आज भी सुबह तड़के उठी सास नहा-धो कर पूजा वंदना करने जा रही थी, तभी बहू की आवाज़ आई- "माँजी, आज चाय मिलेगी या नहीं?" सास गंभीर शांत स्वभाव की मृदु भाषिणी परिपक्व स्त्री है, आज भी चुप रही। बहू आधुनिक युग की काम करने वाली, सदैव जल्दबाजी में रहने वाली और मुँहफट, गुस्सैल लड़की है, चुप रहना जैसे उसने सीखा ही नहीं है। वो आज भी चिल्लाती रही, परन्तु आज उसका गुस्सा चिल्लाने तक सीमित नहीं रहा, उसने देखा कि सास ने कुछ भी जवाब नहीं दिया और सूर्य देव को अर्घ्य देने जा रही है तो गुस्से में उसने सोचा कि आज एक ही बार से सास को सबक सिखाया जाए, ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी और क्रोध की अग्नि में रसोई घर में जाकर गैस का बटन खोल कर आ गई, ताकि जैसे ही सास रसोई में आकर चाय बनाने के लिए गैस जलाए तो ख़ुद भी जलकर राख हो जाए . और जाते-जाते सास को फ़िर से हुक्म सुनाती हुई गई -"मांजी , मैं ब्रश करने जा रही हूँ ,चाय बनाकर रखियेगा।"
बहू ब्रश करने चली गई, सास जब ठाकुर जी की पूजा अर्चना खत्म करके रसोई में आई तो उसने गैस की गंध महसूस की, तभी उसने ध्यान से देखा तो पाया कि गैस का बटन खुला हुआ है, उसने तुरंत गैस का मुख्य बटन बंद किया, सास पढ़ी-लिखी आज के युग में जीने वाली स्त्री है, वो जानती है कि गैस के रिसने से क्या हो सकता है इसलिए उसने रसोई के सारे दरवाजे खिड़कियाँ खोल दिए और घर के अन्य खिड़की दरवाजे खोलने चल दी।
बहू जल्दबाजी में झल्लाते हुए बाहर आई, चाय अभी तक तैयार नहीं है ये देख कर वो फ़िर से आग बबूला हो गई -"इस घर में ठीक समय पर कुछ मिलता ही नहीं है, मांजी से एक चाय बनाने को कहा है तो वो सुबह से नदारद हैं , इधर आफिस जाने के लिए देर हो रही है और अब चाय भी ख़ुद ही बनाओ!!!!!!"
हडबड़ाहट में वो यह भूल ही गई कि उसने स्वयं गैस का बटन खुला छोड़ दिया था, बिना कुछ सोचे समझे उसने तपेली में चाय के लिए पानी डाला और चूल्हे पर रखा, माचिस हाथ में उठाया ही था कि मांजी की आवाज़ आई,
" बहू , माचिस मत जलाना, पूरे घर में गैस फ़ैल चुकी है।"
और बहू सिर से पैर तक कांपती हुई होंठो को सिले खड़ी रह गयी।
--पूजा अनिल
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9 कहानीप्रेमियों का कहना है :
यर्थात को प्रकट करती हुई एक उम्दा कहानी
aswbhavik magar aaj ki navpidhi ke upar achaa kataksh
लघु-कहानी परंतु सारगर्भित....
ईर्ष्या / क्रोध / जल्दबाजी कितनी घातक हो सकती है...
क्रोध में तो इंसान वैसे ही अपना विवेक खो देता है..
अगर सास भी बिना विचारे जल्दबाजी करती तो पता नही बाजी किसके हाथ होती और सास को सांस आती या फिर एक और लंका काण्ड ...
आखिर बहू भी किसी दिन सास होगी...
ek achchi kahani...sirf saas hi nahi bahu bhi buri ho sakti hai.sach hai....
सास की बलि कहानी अगर दो विचारो को प्रस्तुत करती तो बहुत ही अच्छी कथा होती क्योकि मनुष्य चाहे कितना भी बुरा हो पर उसे अपने बुरे कर्मो के लिये अवश्य ग्लानि होती है परन्तु कोई भी सम्बन्ध केवल अच्छा या बुरा नही होता सदैव ऎसा नही होता.ये दो सम्बन्धो के नही बल्कि दो व्यक्तित्व के विचार होने चाहिये थे .परंपरागत बदनाम रिश्तो मे बहुत बद्लाव आ गया है और वह सुखद है.यह लघु कथा प्रशंसनीय है,अच्छा लगा.
डा.शीला सिंह
बिल्कुल सही बात,जैसे हर कुत्ते का एक दिन आता है,उसी तरह हर बहू कभी सास बनती है(प्रसंग थोड़ा उलट है.)
आलोक सिंह "साहिल"
पूजा जी आपकी यह लघुकथा बहुत ही अच्छी लगी ,आज के परिवेश को ब्यान करती इस छोटी सी कहानी में आपने बहुत कुछ कह दिया और कामकाजी महिला के अहम् और क्रोध को आपने बखूबी ब्यान किया है |बधाई
ek marmsparshi yatharth bayaan karti vastavikta se judi kahaani hetu saader danyavaad....
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