अभी तक यही अटका है तू ...क्या वह मेज मैं साफ करूँगा ?
चल जल्दी से जा वहाँ । ग्राहक खड़ा है। पहले मेज साफ कर, फ़िर यह बर्तन धोना ।
पिंटू जल्दी से वहाँ से उठा और भागा कपड़ा ले कर मेज साफ करने को।
ठंड के मारे हाथ नही चल रहे थे, उस पर पतली सी एक कमीज़, जिसकी आस्तीन बार- बार नीचे आ कर काम करते वक्त गीली हो गई थी ...पर काम तो करना था न ,नही तो यह जालिम मालिक फ़िर से पैसे काट लेगा ..इसको तो पैसे काटने के बहाने चाहिए।
पिंटू जैसे बच्चों की यह रोज़ की कहानी है। .इसके जैसे कितने बच्चे यूं बाल मजदूरी करते हैं। तडके सूरज उगने से लेकर रात को देर तक ..गलियाँ खाते हुए ..बड़े हो जाते हैं।
पिंटू यही गांव के करीब एक ढाबा था वहाँ काम करता था ...पढने का बेहद शौक था ..पर जिस परिवार में जन्म लिया था वहाँ काम ही पढ़ाई थी। बीमार माँ का इलाज ..शराबी बाप का कहर बचपन को कहीं वक्त से पहले ही अलविदा कह गया था।
यदि पढने की वह सोचे भी तो परिवार का क्या होगा बीमार माँ और छोटी सी बहन जो सिर्फ़ अभी ४ साल की है। .कभी उसने भी अच्छे दिन देखे थे। .तब उसके पापा शराब नही पीते थे ..बस जम के मेहनत करते।
माँ भी तब दो चार घरों में काम कर के कुछ पैसे ले आती थी। .कभी- कभी वह भी अपनी माँ के साथ उन बड़े घरों में चला जाता था। उसकी भोली सी सूरत देख कर कभी- कभी कोई कोठी की मालकिन अपने बच्चो के टूटे- फूटे खिलौने या कुछ पुराने कपड़े दे देती थी। पर उसकी निगाह तब भी रंग- बिरंगी तस्वीरों वाली किताबों पर अटकी रहती थी ...फ़िर न जाने धीरे- धीरे सब बदलने लगा। पापा उसके पी कर माँ पर हाथ उठाने लगे और माँ लगातार बीमार .अभी वह ८ साल भी नही हुआ था कि पापा की शराब के नशे में एक एक्सीडेंट में मौत हो गई और उसके सपनों ने तो पहले ही दम तोड़ना शुरू कर दिया था।
अरे! कहाँ गुम हो गया है .??.कहीं भी खड़ा- खड़ा सो जाता है। .चल इधर मर ...जल्दी से- यह २ नम्बर मेज पर चाय और बिस्किट दे कर आ ..मालिक की आवाज़ सुन कर वह अपनी सोच से बाहर आ गया और जल्दी से उस तरफ़ भागा !
वह भी सुबह का भूखा है- बिस्किट देख कर पिंटू को याद आया। .ज्यूँ सुबह से उठ कर रात के २ बजे तक काम में लगता है, तो फ़िर होश कहाँ रहता है ..और आज तो माँ की दवा भी खत्म है।
सही मूड देख कर आज ही मालिक से पैसे की बात करता हूँ ..सोच कर वह जल्दी- जल्दी हाथ चलाने लगा। आज काम में कोई ढील नही देगा ..मालिक को खुश कर देगा।
शाम को काम कुछ खत्म हुआ तो वह डरता- डरता मालिक के पास गया।
क्या है बे ..क्यों खड़ा है यहाँ?
आज कुछ पैसे मिल जाते मालिक ..
एक भद्दी सी गाली उसके मालिक ने मुहं से निकाली और कहा- नही है अभी कुछ पैसे .भाग यहाँ से- अभी काम कर।
दे दो न --माँ बहुत बीमार है- .उसकी दवा लानी है।
अभी चुप- चाप से काम कर नही तो एक लात दूंगा। समझा कुछ।
वह भीगी आँखे लिए वहाँ से हट गया ,,दिन ही बुरे चल रहे हैं।
बिट्टू भी उसके साथ वहीं ढाबे में काम करता था। उस से कुछ बड़ा था और वह भी उसकी तरह ही यूं हालात का मारा था ..वह तो उस से भी ज्यादा मेहनत करता था ..सुबह उठ कर अखबार बाँटना और कभी- कभी फुरसत मिलने पर कुछ और काम भी दो पैसे के लिए कर लेता था.।
कुछ दिन ५ बजे जाग कर अखबार भी बाँटा था बिट्टू के साथ, पर वह पैसे भी यूं ही देखते- देखते खत्म हो गए ...और सुबह इतनी जल्दी जाग कर फ़िर देर तक काम भी नही हो पाता। मुनिया भी कल कैसे दूध के लिए जिद कर रही थी ...और माँ भी रोती आंखो से जैसे कह रही थी कि यह उमर तेरी इतनी काम करने की नही है। पर क्या करे वह ..लगता है कल फ़िर सुबह जल्दी उठाना ही होगा। यह मालिक तो पैसे नही देगा ....एक लम्बी गहरी साँस ले के वह फ़िर से काम में जुट गया।
रात को जा कर उसने बिट्टू से कहा कि सुबह वह भी उसके साथ फ़िर से अखबार के लिए चलेगा।
सुबह उठा तो जैसे सारा शरीर टूट रहा था ..पर नही आज माँ की दवा नही आई तो माँ कि तबियत और बिगड़ सकती है ..रात भर भी वह अपनी खांसी को दबा के सोने के कोशिश करती रही है ...वह उठा और कुछ देर में में बिट्टू के पास पहुँच गया ..बिट्टू ने जैसे ही उसका हाथ पकड़ा साथ चलने के लिए ..तो कहा अरे ! तुझे तो बहुत तेज बुखार है ..तू कैसे यह करेगा? आज तो ठंड भी बहुत है ..तू रहने दे ..आज। .नही नही-.आज यह काम करना बहुत जरुरी है ..नही तो माँ की दवा नही आ पायेगी ..वो ढाबे के मालिक का क्या भरोसा फ़िर आज पैसे न दे और अभी १ तारीख के आने में बहुत देर हैं ..घर में कुछ खाने को भी नही है .तू चल मैं अभी कुछ देर में ठीक हो जाऊंगा।
सुबह के अखबार बाँट कर कुछ पैसे हाथ में आए ..तो चाय पीने की इच्छा जाग गई ...चलो ढाबे में जा कर देखता हूँ ..क्या पता चाय आज मालिक ही पिला दे और ये पैसे बच जाएं . वह बिट्टू के साथ ढाबे पहुँचा और काम में जुट गया शरीर जवाब दे रहा था ...पर जैसे तैसे उसने काम करना शुरू किया .बिट्टू ने उसकी हालत देख कर कहा भी कि आज यहाँ काम रहने दे, तबियत ठीक नही है तेरी, पर मालिक तो छुट्टी के नाम पर ही बिदक उठता है ..नही- नही मैं काम कर लूँगा, तू चिंता न कर। .बिट्टू भी क्या कर सकता था? चाहे उससे कुछ बड़ा था, पर था तो बच्चा ही न ...
अभी एक मेज पर चाय दे रहा था कि जोर से चक्कर आ गया। उस मेज पर बेठे व्यक्ति ने जैसे ही उसको पकड़ा कि न गिरे वह जमीन पर ..तो वह जैसे चौक गया ..अरे इसको तो बहुत तेज बुखार है ..तुम इसके मालिक हो या कसाई? इतनी छोटी सी उमर में इतना काम करवाते हो और यह इतना बीमार है तब भी तरस नही आता तुम्हे इस पर? ...मैं अभी तुम्हारी शिकायत करता हूँ.पुलिस से। .जानते हो आज कल बाल मजदूरी एक अपराध है? ..मैं कई दिन से तुम्हारे ढाबे पर आ रहा हूँ ..देखता हूँ कि तुम इस से बहुत काम लेते हो।
यह सुनकर ढाबे का मालिक डर गया ..उसने पिंटू को झूठे प्यार से देखते हुए कहा - तबियत ठीक नही थी तो नही आना था रे ....
वो मालिक पैसे ..माँ घर में बहुत बीमार है ...दवा लानी थी ...उस ने बहुत मुश्किल से बोला ।..
उसकी साँस अब जैसे उखड़ने लगी थी। ...हाँ -हाँ देता हूँ ..जब तक वह अन्दर से पैसे लाता पिंटू बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा ..उसको गिरते देख वह व्यक्ति जो उसके लिए उसके मालिक से लड़ रहा था ..उसके पास भागकर पहुँचा, पर तब तक देर हो चुकी थी।.एक मासूम बचपन और मौत की मीठी सी नींद में सो चुका था और उस से कुछ दूर खड़ा बिट्टू मूक और असहाय नज़रों से सब देख रहा था !!
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12 कहानीप्रेमियों का कहना है :
गहरी पीडा है, बहुत करीब से महसूस किया जा सकता है....
रंजू जी,
बेहद दर्दभरी कहानी.
बाल-दुर्दशा का चित्र खींचती..
जाने कब वो दिन आयेगा जब कोई चिंटू मीठी नींद से बच पायेगा..
बाल मजदूरी और बाल मजदूरों की बुरी हालत -उनका शोषण ,यह आज भी चिंता का विषय है.
आप की कहानी पिंटू और उसके जैसे बच्चों की स्थिति और उन के दर्द को साफ चित्रित कर रही है,
कहानी का अंत बहुत ही दुःख भरा है. पिंटू की मौत के बाद उस की बीमार माँ भी गहरी नींद में सो गयी होगी.
काश पिंटू बच पाता !
बाल मजदूरी को चित्रित करती और अंतर मन को व्यथित करती एक अच्छी कहानी"
Regards
रंजना जी,
आपका विषय अच्छा है। बाल मजदूरी चिंता का विषय है। ये सब बातें व्यथित करती हैं और आपने कटु सत्य सामने रखा है। पर कहानी में कुछ नयापन नहीं है। पहले से ही आभास हो जाता है कि कहानी में आगे क्या होने वाला है। कहानी पाठक को बाँध कर रखने में असमर्थ लग रही है। मैं आपसे अनुभव में छोटा हूँ, पर मुझे जो लगा वो कहा। कृपया टिप्पणी को अन्यथा न लें।
धन्यवाद,
तपन शर्मा
रंजू जी
यथार्थ का चित्र खींचती सुन्दर कथा लिखी है आपने । कुछ दिन पहले ही मैने पढ़ा था--
बच्चे काम पर जा रहे हैं
क्या अंतरिक्ष में खो गई सब गेंदें
बचपन का इस प्रकार नष्ट होना हृदय विदारक है । एक सामयिक रचना और विचार देने के लिए बधाई
रंजना जी !
आपकी कहानी सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ती है और बहुत मार्मिक रूप से ध्यान आकर्षित करती है. अंत सपाट और सत्य था .... बधाई आपकी यह रचना यदि किस भी बचपन को दलदल से निकलने में सफल हो सके तो ....
bahut ache se aapne sach ko apni kalam ke madhyam se ukera hai kagaj par mene bhi kaafi baar ye apni aankho se dekha hai ham logo ko hi iske khilaaf kuch karna parega jo log ye dekh rahe hai unse meri vinti hai ki vo ese daabo ya hotels mein ya esi koi bhi jagah na jaye jaha masoom bachoo se janwaro ki treh kaam liya jata hai unhe avoid kare taakki vo log bhi kuch sabak le sake ki unke apne bhi bache hai bagwan na kare ki ye din unke apne bacho ko dekhna pare
ranju ji bhaut badiya iskahani ke liye aapko pure 100 mein se 110 marks milte hai meri taraf se
good
हाँ ज्वलंत है प्रश्न आपने जिसे उठाया लिखी कहानी
लेकिन कितनी बार गई दुहराई बोलें यही कहानी
राह निकालें आप समस्या को सुलझाने की तो बेहतर
वरना कल की कलम लिखेगी, पुन: आज की यही कहानी
दर्पण दिखलाना समाज को है दायित्व, सही लेखाक का
लेकिन परिवर्तन को भी तो वही दिशा है देने वालाहोंगी अगर विरोधी कलमें,इस शोषण की, तभी रोशनी
में जाकर घुल पायेगा जो फ़ैला है अंधियारा काला
रंजू जी बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी.
आलोक सिंह "साहिल"
एक मासूम बचपन और मौत की मीठी सी नींद में सो चुका था और उस से कुछ दूर खड़ा बिट्टू मूक और असहाय नज़रों से सब देख रहा था !!
मासूम बचपन आज भी ,
जगह-जगह कराहता हुआ
देखने को मिलता
कहानी की मार्मिकता वो सब याद दिलाती है
Bhai uske bad kya huva
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