par gussa aaya.. Hum logo ne jo bachpan dekha hai, uska 10% bhi humaare bachho ke naseeb mein nahin.. bus ek bhaag-daud reh gayi hai.. jo unko shuru se hi sikha di jaati hai, ki nanhe nanhe pairo se bhaago... aur tab tak bhaagte raho, jab tak budhaape se pairon ki jaan khatam ho jaaye..

Kaash, Hum khud ko sudhaar le... Kaash, Hum bachho ko unka bachpan lauta de... Rok le inko zindagi ki bhaag-daud mein tootne se..

Bahut achha laga aapki soch ko padh kar.. "KUCH HI" log hai is dharti par, jo is tarah soch paate hai aaj ki tareekh mein bhi.. Aap un "KUCH HI" mein se aik hai..

Mukesh Garg का कहना है कि -

ranjna ji aapki kahni main aaj ki sachai likhi hai . badhaii

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

आज की इस अंधी दौड़ में यही हो रहा है,सही चित्रण कम शब्दों में-अति सरह्निये.
बचपन तो दहशत में है ........

GIRISH JOSHI का कहना है कि -

vakai, samay pravah ke anurup katha vishy pasand kar ke aap ne samaj ki un matao ko ek sandesh dene ki koshish ki hai.

Bachcho ke jariye kya ham jo na ban paye vah banne ki koshish to nahi kar rahe hote hai?

mamta का कहना है कि -

आजकल जिस तेजी से competition बढ़ रहा है उसमे बच्चे ही पिसते है।
बहुत सही चित्रण।

Anonymous का कहना है कि -

वर्तमान के सटीक चित्रण और मर्म से भरी अआआछी कहानी,बधाई हो रंजू जी
आलोक सिंह "साहिल"

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

रंजना जी,

बहुत ही बढिया कहानी, न केवल कहानी बल्कि कहनी ( सन्देश )

आशा है सभी इसकी कथ्य-गहराई समझेंगे..

- साधूवाद

Asha Joglekar का कहना है कि -

बहुत ही सामयिक कहानी ।बहुत रोचक शैली में लिखी गई इस कहानी का अंत कुछ जल्द बाजी में हो गया सा लगता है । मम्मी को कुछ सबक मिलना चाहिये था और सोच में भी परिवर्तन ।

SahityaShilpi का कहना है कि -

रंजना जी! बहुत अच्छा संदेश देती हुई कहानी है. परतु अपने आरंभ के हिसाब से कहानी का अंत कुछ कमज़ोर लगा.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

रंजना जी,

आपकी कहानी में ट्रीटमेंट की कमी है। जब आप कथानक नया नहीं चुन पा रहे हों तो कम से कम शब्द-शिल्प पर विशेष ध्यान देना होता है। पात्रों के लिए स्पेस पर वर्काउट करना होता है। खैर आप पहले से बेहतर लिख रही हैं। अकहानी से अर्धकहानी की ओर बढ़ रही हैं। यह कहानी-कलश के लिए अच्छे संकेत हैं।

MANVINDER BHIMBER का कहना है कि -

भारती की टिप्पणी पर क्या कहूं ? लेकिन आपकी कहानी आज के परिवार की सही तस्वीर है। इसका मैसेज भी बहुत प्यारा है। आपको बधायी।
मनविंदर

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