Thursday, June 19, 2008

रेडियो नाटक - हम कितना रोये

हम कितना रोये

एक आदमी के पहले गुनगुनाने की और अपने आपसे बोलने की आवाजें आ रही हैं
उमा दत्त दूबे अनजान बारह बजने को आये, अब तक नहीं आयी मिस श्यामा ठाकुर। मैडम का रोज़ का यही हाल है। दस बजे बुलाओ तो एक बजे आती हैं। यहां एक के बाद एक धांसू आइडिया चले आ रहे हैं और कोई उन्हें लिखने वाला नहीं है। मैं भी कहां फंस गया। पता होता मिस श्यामा ठाकुर के इतने चक्कर हैं तो मैं घन चक्कर बनता ही नहीं।
तभी महिला स्वर पास आता सुनायी देता है
श्यामा ठाकुर गुड मार्निंग सर, मैं आ गयी, सॉरी सर थोड़ी देर हो गयी
अनजान ये आपकी गुड मार्निंग की टाइम है मैडम, साढ़े बारह बज रहे हैं इस वक्त और आपको यहां दस बजे तक आ जाना चाहिये था
श्यामा ठाकुर सॉरी कह तो दिया है सर
अनजान मैं पूछता हूं कि ये आपके आने का टाइम है
श्यामा ठाकुर मैं क्या करती सर, पहले तो रोज़ाना वाली बस ही छूट गयी, फिर रोज़ाना वाली ट्रेन भी छूट गयी। और आपको पता है सर, जब मैं चर्चगेट से यहां आ रही थी ना सर तो एक पागल रास्ते में खड़ा सबको पत्थर मार रहा था। मैं बड़ी मुश्किल से जान बचा कर आयी। लम्बा चक्कर लगा कर आना पड़ा।
अनजान मैंने आपसे पूछा है कि ये आपके आने का समय है मैडम, आप पूरे ढाई घंटे से देरी से आ रही हैं। आपका यही हाल रहा तो जा चुका मेरा नॉवल प्रेस में। दीवाली अंक की घोषणा हो चुकी है कि उसमें आ रहा है उमा दत्त दूबे अनजान का महान प्रेम उपन्यास हम कितना रोये। सिर्फ तीन दिन बचे हैं नावल भेजने के लिए और अभी आधा भी नहीं लिखा गया है। संपादक के फोन आ रहे हैं और आपका हर दिन नया बहाना। मैं तो परेशान हो गया आपके बहानों से
श्यामा ठाकुर अब मैं आ गयी हूं ना सर
अनजान लेकिन पहले मुझे ये बताओ कि देर क्यों हुई
श्यामा ठाकुर वो आज ना मेरे बॉय फ्रैंड का जनम दिन था। तो बुलाया थाप उसने। उसी वजह से देर
अनजान कौन सा वाला, वही जो हर सोम और गुरुवार को मिलता है तुमसे
श्यामा ठाकुर आप जानते तो हैं उसे
अनजान पता नहीं कितने बाय फ्रैंड है तुम्हारे। हर दिन के लिए अलग अलग। दोस्त न हो गये पर्स हो गये, रोज़ नया चाहिये।
श्यामा ठाकुर क्या सर, तीन ही तो हैं। एक सोम और गुरूवार वाला, एक मंगल और शुक्र वार वाला और एक बुध और शनिवार वाला
अनजान संडे का भी कोई होगा
श्यामा ठाकुर वो तो टैलिफोन फ्रैंड है। मैं उससे मिलती थोड़े ही हूं
अनजान तुम्हारे इन दोस्तों के चक्कर में मेरा बैंड बज रहा है। अब जल्दी शुरू करो
श्यामा ठाकुर ठीक है सर,
अनजान पिछली बार कहां छोड़ा था हमने
श्यामा ठाकुर बताती हूं सर, प्रीतम सिंह और सुलोचना कई दिन के बाद मिल रहे हैं। वे एक रेस्तरां में बैठे हैं और उनके सामने कोल्ड ड्रिंक रखे हैं। प्रीतम सिंह सुलोचना से कह रहा है कि जब से तुमसे मुलाकात हुई है, मैं अपने होश खो बैठा हूं। लगता है जैसे जिंदगी को मकसद मिल गया है। मेरे लिए संसार की सबसे बड़ी खुशी तुम ही हो।
अनजान ठीक है आगे लिखो, हं हं हं, हां लिखो, प्रीतम सिंह का डॉयलाग- मुझे लगता है हम दोनों का जनम जनम का नाता है।
श्यामा ठाकुर सर, इसे सात जनम का कर दें
अनजान टोको मत, जो कहा है वही लिखो। हां, तुमसे मिलने के बाद अब इस जिंदगी में कुछ और पाने की इच्छा ही नहीं रह गयी है। बस, दिल करता है कि तुम आस पास बनी रहो और मैं तुमसे दिन रात बातें करता रहूं। (थोड़ी देर सन्नाटा) नहीं, इस आखरी वाक्य को काट दो और इसकी जगह नायिका का संवाद रखो। लिखो, मैं भी तो तुमसे हर पल मिलना चाहती हूं लेकिन तुम तो जानते ही हो कि मेरी मां कितनी कठोर है। हर वक्त मेरे आस पास मंडराती रहती है। (फिर सन्नाटा) अब नायक का संवाद रखो, लेकिन तुम फोन तो कर सकती हो।
नायिकाः अब मैं तुम्हें कैसे बताऊं कि मेरे लिए तुम्हें फोन करना कितना मुश्किल होता है। घर से फोन करो तो ऐसे शो करना पड़ता है मानो अपनी सहेली निशा से बात कर रही हूं। वो भी हर बार नहीं कर पाती क्योंकि मां फोन को ताला लगा कर रखती है। बाहर से फोन करो तो एसटीडी बूथ वाला हर तीन मिनट के तीन रुपये इक्कतीस पैसे ले लेता है। तुम्हें फोन करने के चक्कर में मेरी पूरी पाकेट मनी चली जाती है।
श्यामा ठाकुर अजीब लड़की है
अनजान कुछ कहा आपने मैडम
श्यामा ठाकुर कुछ नहीं
अनजान तो आगे लिखो, कल शाम मैं तुम्हारा चर्चगेट स्टेशन पर व्हीलर बुक शाप के पास तुम्हारा इंतज़ार करता रहा, तुम्हें छः बजे तक आ जाना चाहिये था, लेकिन तुम छः चालीस तक नहीं आयी तो मैंने भाग कर छः बयालीस की बोरीवली फास्ट पकड़ी।
श्यामा ठाकुर सर एक बात बताऊं
अनजान अब क्या है
श्यामा ठाकुर सर छःबयालीस की कोई बोरीवली फास्ट नहीं है। छः सैंतालीस कर दूं।
अनजान आप बहुत ज्यादा टोकती हैं। सारा फ्लो टूट जाता है।
श्यामा ठाकुर सॉरी सर, मैंने तो सिर्फ आपको
अनजान ठीक है ठीक है, आगे लिखिये, (सन्नाटा) अं अं अं
श्यामा ठाकुर सर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं
अनजान अब क्या है
श्यामा ठाकुर सर आप इस सीन का इस तरह से आगे बढ़ायें कि तभी नायिका का भाई अपने दोस्त के साथ उसी रेस्तरां में आ जाता है और अपनी बहन को इस तरह से प्रीतम के साथ देख कर
अनजान नहीं नहीं ये हर तीसरी फिल्म में होता है। हम अपने नॉवल को कुछ ओरिजिनल टच देना चाहते हैं। हम कुछ ऐसी चीज़ देंगे कि चारों तरफ तहलका मच जाये।
श्यामा ठाकुर यू मीन तहलका डॉट काम
अनजान शट अप। यूं लिखो कि सुलोचना का भाई तभी अपनी गर्ल फ्रैंड के साथ उसी रेस्तरां में आता है लेकिन अपनी बहन को वहां देख कर लौट जाता है।
श्यामा ठाकुर ये क्या सर, आप यहां इन दोनों का आमना सामना दिखा कर अच्छे डायलॉग दे सकते हैं।
अनजान टोको नहीं लिखो, भाई को देख कर सुलोचना घबरा गयी है। कहती है : अब क्या होगा प्रीतम, अगर भइया ने घर पर शिकायत कर दी तो
: वह ऐसा नहीं करेगा सुलोचना, क्योंकि वह खुद भी किसी लड़की के साथ था।
: तुम हमारे समाज को नहीं जानते प्रीतम, हमारे समाज में भाई को सात खून माफ हैं लेकिन बहन ऐसा नहीं कर सकती
: ज़माना बहुत बेदर्द है सुलोचना
: तो हम क्या करें प्रीतम
: ज़माने को दिखा देंगे
: लेकिन जब तक हमारी हड्डियां साबुत बची रहें तब ना
: ज़माने से लड़ेंगे
: किस बूते पर
: तो फिर भाग चलते हैं सुलोचना
: लेकिन भाग कर जायेंगे कहां अभी तो
: अभी तो क्या
: पहले तुम्हारे पिताजी अपनी जायदाद तो तुम्हारे नाम कर दें। हो जाये तो भागेंगे
: तुम बेवफा हो सुलोचना
: नहीं समझदार हूं प्रीतम
: तुम बुजदिल हो
: तुम मक्कार हो
: तुम मतलबी हो, प्यार को पैसे से तौल रही हो
: तुम्हारी ये मज़ाल कि मुझ पर इतना बड़ा आरोप लगाओ, जाओ मैं तुमसे नहीं बोलती
: मैं भी तुम्हारी परवाह नहीं करता
: ऐसी बात तो मैं चली
: जा कर दिखाओ मेरे ठेंगे से
: तो मेरा भी ठेंगा देख लो
और तभी सुलोचना प्रीतम से रूठ कर चली जाती है। प्रीतम उसे जाते देखता रहता है।
अब बहुत हो गया। छोटा सा ब्रेक ले लें। काफी शाफी हो जाये।
श्यामा ठाकुर सर बड़ा अटपटा सा डायलॉग हो गया ये तो
अनजान क्यों क्या हो गया जरा पढ़ना तो
श्यामा ठाकुर सुलोचना जा रही है और प्रीतम कह रहा है, अब बहुत हो गया। छोटा सा ब्रेक ले लें। काफी शाफी हो जाये।
अनजान आप भी कमाल करती हैं श्यामा जी, ये डायलॉग नहीं है। ये तो मैं आपसे कह रहा हूं कि बहुत हो गया। जरा कॉफी हो जाये। समझीं
(कॉफी बनाने की आवाज़)
श्यामा ठाकुर एक बात बताऊं सर
अनजान अब क्या है
श्यामा ठाकुर आपने ये जो नायक का नाम प्रीतम सिंह रखा है लगता है कोई टैक्सी ड्राइवर है और सुलोचना से लगता है कि गांव में रहने वाली कोई लड़की है।
अनजान आपने ठीक पहचाना मैडम, प्रीतम सिंह की टैक्सियां चलती हैं और उसका बाप भी ड्राइवर है। सुलोचना गोरेगांव में रहती है।
श्यामा ठाकुर ओह आइ सी
अनजान हां उसके पापा आइल इंडिया कार्पोरेशन में हैं।
तो शुरू करते हैं। लिखिये, सुलोचना जब प्रीतम से नाराज हो कर चली गयी तो उसकी आंखों में आंसू
श्यामा ठाकुर सर जब चली गयी तो पीठ पीछे आंसू
अनजान टोकिये मत, पूरा वाक्य सुनिये
श्यामा ठाकुर सॉरी सर, आगे बोलिये
अनजान आप सब कुछ भुला देती हैं। पूरा वाक्य इस तरह से है कि सुलोचना जब प्रीतम से नाराज हो कर चली गयी तो उसकी आंखों में आंसुओं की कल्पना करके ही उसे डर लगने लगा कि कहीं वह खुदकशी न कर ले।
श्यामा ठाकुर कोई इत्ती सी बात पर खुदकुशी नहीं किया करता
अनजान आपको कैसे मालूम, आप कोई ज्योतिषी हैं क्या
श्यामा ठाकुर हमें सब मालूम है। अगर मैं सारे बॉय फ्रैंडस की बातों का बुरा मानने लगी तो अब तक सौ बार खुदकुशी कर चुकी होती।
अनजान बहुत आत्म विश्वास है अपने आप पर
श्यामा ठाकुर करना पड़ता है वरना ये लड़के लोग तो हमें बेच खायें।
अनजान चलिये आगे लिखिये
श्यामा ठाकुर जी सर
अनजान अब प्रीतम सिंह परेशान है कि सुलोचना से कांटैक्ट कैसे हो। सुलोचना उसका फोन सुनते ही रख देती है और उससे बात ही नहीं करना चाहती। प्रीतम परेशान है कि क्या करे और सुलोचना को कैसे मनाये। वह यह भी जानना चाहता है कि कहीं उसके भाई ने घर पर शिकायत तो नहीं कर दी है।
श्यामा ठाकुर पागल है
अनजान आपने कुछ कहा मैडम
श्यामा ठाकुर नहीं आपसे नहीं
अनजान तो किससे कहा, यहां तो और कोई भी नहीं है।
श्यामा ठाकुर मैं तो सिर्फ ये सोच रही थी कि मेरा बाय फ्रैंड अगर ऐसा आरोप लगाता मुझ पर तो मैं उसे चार जूते मारती।
अनजान आप जरूर मेरे नावल का भट्टा बिठायेंगी। वैसे ही आगे नहीं बढ़ रहा और ऊपर से आप
श्यामा ठाकुर मेरी मानिये तो लड़की को थोड़ा बोल्ड बनाइये और उसे सीधे प्रीतम सिंह के घर भेज दीजिये
अनजान उससे क्या होगा
श्यामा ठाकुर होगा क्या, दोनों की गलतफहमी दूर हो जायेगी। और आपका नावल आगे बढ़ने लगेगा।
अनजान खतम नहीं हो जायेगा वहीं पर
श्यामा ठाकुर तो हो जाने दीजिये ना
अनजान कमाल करती हैं आप भी। यहां लाखों पाठक मेरे उपन्यास की राह देख रहे हैं और आप इसका बंडल बनाने के चक्कर में हैं। चलिये आगे लिखते हैं। कहां थे हम
श्यामा ठाकुर हम तो यहीं थे सर
अनजान मेरा मतलब प्रीतम और सुलोचना
श्यामा ठाकुर सुलोचना को प्रीतम के घर भेजने की बात चल रही थी।
अनजान ऐसा कीजिये, लिखिये, प्रीतम सिंह सुलोचना के पास उसकी एक सहेली के जरिये संदेश भेजता है कि वह उसे रविवार की शाम छः बजे चर्चगेट पर मिले
श्यामा ठाकुर क्यों उस बिचारी को इतवार के दिन गोरेगांव से इतनी दूर बुला रहे हैं सर, वहीं कहीं आस पास ही बुला लीजिये ना
अनजान मैंने आपसे राय मांगी क्या
श्यामा ठाकुर मैंने तो इसलिए कहा कि उसके पास वैसे ही पैसों की तंगी रहती है।
अनजान चलिये आगे लिखिये, एक तो आप बार बार टोक कर मेरा सारा सोचा समझा डिस्टर्ब कर देती हैं। हां तो आगे लिखिये, इस बीच प्रीतम सिंह ने सुलोचना के लिए एक खूबसूरत गिफ्ट खरीद लिया ताकि मिलने पर उसे दे सके और उसे मना सके
श्यामा ठाकुर अच्छा आइडिया है सर, मेरे सारे दोस्त मुझे मनाने के लिए हमेशा बढ़िया गिफ्ट ही लाते हैं। बाय द वे प्रीतम ने कौन सा गिफ्ट खरीदा
अनजान अभी सरप्राइज रहने दो। बाद में अपने आप पता चल जायेगा। आगे लिखो, तो जब सुलोचना वाकई उससे मिलने आयी तो अपनी बेवकूफी पर बहुत रोयी।
श्यामा ठाकुर वह है ही बेवकूफ तो अपनी बेवकूफी पर रो ही सकती है।
अनजान कुछ कहा आपने
श्यामा ठाकुर नहीं कुछ नहीं
अनजान क्या लिखा आपने
श्यामा ठाकुर सुलोचना ने प्रीतम से कहा हम कितना रोये
अनजान लेकिन मैंने ये लिखने के लिए कहा ही कह़ां
श्यामा ठाकुर ऐसे मौकों पर लड़कियां ऐसे ही गाने गाती हैं
अनजान कमाल है, उपन्यास मैं लिख रहा हूं या आप
श्यामा ठाकुर लिख तो मैं ही रही हूं, लिखवा आप रहे हैं।
अनजान तो ढंग से लिखिये, हां क्या लिखा
श्यामा ठाकुर आपने अपनी तरफ से कुछ भी लिखने से मना कर दिया है।
अनजान तो यही बता दीजिये कि मैंने आखरी संवाद क्या लिखवाया है।
श्यामा ठाकुर तो जब सुलोचना वाकई उससे मिलने गयी तो अपनी बेवकूफी पर बहुत रोयी।
अनजान हां, आगे लिखिये, प्रीतम को भी अपने कहे पर बहुत अफसोस हुआ और उसने वायदा किया कि अब से कभी भी उसका दिल नहीं दुखायेगा और दोनों एक दूसरे का पूरा ख्याल रखेंगे।
सुलोचना ने भी उससे वायदा किया कि वह उसकी आवाज सुनने पर अब फोन डिस्कनेक्ट नहीं करेगी।
श्यामा ठाकुर प्रीतम को चाहिये था कि उसे मोबाइल गिफ्ट में दे देता
अनजान आपसे किसी ने पूछा
श्यामा ठाकुर पूछा तो नहीं लेकिन अच्छी सलाह कोई भी दे, मान लेनी चाहिये। मेरे सामने ऐसी सिचुएशन आती तो मैं खुद अपने बॉय फ्रैंड से मोबाइल मांग लेती
अनजान आपकी जानकारी के लिए मिस श्यामा ठाकुर, ये उपन्यास जो हम लिख रहे हैं, आज से पंद्रह बरस पहले की कहानी कह रहा है और मेहरबानी करके आप मुझे बार बार टोके नहीं। ध्यान भंग होता है।
श्यामा ठाकुर क्या भंग होता है।
अनजान ध्यान, ध्यान मेरा मतलब कन्सन्ट्रेशन
श्यामा ठाकुर ये डायलाग है क्या सर
अनजान अरे बाबा डायलाग नहीं है, आपको नेक सलाह है। आगे लिखिये जब सुलोचना ये गिफ्ट पैकेट ले कर घर पहुंची तो उसने तेजी से अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और धड़कते दिल से पैकेट खोला। पैकेट खोलने से पहले उसने अपनी आंखें बंद कर लीं और कांपते हाथों से पैकेट खोला। पैकेट खोलते ही उसके हाथों के तोते उड़ गये।
श्यामा ठाकुर धत, कोई अपनी रूठी हुई प्रेमिका को मनाने के लिए तोते गिफ्ट पैक करके देता है।
अनजान अरे ये तो मुहावरा है। सच में तोते थोड़े ही थे।
श्यामा ठाकुर (लिखते समय बोलती है) अरे ये तो मुहावरा है। सच में तोते थोड़े ही थे।
अनजान जब उसने आंखें खोली तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ। उसके सामने एक जगमगाता, नहीं, झिलमिलाता, नहीं नहीं, झिलमिलाता भी नहीं, चमकता और दमकता और
श्यामा ठाकुर और क्या
अनजान और मुस्कुराता टैडी बीयर था। वह उसे देखते ही खिलखिला पड़ी और प्यार से बोली, प्रीतम भी बिल्कुल सरदार ही है। गिफ्ट देना भी नहीं आता। लेकिन साथ ही उसे इस प्यारे गिफ्ट को पा कर बहुत अच्छा भी लगा। उसने उसे अपने सीने से लगा लिया
श्यामा ठाकुर किसे प्रीतम को
अनजान अब से प्रीतम कहां से आ गया बीच में। वहां तो उसका भेजा टैडी बीयर ही है। उसी को गले लगाया। समझीं और ध्यान से लिखिये। आपका ध्यान पता नहीं कहां कहां होता है।
श्यामा ठाकुर कहीं भी तो नहीं। मैं तो पूरे ध्यान से लिख रही हूं।
अनजान ठीक है। ठीक है। आगे लिखिये
श्यामा ठाकुर जी
अनजान उधर प्रीतम सिंह के दिल में धुकधुकी मची हुई थी कि पता नहीं सुलोचना ने उसे माफ किया है या नहीं और क्या उसे टैडी बीयर पसंद आया या नहीं। यही सोचता हुआ वह अपने घर की छत पर चहलकदमी करता रहा। चारों तरफ निस्तब्धता थी।
श्यामा ठाकुर क्या थ़ी
अनजान निस्तब्धता
श्यामा ठाकुर वो क्या होती सर
अनजान उसे क्या कहते हैं ट्रिंकुवैलिटी
श्यामा ठाकुर तो हिन्दी में बोलिये ना
अनजान हां तो वह, मतलब वही छायी हुई थी। कहीं कोई पत्ता खड़कने की आवाज भी नहीं आ रही थी।
श्यामा ठाकुर रात में वैसे भी पत्ते नहीं खड़कते सर
अनजान ठीक है ठीक है आगे लिखो, प्रीतम को लग रहा था, इस बार जरूर उसकी मन मांगी मुराद पूरी हो जायेगी और सुलोचना शादी के लिए हां कह देगी। कितने बरस हो गये उसे इस तरह से अकेले रहते हुए और होटलों का खाना खाते हुए। ईश्वर ने चाहा तो उसकी भी शादी होगी और वह दूल्हा बन कर सुलोचना के घर जायेगा।
श्यामा ठाकुर सर, सिक्वेंस उल्टी नहीं हो रही है यहां, पहले शादी और फिर दूल्हा बन कर जाने की बात।
अनजान नहीं ठीक है। आगे लिखो, उसका कारोबार चल निकलेगा और वह एक दिन अपनी प्यारी गाड़ी में बैठ कर अपनी प्यारी सुलोचना को घुमाने ले जायेगा।
श्यामा ठाकुर पागल है।
अनजान क्या कहा
श्यामा ठाकुर जी कुछ नहीं, प्रीतम को पहले प्रोपोज तो करना चाहिये। फालतू में ख्वाब देखे जा रहा है।
अनजान उधर सुलोचना का भी यही हाल है। वह समझ नहीं पा रही कि प्रीतम ने क्या सोच कर उसे ये बड़ा सा टैडी बीयर दिया है। वह भी अपनी छत पर आ जाती है और चांदनी रात में गुनगुनाने लगती है।
श्यामा ठाकुर कौन सा गाना सर
अनजान वह गुनगुना रही है मिस श्यामा ठाकुर इसलिए जरूरी नहीं कि गाने के बोल भी दिये ही जायें।
श्यामा ठाकुर मैंने तो यूं ही पूछा। वैसे मैं होती तो वो वाला गाना गाती : चांदनी रात पिया
अनजान ठीक है आप अपनी पसंद का गाना गा लेना लेकिन फिलहाल लिखिये : सुलोचना भी सोचे रही है, कितनी खुशनसीब है वो कि कोई उसे इतना प्यार करता है। और उसके लिए आहें भरता है। अपने इश्क को परवान चढ़ते देख किसे अच्छा
श्यामा ठाकुर क्या चढ़ते सर
अनजान परवान
श्यामा ठाकुर माने
अनजान माने वो ऊपर यानी सीढ़ियां
श्यामा ठाकुर ओह माइ गॉड, मैं तो एकदम भूल ही गयी थी।
अनजान अब क्या हो गया क्या भूल गयीं आप
श्यामा ठाकुर आज जरूर मेरी पिटाई होगी आपके इस नावल के डिक्टेशन के चक्कर में। मैं भूल ही गयी थी कि मेरी दादी आज सीढ़ियों से फिसल कर नीचे गिर गयी है और मुझे उसे अस्पताल भरती कराने जाना है। मैं जाऊं सर
अनजान बाय द वे आज कौन सा दिन है।
श्यामा ठाकुर क्यों आज सोमवार है।
अनजान तो मिस श्यामा ठाकुर, आज सोमवार है और आप आज वाले बाय फ्रैंड से मिल ही चुकी हैं। ये एक्स्ट्रा शिफ्ट किस लिये
श्यामा ठाकुर वो ऐसा है ना कि सर आज उसका जनम दिन है।
वो आज आप यहां आने से पहले ही मना चुकी हैं। अब किसलिये जाना है
श्यामा ठाकुर सर वो आज बहुत लोनली फील कर रहा है ना इसलिए
अनजान और यहां प्रीतम और सुलोचना एक दूसरे के लिए ठंडी आहें भर रहे हैं वो
श्यामा ठाकुर वैसे भी सर, आप कहां उन दोनों को फिर से मिलवाने वाले हैं। चांदनी रात में दोनों अपनी अपनी छत पर खड़े ठंडी आहें ही तो भर रहे हैं। भरने दीजिये थोड़ी देर। मैं जाऊं सर
अनजान अब तो भगवान ही मालिक है मेरे नावल का। यही हाल रहा तो
श्यामा ठाकुर मैं जा रही हूं सर, गुड डे
अनजान सुनिये मिस श्यामा ठाकुर
श्यामा ठाकुर जी
अनजान क्या नाम है आपके आज वाले बाय फ्रैंड का
श्यामा ठाकुर क्यों, संदीप है उसका नाम। आप उसके लिए कोई गिफ्ट दे रहे हैं सर, हाय आप कितने अच्छे हैं। संदीप एकदम खुश हो जायेगा।
अनजान ऐसा कीजिये मिस श्यामा ठाकुर, मैं यह नावल आप दोनों को समर्पित करता हूं। वैसे भी अब ये तीन दिन में पूरा होने से रहा। मुझे लगता है प्रेम के बारे में आपके अनुभव मुझसे ज्यादा और सच्चे हैं। आप सुलोचना की जगह ले लीजिये और प्रीतम की जगह अपने किसी भी बाय फ्रैंड को रख दीजिये और नावल पूरा कर दीजिये। टाइप करके भेज दीजिये कहीं भी। जरूर छप जायेगा। जाइये बेस्ट आफ लक।

सूरज प्रकाश, एच1/101 रिद्धि गार्डन, फिल्म सिटी रोड, मालाड पूर्व मुंबई 400087
मोबाइल 9860094402

Wednesday, June 18, 2008

सास की बलि

आज भी सुबह तड़के उठी सास नहा-धो कर पूजा वंदना करने जा रही थी, तभी बहू की आवाज़ आई- "माँजी, आज चाय मिलेगी या नहीं?" सास गंभीर शांत स्वभाव की मृदु भाषिणी परिपक्व स्त्री है, आज भी चुप रही। बहू आधुनिक युग की काम करने वाली, सदैव जल्दबाजी में रहने वाली और मुँहफट, गुस्सैल लड़की है, चुप रहना जैसे उसने सीखा ही नहीं है। वो आज भी चिल्लाती रही, परन्तु आज उसका गुस्सा चिल्लाने तक सीमित नहीं रहा, उसने देखा कि सास ने कुछ भी जवाब नहीं दिया और सूर्य देव को अर्घ्य देने जा रही है तो गुस्से में उसने सोचा कि आज एक ही बार से सास को सबक सिखाया जाए, ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी और क्रोध की अग्नि में रसोई घर में जाकर गैस का बटन खोल कर आ गई, ताकि जैसे ही सास रसोई में आकर चाय बनाने के लिए गैस जलाए तो ख़ुद भी जलकर राख हो जाए . और जाते-जाते सास को फ़िर से हुक्म सुनाती हुई गई -"मांजी , मैं ब्रश करने जा रही हूँ ,चाय बनाकर रखियेगा।"


बहू ब्रश करने चली गई, सास जब ठाकुर जी की पूजा अर्चना खत्म करके रसोई में आई तो उसने गैस की गंध महसूस की, तभी उसने ध्यान से देखा तो पाया कि गैस का बटन खुला हुआ है, उसने तुरंत गैस का मुख्य बटन बंद किया, सास पढ़ी-लिखी आज के युग में जीने वाली स्त्री है, वो जानती है कि गैस के रिसने से क्या हो सकता है इसलिए उसने रसोई के सारे दरवाजे खिड़कियाँ खोल दिए और घर के अन्य खिड़की दरवाजे खोलने चल दी।

बहू जल्दबाजी में झल्लाते हुए बाहर आई, चाय अभी तक तैयार नहीं है ये देख कर वो फ़िर से आग बबूला हो गई -"इस घर में ठीक समय पर कुछ मिलता ही नहीं है, मांजी से एक चाय बनाने को कहा है तो वो सुबह से नदारद हैं , इधर आफिस जाने के लिए देर हो रही है और अब चाय भी ख़ुद ही बनाओ!!!!!!"

हडबड़ाहट में वो यह भूल ही गई कि उसने स्वयं गैस का बटन खुला छोड़ दिया था, बिना कुछ सोचे समझे उसने तपेली में चाय के लिए पानी डाला और चूल्हे पर रखा, माचिस हाथ में उठाया ही था कि मांजी की आवाज़ आई,
" बहू , माचिस मत जलाना, पूरे घर में गैस फ़ैल चुकी है।"

और बहू सिर से पैर तक कांपती हुई होंठो को सिले खड़ी रह गयी।

--पूजा अनिल

Saturday, June 7, 2008

रम-बाबा

आज प्रस्तुत है पेशे से डाक्टर और शौक से कवि, कहानीकार, आलोचक, विचारक श्याम सखा 'श्याम' की एक कहानी रम-बाबा। कथाकार श्याम पिछले दस सालों से हिन्दी की त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 'मसि-कागद' का सम्पादन भी कर रहे हैं।

मैं और राजू पुराने दोस्त व सहपाठी हैं, लगभग दस साल पुरानी बात है । मैं डॉक्टरी पास कर चु्का था और राजू वकालत । दोनों ने अपने कस्बे पास के नगर में प्रैक्टिस शुरू की थी। राजू शाम को कचहरी की धूल फाँककर खाली जेब, खाली पेट मेरे कलीनिक पर आ जाता था । जहाँ मैं भी लगभग सारा दिन खाली बैठा मक्खियाँ मारता था। हम दोनों आमने-सामने बैठे, एक-दूसरे के चेहरे को चुपचाप घूरते, सोचते, कयास लगाते कि किसने, कौन सा तीर मारा? अधिकतर हम एक-दूसरे के चेहरे पर ऊब, थकान और हताशा को पढ़ते। तब तक पास की दुकान का चाय वाला छोकरा, जिसे राजू आते-जाते चाय बोल आता था, आकर मेज पर चाय रख देता। हम दोनों, अपने-अपने गिलास में चाय को ऐसे झांकते जैसे वह मुवक्किल और मैं मरीज खोज रहा होऊँ ।फिर पुरानी आदतवश लगभग इकट्ठे गा उठते, ''हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब, एक दिन'' और चाय का गिलास उठाते चियर्स कहकर गिलास टकराते और ठहाका मारकर हँस पड़ते।

गर्दिश के दिन बीत रहे थे। राजेंद्र को कभी-कभार कोई जमानती केस मिल जाता या मेरे पास कोई एक्सीडेंट का मरीज आ जाता तो हम बढ़िया होटल में जाकर जश्न मनाते। मैं हर मरीज पर व राजू हर मुवक्किल पर वे सारे नुस्खे आजमा चुके थे, जो हमने डेल कारनेगी की पुस्तक 'सफल कैसे हों'' में पढ़े थे। मगर शायद वे नुस्खे बहुत पुराने हो चुके थे और आज के जमाने में कारगर नहीं हो रहे थे या कि हम दोनों थे ही इतने घामड़ कि प्रेक्टिस हमारे बलबूते की बात नहीं थी। हम लोग मायूस होकर नौकरी करने कीसोच रहे थे।

एक दिन अनायास ही हम दोनों की मुलाकात ऐसे व्यक्ति से हो गई, जो सफलता के अनूठे नुस्खे जानता था। हर वर्ग, हर उम्र के व्यक्ति उससे सलाह लेने जाते थे। हमने शुरू-शुरू में तो उसके पास जाना अपनी तौहीन समझा क्योंकि वह एक मैला कुचैला बूढ़ा था, जिसकी शक्ल से ही शैतानियत टपकती थी। उसकी लंबी-उलझी गंगा-जमुनी दाढ़ी के हर बाल से मक्कारी लटकती नजर आती थी। उसकी सफाचट खलवाट ऐसे चमकती थी, जैसे मरुस्थल में नखलिस्तान । उसकी, भूरी मिचमिचाती आँखे देखकर ''सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली'' कहावत याद आ जाती थी। लोग उसे जाने क्यों हरफन- मौला हुनरमन्द कहते थे? जबकि वह कभी कुछ काम करता नहीं देखा गया था। वह कहाँ रहता था हमें मालूम ही नहीं था? मगर वह सप्ताह के अन्तिम दो दिनों में जाने कहाँ से शहर के बीचों-बीच बनी मस्जिद की सीढ़ियों पर बीड़ी पीता दिख जाता था। निठल्ले जुआरी-सट्टेबाज दाँव या लाटरी का नंबर पूछने की गरज से उसके आस-पास मंडराते रहते थे। वह सबसे लापरवाह अपनी बीड़ी के कश लगाता आसमान निहारता रहता था। कई बार संभ्रान्त दिखने वाले आदमी और औरतें कारों में आते उसको सलाम-नमस्ते करते उस्के पास सीढ़ियों पर बैठ जाते। ऐसे वक्त जुआरी तथा सटोरिये दूर खिसक लेते थे।


मेरे पड़ोस में लाटरी स्टाल लगाने वाला गुलशन मदान उसका बड़ा भक्त था। मैंने हुनरमन्द को कई बार उसके साथ जाते देखा था। आज शनिवार था मदान शाम को उसके पास जाता था। मैंने मदान को बुलवाया और उसके बारे में पूछा तो मदान खिल उठा, कहने लगा ''ओ साहब रम-बाबा (मदान तथा कुछ लोग उसे रम-बाबा कहते थे) तो बादशाहों का बादशाह है। हर धंधे के बारे में ऐसे जानता है जैसे दाई औरत के पेट को। उसके नुस्खे लाजवाब होते हैं, तुसीं (आप) कदी ( कभी) आजमा के देखो।''
मैं खाली बैठे, मक्खी मारते-मारते तंग आ चुका था। अतः पूछ बैठा कि वह मस्जिद के अलावा कहीं और मिल सकता है ?

''ओह! तुसीं हुक्म करो! मैं तुहाडे कोल ले आवांगा (अजी ! आप हुक्म करें, मैं उसे आपके पास ले आऊँगा)। ''

मैंने कुछ सोचकर कहा ''ठीक है, आज ही ले आओ, रात नौ बजे के बाद ।''

मैं लगभग साढ़े आठ बजे क्लिनिक बन्द करके ऊपर कमरे पर आ गया। राजेन्द्र भी कमरे पर था। दस दिन से उसने किसी मुवक्किल का मुँह नहीं देखा था। अतः वह बोतल खोले बैठा था। जब मैंने उसे बतलाया कि मदान बूढ़े हुनरमंद को ला रहा है तो वह उछल पड़ा,
''चलो मुवक्किल न सही, शायद कहानी का मसाला ही हाथ लग जाए ।''

राजू कभी-कभार कविता-कहानी लिख लेता था, उस की चार-पाँच कहानियाँ छप चु्कीं थी। मुझे इस तरह का कोई शौक न था।

लगभग साढ़े नौ बजे गुलशन हुनरमंद को लेकर आ पहुँचा। काईयाँ गुलशन के चेहरे पर अजीब तरीके श्रद्धा चिपकी हुई थी। उसने उस लंबे-तगड़े बूढ़े हुनरमंद को कुर्सी पर बैठा दिया और खुद जमीन पर उसके करीब बैठ गया।
बाबा ने सिगरेट सुलगाकर लंबा कश लिया और बोलने लगा, उसकी आवाज उसके डील-डौल, हुलिये के मुकाबिल बड़ी निराली थी । ''बेटो आजकल पैसे मेहनत, ईमानदारी, शराफत से नहीं, हुनर से कमाए जा सकते हैं । डॉक्टर तेरा धंधा थोडा मुश्किल है,अगर धंधा करना है तो प्रोफेशनल हो जा । रूह यानि आत्मा घर छोड़ आया कर क्लिनिक साथ मत लाया कर । देख, जो लोग तुझे फीस देने में आना-कानी करते हैं ना, उनसे निबटने का व फीस वसूल करने का सरल नुस्खा है ।
फिर मदान ने थैले से रम की बोतल निकाली और बाबा के सामने रख दी। रम-बाबा की आँखें छत पर टिकी थीं। मदान उसके पैर दबाए जा रहा था। लगभग दस मिनट बीते होंगे। रम बाबा ने हुंकार लगाई ''बोल अलख! दे किस्मत पलट'' और उसकी नजर मेज पर रखी रम की बोतल पर गई। वह बोतल को घूरने लगा। मैं और राजू अब तक चुपचाप तमाशाई बने बैठे थे और रम बाबा तो जैसे हमारी मौजूदगी से बेफिकर था, फिर उसने बोतल का कार्क खोला, लगभग चौथाई बोतल फर्श पर उड़ेल दी। राजू उठकर कुछ कहने को हुआ। मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। रम बाबा ने बोतल मुँह से लगाई और देखते-देखते वह लगभग पूरी बोतल ही गटक गया। वह फिर छत या आसमान की तरफ ताकने लगा था। मदान अपने उसी कांईयाँ हाव-भाव से बाबा के दुबले पतले रोयेंदार पाँव दबाए जा रहा था। हम पर एक-एक पल भारी होता जा रहा था।

लगभग पाँच मिनट बाद, रम बाबा फिर जमीन पर लौटे और बोले, ''बोल अलख ! मूरख निपट! किस्मत पलट! मदान ने हमें संकेत किया। शायद इन्सान की फितरत ही ऐसी है कि अजीब व लीक से ह्टकर अनजानी शक्तियों को पूजने लगता है। जैसे गुफा मानव सूरज, पवन, पहाड़, आग, बादल, नदी, बिजली आदि को डरकर पूजता था उसी तरह आज भी हम जब भविष्य के प्रति अनिश्चित होते हैं तो गु्फा मानव की भयभीत मानसिकता में आ जाते हैं और ज्योतिषी, पंडितों, साधुओं, तांत्रिकों तथा पीठ, मजारों की गैबी ताकत के आगे झुक पड़ते हैं । शायद यही कारण था कि राजू और मैं मदान के संकेत पर रम बाबा के सामने हाथ जोड़कर जमीन पर बैठ गए।

मदान ने पैर दबाते-दबाते, बड़े दयनीय भाव से बाबा से कहा, ''बाबा! यह साडे डॉक्टर साहब ने ते एह ने वकील साहब, इन्हांदा उद्धार करो, इन्हानूं इन्हां दे पेशे दे कामयाब नुस्खे बतलाओ और सिगरेट की एक डब्बी व माचिस रम बाबा को पकड़ा दी।
बाबा ने सिगरेट सुलगाकर लंबा कश लिया और बोलने लगा, उसकी आवाज उसके डील-डौल, हुलिये के मुकाबिल बड़ी निराली थी । ''बेटो आजकल पैसे मेहनत, ईमानदारी, शराफत से नहीं, हुनर से कमाए जा सकते हैं । डॉक्टर तेरा धंधा थोडा मुश्किल है,अगर धंधा करना है तो प्रोफेशनल हो जा । रूह यानि आत्मा घर छोड़ आया कर क्लिनिक साथ मत लाया कर । देख, जो लोग तुझे फीस देने में आना-कानी करते हैं ना, उनसे निबटने का व फीस वसूल करने का सरल नुस्खा है । मान ले, तेरे पास कमर दर्द का मरीज आया, उसे जाँच कर दवा लिख दे पर उसके एक्स-रे मत कर । क्या बचेगा एक्स-रे में बीस-तीस रुपये, दवा भी ऐसी लिख कर पूरा आराम न हो, दूसरी बार जब वह आकर कहे कि, आराम कम है तो उसे दवा बदलकर दे दे तथा उसके कान में चुपके से डाल दे कि आराम नहीं हुआ तो सी.टी. स्केन की सोचेंगे कहीं कोई बड़ी बीमारी न हो । तीसरी बार साला खुद सी.टी. स्केन पर खरचेगा । तुझे चार सौ रुपए कमीशन के मिलेंगे, जो उसने तुझे पूरी बीमारी में नहीं देने थे ।''

''वो जो तेरे सामने डॉ. रजनी है ना भूखों मरती थी । एक दिन उसे नुस्खा बतलाया था। आज देख कर, कोठी, बंगला सब है साली के पास । बतलाऊँ? नुस्खा क्या था ? सुन उसके पास जब भी कोई औरत या लड़की जाँच हेतु पेशाब टैस्ट कराने आती है ना तो वह उसे बातों में लगाकर पता कर लेती है कि उसे बच्चा चाहिए कि नहीं, अगर औरत को बच्चा नही चाहिए तो वह टैस्ट रिपोर्ट में चाहे बच्चा आए या ना आए उसे कहती है कि रिपोर्ट पॉजटिव है। माने उसे बच्चा है अब तो औरत के पाँव तले की धरती निकल जाएगी और अगर लड़्की कुंआरी हुई तो आसमान टूट पड़ेगा उस पर और वह हर हालत में अबार्शन करवाएगी । टैस्ट में डाक्टर को क्या खाक बचना था ? '' अब बेहोशी का टीका लगाया । थोड़ी-सी छेड़छाड बच्चेदानी में की और पा लिए सैकड़ों रुपए बिना अबार्शन किए । सच बताऊँ उसे अबार्शन करना आता ही नहीं, असली अबार्शन तो उसकी असिस्टैंट डॉक्टर ही करती है और तू वकील, तेरा मामला तो आसान है । बस एक बार मुवक्किल फंसा ले, कितनी ही थोड़ी फीस ले ले, दस-पाँच पेशियों के बाद मुवक्किल को मुंशी से समझवा दे कि जज रिश्वत खाकर फैसले करता है । फिर देख मुवक्किल खुद ही तेरे पास भागा आयेगा रिश्व्त की पोटली लेकर। एकदम से मत रख लेना। कहना, टाउट ढूँढता हूँ । मुवक्किल के बार-बार जोर देने पर रिश्वत के पैसे रख लेना, यह कहकर कि टाउट मिल गया है और अपने खिलाफ के वकील को भी इसी तरह तैयार करले अब वादी-प्रतिवादी दोनों में से एक को तो जीतना ही है । बस हारने वाले के पैसे ईमानदारी से वापिस कर दो और जीतने वाले के पैसे दोनों वकील आधे-आधे बाँट लेना । हारने वाले से कहना कि तेरा केस तो पक्का था शायद दूसरी पार्टी ने रिश्वत ज्यादा दे दी । अब तो बुरा जमाना आ गया भाई पर कोई बात नहीं, हाईकोर्ट है ना और उससे अपील करवाकर हाईकोर्ट के वकील से कमीशन ऐंठ । बाबा कहकर चुप हो गया, फिर कहने लगा, ''अरे ! तुम ऐसा नहीं करोगे तो जज ऐसा करेंगे । मैं खुद पेशकार था, कभी, बहुत कुछ देखा है मैंने । एक जज तो बड़ा ईमानदार किस्म का बेईमान था । वह कभी भी हारने वाले को नहीं जिताता था, चाहे कितने ही पैसे कोई क्यों न दे ? उसका तरीका बड़ा नायाब था बहस के बाद, फाइल पढ़कर देख लेता वादी या प्रतिवादी में से कौन जीतेगा ? बस जीतने वाले के पीछे, मुझे लगा देता और जब तक वह प्रसाद न चढ़ा देता । तारीख लगती रहती । प्रसाद चढ़ाने पर ही फैसला लिखा जाता । न मिलने पर जज के तबादले पर अगला जज ही फैसला लिखता। दुबारा बहस सुनकर ।'' रम बाबा कुछ सौम्य हो चले थे । शायद उन्हे भी इस बात का एहसास हो गया था । उन्होने रम की बची-खुची बोतल गले में उड़ेली छत की तरफ ताका और ''अलख-किस्मत-पलट''कहकर उठकर चल दिए।

मैं और राजू भी राजू की लाई विहस्की पीकर सो गए । रात अचानक मुझे लगा कमरे में भूचाल आ गया है। उठा तो मालूम हुआ कि भूचाल नहीं आया था । राजू मुझे जोर-जोर से हिलाकर उठा रहा था ।
''ओ सिविल सर्जन उठ ! एमरजेंसी आई है, खड़ा हो यार, क्या गधे बेचकर सोता है, तू ? डॉक्टर की नींद तो कुत्ते जैसी होनी चाहिए ।''

मैं जल्दी से उठकर नीचे गया, देखा पड़ोसी रामकिशन हलवाई अपनी बीमार माँ को रिक्शा पर लेकर आया था ।वह कहने लगा, ''डॉक्टर साहिब, मेरी माँ दमे की पुरानी मरीज है । अबसे पहले हम डॉक्टर सन्तलाल के पास जाते थे, वे ‚ग्लूकोज में चार-पाँच टीके लगाते हैं, आक्सीजन देते हैं तब कहीं जाकर दो दिन में ठीक होती है । अबकी बार हमने सोचा, पड़ोसी डॉक्टर को दिखा लेते हैं । आप जल्दी ‚ग्लूकोज लगाएं बहुत तकलीफ में है ।''

मैंने अन्दर जाकर उसकी माँ की जाँच की तो पाया कि वह सचमुच दमे की मरीज है । एक बार तो रम बाबा की बात याद कर सोचा‚ ग्लूकोज तथा आक्सीजन लगा ही दूँ। मन दुविधा में था कि रम बाबा की बात मानूँ या न मानूँ । पर फिर मेरी आत्मा ने मुझे धिक्कारा और मैंने रमबाबा की बात न मानकर उससे भी ऊपर वाले 'बाबा' (भगवान) की बात मानकर, बुढिया को नेबुलाइजर से दवा दी, कुछ मिंटों में ही उसे आराम आ गया । उसे कुछ दवा व इन्हेलर लिखकर दिया और लेने का तरीका समझा दिया । बूढ़िया व रामकिशन हैरान थे ।

बूढ़िया के इतने जल्दी बिना ‚ग्लूकोज व टीके के आराम हो जाने से एक बार पूछा ''डॉक्टर साहिब दोबारा तो अटैक नहीं हो जाएगा ।''

मैंने कहा, 'नहीं'अब अगर तुम इन्हेलर लेती रही तो ऐसा अटैक नहीं पड़ेगा। बूढ़िया आशीष देती हुई चली गई। पता नहीं बूढिया की आशीष का असर था या रामकिसन द्वारा किये गये, अपनी माँ के ठीक होने के प्रचार का, रम-बाबा के नुस्खों के बिना ही मेरी प्रेक्टिस चल निकली थी ।

----श्याम सखा 'श्याम'