उस दिन आफिस में मुहर्रम की छुट्टी थी। सर्दी के मौसम में सूरज देवता की पूरी मेहरबानी होने का मतलब है, कुछ मूँगफलियों हों, रेवड़ी-गुड़, खुला आसमान और थोड़ी-सी मौज-मस्ती। सोचा बच्चों को इंडिया गेट लेकर जाया जाए। वहाँ की खुली धूप में पिकनिक ही कर ली जाए। खाने और खेलने का सामान बँधा, कार निकाली, चले पड़े।
कार में बच्चे बात कर रहे थे- "बुआ, इंडिया गेट के पास ही तो राष्ट्रपति भवन है ना?’।
मैंने कहा, "हाँ" चलते-चलते मैंने कार राष्ट्रपति भवन की और मोड़ ली।
मैं बच्चों को आस-पास नजर आ रही सभी इमारतों के विषय के बारे में बता रही थी।
तभी मेरा भतीजा, संसद भवन की आेर ईशारा कर के बोला, "बुआ वो क्या है?"
"बेटा, वो संसद भवन है।"
"संसद भवन क्या होता है?" सनी बोला।
"बेटा, हमारे देश का सारा काम-काज इसी संसद भवन से होता है। हमारे द्वारा चुने गए सभी नेता यहीं से देश का भविष्य निश्चित करते हैं।"
"अरे-अरे बुआ, क्या यही वो जगह है, जहाँ वो सभी एक-दूसरे को कुर्सी मारते हैं, खूब हंगामा करते हैं, जो टी वी में भी आता है।
मैंने देखा था क्या लड़ाई होती है। सनी, तुम भी देखना खूब मजा आता है कोई किसी की बात नहीं सुनता है। एक आंटी चुप करने को कहती रहती हैं, और कोई चुप नहीं करता है।", पिंकी ने कहा।
"बुआ चलो, बुआ चलो चलकर देखते हैं लड़ाई", सनी ने कहा ।
मैं इंडिया गेट की तरफ गाड़ी मोड़ चुकी थी और पिंकी द्वारा संसद की इस पहचान पर स्तब्ध थी।
सीमा ‘स्मृति’