tag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post3630940590484936505..comments2023-10-29T17:56:58.797+05:30Comments on कहानी-कलश: लाश..गिरिराज जोशीhttp://www.blogger.com/profile/13316021987438126843noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-32895038501681374352007-12-10T13:38:00.000+05:302007-12-10T13:38:00.000+05:30राजीव जी,एक सवेंदनशील कथा--मन उदास हो गया-ऐसी कहान...राजीव जी,<BR/>एक सवेंदनशील कथा-<BR/>-मन उदास हो गया-<BR/>ऐसी कहानियाँ लिखते हुए आप की कलम भी व्याकुल हो उठी होगी-<BR/>श्रीकांत मिश्र जी के इन विचारों से पूरी तरह से सहमत हूँ कि 'वर्तमान समाज से बहुत ही वांछित प्रश्न पूँछे हैं जिनका उत्तर कोई नहीं जानता कब मिलेगा--<BR/>शुभकामनायों सहित -Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-21635267226331416722007-12-08T19:42:00.000+05:302007-12-08T19:42:00.000+05:30राजीव जी, कहर ढा दिया आपने तो.गजब की संवेदना,गजब आ...राजीव जी, कहर ढा दिया आपने तो.गजब की संवेदना,गजब आकर्षण.<BR/> मुझ कठोर को भी भावुक बना डाला आपने तो .<BR/> मुझे समझ नहीं आ रहा किन अल्फाजों में आपको बधाई दूँ.आप तो कवि ह्रदय हैं.<BR/> बस आप समझ लीजिएगा.<BR/> आपका<BR/> आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-16765667810152430442007-12-01T14:13:00.000+05:302007-12-01T14:13:00.000+05:30बचपन और बाल-श्रम पर काफ़ी पढ़ा है राजीव जी, लेकिन इस...बचपन और बाल-श्रम पर काफ़ी पढ़ा है राजीव जी, लेकिन इस जैसा कुछ पढ़ा हो, अभी तो याद नहीं आता।<BR/>आपने आँखों में नमी ला दी, यही सफलता है आपकी।गौरव सोलंकीhttps://www.blogger.com/profile/12475237221265153293noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-23438673920452937042007-11-30T16:14:00.000+05:302007-11-30T16:14:00.000+05:30मर्मस्पर्शी कहानी। आपकी संवेदनाओं का यह असर तो ज़रू...मर्मस्पर्शी कहानी। आपकी संवेदनाओं का यह असर तो ज़रूर होगा कि जो काम आपकी कहानी का नायक नहीं कर सका वो शायद कोई पाठक कर जाय।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-51343072714774827962007-11-29T22:11:00.000+05:302007-11-29T22:11:00.000+05:30राजीव जीबहुत दर्द भरी सच्चाई लिखी है आपने । पढ़कर ...राजीव जी<BR/>बहुत दर्द भरी सच्चाई लिखी है आपने । पढ़कर मन उदास सा हो गया । ऐसे कितने ही दृश्य हम लोग देखते हैं किन्तु कुछ कर ही नहीं पाते । हाँ उस समय यही भावना जगती है -फिर मैंने महसूस लिया कि मैं कभी ज़िन्दा था ही नहीं।<BR/>एक भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए बधाईशोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-42905012421454592712007-11-29T19:29:00.000+05:302007-11-29T19:29:00.000+05:30बड़ी हीं हृदय-विदारक कहानी है राजीव जी। ऎसा लगा मान...बड़ी हीं हृदय-विदारक कहानी है राजीव जी। ऎसा लगा मानो आँखों के सामने हीं सारा कुछ घटित हो रहा है। कहानी का अंत आते-आते तो आँखों ने जवाब दे दिया था, आँसू अब आए,तब आए।<BR/>इसे कहानीकार की सफलता हीं मानी जाएगी।<BR/><BR/>-विश्व दीपक 'तन्हा'विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-87143407554154667492007-11-29T01:09:00.000+05:302007-11-29T01:09:00.000+05:30राजीव जी, “तू भी यार छोटी छोटी बातों पर रो डालता ह...राजीव जी,<BR/><BR/> “तू भी यार छोटी छोटी बातों पर रो डालता है” अगर नें टिप्पणी की। मुझे महसूस हुआ शायद सचमुच.....। वर्ना क्या भीड इसी तरह खामोश रहती? <BR/><BR/>....?....? ये प्रश्न आज तक अपने आप से दोहराता रहा हूँ। उस क्षण मैं स्वयं को बिखरा बिखरा महसूस कर रहा था, सडक पर बिखरे कबाड की तरह।<BR/><BR/>......छोटी नें बोरा खोल भीतर से शराब की बोतल निकाल निकाल फेंक दी। बोरा कंधे पर उठाया और चल पडी, बिलकुल भाव शून्य।....। तभी मैंने देखा वही सफेद कार सामने फर्राटे से निकली और आज खून के एक छींटे उस पर न थे। एक भी नहीं.... मैं देख रहा था एक लाश आहिस्ता आहिस्ता, कंधे पर पहाड़ ढोए जा रही है। फिर मैंने महसूस लिया कि मैं कभी ज़िन्दा था ही नहीं।<BR/><BR/>ऊपर लिखे शब्दों में आपने मानवीय संवेदनशीलता को कई चेहरे उजागर किए हैं. साथ ही वर्तमान समाज से बहुत ही वांछित प्रश्न पूँछे हैं जिनका उत्तर कोई नहीं जानता कब मिलेगा हा रे ! हतभागी बचपन, जिसे हम सब प्रत्येक दिन देखते हैं और कहानी के मुख्य चरित्र की तरह ही नजरअंदाज कर देते हैं <BR/><BR/>एक बहुत ही सम्वेदनशील और सामयिक कहानीAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09417713009963981665noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-32675933792730105532007-11-28T16:03:00.000+05:302007-11-28T16:03:00.000+05:30श्री राजीव रंजन जी, उत्कृष्ट लेखन के लिए कुछ शब्द ...श्री राजीव रंजन जी, <BR/>उत्कृष्ट लेखन के लिए कुछ शब्द <BR/>अपने लिए जिए तो क्या जिए ,खुशी ऐ दिल ज़माने के लिए|<BR/>दूसरों के आंसू से जो पिघल गए,<BR/>तुम जैसे हों <BR/>आगे बदने के लिए|<BR/>बेहद संवेदनशील कहानी की बधाई ,<BR/>शुभकामनाओं सहित|Gyaana-Alka Madhusoodan Patelhttps://www.blogger.com/profile/13177952733157767138noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-78926093490575404612007-11-28T13:38:00.000+05:302007-11-28T13:38:00.000+05:30Achchi aur samvedansheel kahani ke liye badhaiAchchi aur samvedansheel kahani ke liye badhaiaddictionofcinemahttps://www.blogger.com/profile/09104872627690609310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-78826482761964219522007-11-27T17:21:00.000+05:302007-11-27T17:21:00.000+05:30बहुत ही दर्दनाक कहानी है राजीव जी ...बेहद भावुक कर...बहुत ही दर्दनाक कहानी है राजीव जी ...बेहद भावुक कर देने वाली ......सच में पढ़ते पढ़ते आंसू छलक आए !!रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-75701619847800866262007-11-27T13:38:00.000+05:302007-11-27T13:38:00.000+05:30बहुत ही मार्मिक कहानी लिखी है आपने.. और अच्छा भी ल...बहुत ही मार्मिक कहानी लिखी है आपने.. और अच्छा भी लिखा है.. बधाई..PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-955298155493846942007-11-27T13:14:00.000+05:302007-11-27T13:14:00.000+05:30आपकी संवेदनशीलता के हम कायल हो गए है जी. आपकी लेखन...आपकी संवेदनशीलता के हम कायल हो गए है जी. आपकी लेखनी भी उतनी ही संवेदनशील है. मोहिंदर कुमार जी ने ठीक ही कहा है. अपना दुख तो सभी महसूस करते हैं किसी और के दुख को महसूस करना और उसके निवारण के लिए कार्य करना ही मानवता है.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-91201991833056790932007-11-27T13:12:00.000+05:302007-11-27T13:12:00.000+05:30घुटते बचपन की जिन्दा लाश देखकर मन व्याकुल है राजीव...घुटते बचपन की जिन्दा लाश देखकर मन व्याकुल है राजीव जी, अश्रुधार की टिप्प्णी समझ सको तो समझ लेना..भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5724241726450852727.post-32841048899257975422007-11-27T12:53:00.000+05:302007-11-27T12:53:00.000+05:30राजीव जी,अपना दुख तो सभी महसूस करते हैं किसी और के...राजीव जी,<BR/><BR/>अपना दुख तो सभी महसूस करते हैं किसी और के दुख को महसूस करना और उसे शब्दों में ढालने का कार्य कोई संवेदनशील व्यक्ति या उच्च दर्जे का लेखक ही कर सकता है... और वह आपने कर दिखाया है.<BR/><BR/>भावभरी कहानी के लिये बधाईMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.com